Sachin Tendulkar Exclusive: टेस्ट सीरीज से पहले खुलकर बोले सचिन तेंदुलकर, कहा- जोश के साथ होश में खेलना होगा
ऑस्ट्रेलिया से करारी हार के बाद भारतीय टेस्ट टीम इन दिनों इंग्लैंड दौरे पर है। दोनों देशों के बीच पहली बार एंडरसन-तेंदुलकर ट्रॉफी के नाम से सीरीज खेली जाएगी। पहले इसका नाम पटौदी पर था। रोहित शर्मा और विराट कोहली के बिना भारतीय टीम शुक्रवार को इंग्लैंड के खिलाफ नए कप्तान शुभमन गिल के नेतृत्व में उतरेगी।
अभिषेक त्रिपाठी, जागरण नई दिल्ली। रोहित शर्मा और विराट कोहली के बिना भारतीय टीम शुक्रवार को इंग्लैंड के खिलाफ नए कप्तान शुभमन गिल के नेतृत्व में उतरेगी। क्रिकेट के भगवान सचिन तेंदुलकर ने दैनिक जागरण से विशेष बातचीत में भारतीय टेस्ट टीम के नए कप्तान, इंग्लैंड की परिस्थितियों और अपने नाम पर होने वाली ट्रॉफी पर बातचीत की। पेश हैं मुख्य अंश-
इंग्लैंड और भारत टेस्ट सीरीज के नाम में बदलाव किया गया है। अपने नाम पर होने वाली पहली सीरीज को लेकर आपके मन में क्या भावनाएं आती हैं?
-यह मेरे लिए बहुत बड़ा सम्मान हैं। पटौदी ट्रॉफी को रिटायर किया गया है। ईसीबी और बीसीसीआई ने यह फैसला लिया। इसके बाद मुझे बताया कि मेरे और जिमी एंडरसन के नाम पर यह ट्रॉफी हो रही है। यह मेरे लिए आश्चर्य की बात थी। मुझे इसकी उम्मीद भी नहीं थी। इस जानकारी के बाद मैंने पटौदी परिवार को कॉल किया और कुछ आइडिया उनसे शेयर किए। मैं चाहता था कि पटौदी परंपरा चालू रहनी चाहिए और मैंने उनसे कहा कि मुझे कुछ समय दीजिए। मैं फिर आपको कॉल करूंगा। इसके बाद मैंने आईसीसी के चेयरमैन जय शाह, ईसीबी और बीसीसीआई को कॉल किया और उनसे कुछ आइडिया शेयर किए। उन्हें बताया कि यह परंपरा चालू रहनी चाहिए। उन्होंने इतनी पीढ़ियों को प्रभावित किया है। वह हमारे लिए चालू रखना बहुत जरुरी है। कुछ फोन काल्स के बाद तय हुआ कि पटौदी मेडल आफ एक्सीलेंस सीरीज की विजेता टीम के कप्तान को देंगे। मुझे लगा कि यह अच्छी बात होगी। ट्रॉफी के साथ ये हो रहा है इसको लेकर मुझे बहुत खुशी हो रही है।
आपको ऐसा क्यों लगा कि ये आपको करना चाहिए? अंतिम फैसले के बाद क्या आपने पटौदी फैमिली को कॉल कर के जानकारी दी?
-मैंने पूरी कोशिश करने के बाद पटौदी फैमिली को वापस कॉल की और पटौदी मेडल ऑफ एक्सीलेंस के शुरू होने की जानकारी भी दी। उनकी ख्याति के कारण यह हो रहा है। उनकी लीडरशिप की वजह से ऐसा हो रहा है। मैंने हमेशा सीनियर्स का सम्मान किया है। मुझे लगता है कि यह लिगेसी चालू रहनी चाहिए, क्योंकि अलग-अलग पीढ़ियां आती रहेंगी लेकिन जिन्होंने नींव रखी है उनको भूलना नहीं चाहिए। उनको याद रखें और आगे की पीढ़ियों को कैसे प्रभावित करें ये होना चाहिए।
क्या बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी और तेंदुलकर-एंडरसन ट्रॉफी.. लीजेंड्स के नाम से टेस्ट क्रिकेट को बढ़ावा मिलेगा?
-मैं उम्मीद करूंगा कि ये नई पीढ़ी के खिलाड़ियों को प्रभावित करे। टेस्ट क्रिकेट को उतने ही जोश में खेलना होगा, क्योंकि अलग-अलग प्रारूप आ हो रहे हैं। छोटे-छोटे प्रारूप में जितना नई पीढ़ि खेलना चाह रही है, उतने ही जोश से लंबे प्रारूप को भी खेले और देश का नाम रोशन करे। हमारे नाम से यह ट्राफी हुई है, लेकिन इसमें नई पीढ़ी के खिलाड़ी ही खेलेंगे। मैं कहूंगा कि नए खिलाडि़यों का जोश भी उतना ही होना चाहिए।
नई पीढ़ी की बात हो रही है तो आप शुभमन गिल की कप्तानी वाली टीम को आप कैसे देख रहे हैं?
-हर टीम बदलाव के दौर से गुजरती है। हर खिलाड़ी को कभी न कभी संन्यास लेना पड़ता है। यह सदियों से होता आ रहा है और आगे भी जारी रहेगा, ये सामान्य चीज है। नए खिलाड़ी यहां पर आ रहे हैं तो उनके लिए अच्छा मौका है कि देश के लिए कुछ कर दिखाए। अगर प्रतिभा की बात करें तो मैंने अधिकांश खिलाड़ियों को खेलते हुए देखा है। उनके पास कौशल और क्षमता है। अगर वे ग्राउंड पर सही दिशा में अपनी प्रतिभा का इस्तेमाल कर सके तो उनको कोई नहीं रोक सकता है। इन खिलाड़ियों के पास जीतने के लिए जो चीजें चाहिए वह सब कुछ है। यही उम्मीद करता हूं कि शुभमन के नेतृत्व में जिनके लिए यह बहुत महत्वपूर्ण सीरीज है, टीम अच्छा करेगी। उनकी यह कप्तानी के तौर पर पहली सीरीज है। उन्हें मैं यही कहूंगा कि जो टीम के हित में है वही निर्णय लेना चाहिए। मुझे पता है कि ड्रेसिंग रूम में बहुत चर्चाएं होंगी, योजनाएं बनाई जाएंगी। कोच और टीम प्रबंधन के लोग आएंगे और बहुत सारी चीजें प्लान करेंगे, वह प्लान को सही तरह लागू करें। और बाहर की दुनिया क्या कहती है उसके बारे में ज्यादा सोचने के जरूरत नहीं है क्योंकि राय रहेंगी लोगों की। कुछ सकारात्मक रहेंगी, कुछ नकारात्मक रहेंगी, कुछ रक्षात्मक रहेंगी, कुछ आक्रामक रहेंगी। ज्यादा सोचना नहीं है, सिर्फ ड्रेसिंग रूम में क्या हुआ है उसके बारे में सोचें और शत प्रतिशत दें। बाहर की राय बाहर ही रहने दो क्योंकि अंदर जाकर टीम को ही खेलना चाहिए। अपने देश के लिए कैसे अच्छा प्रदर्शन कर सकते हो इस पर फोकस रहना चाहिए।
जब आप संन्यास ले रहे थे तो बहुत लोग सोचते थे कि आपको दो साल और खेलना चाहिए। रोहित और कोहली ने पिछले दिनों संन्यास लिया, लेकिन उनके प्रशंसकों को लगता है कि वे और खेल सकते थे। इसको बीसीसीआई कैसे संभालता है और बतौर प्रशंसकों की नजर से आप इसको कैसे देखते हैं?
-पहले तो मैं कहूंगा कि संन्यास लेने का फैसला व्यक्तिगत होता है। संन्यास कब, कैसे और आगे कैसे बढ़ना चाहिए और यह बहुत सारी चीजों पर निर्भर करता है। आप क्या सोच रहे हैं, आपका शरीर फिट है या नहीं, मेंटली आप फिट हैं या नहीं, यह सारी चीजें होती हैं और ये सब वो खिलाड़ी को ही पता होती है। कभी-कभी खिलाड़ी को लगता है कि मेरा जो सर्वश्रेष्ठ है वह मैं नहीं दे पा रहा हूं। टीम के साथ सही नहीं हो रहा। प्रदर्शन ऊपर-नीचे हो रहा है वह कोई बात नहीं लेकिन अगर आप बेस्ट नहीं दे पा रहे हो तो सवाल आता है। यह कोई बाहर वाला आकर नहीं बता सकता है। यह खिलाड़ी को ही पता होनी चाहिए। मैंने जब संन्यास लिया था तो मुझे लग रहा था कि मेरा शरीर और अन्य चीजें सर्वश्रेष्ठ नहीं हो पा रही हैं तो मैंने संन्यास लेने का फैसला किया था। वह वही खिलाड़ी ही बता सकता है। हम सिर्फ रोहित और कोहली की बात यहां नहीं कर रहे हैं, लेकिन आर अश्विन के बारे में तो कोई बात नहीं कर रहा है। वह भारत के दूसरे सबसे बड़े विकेट लेने वाले गेंदबाज हैं। उनका जाना भी उतना ही बड़ा नुकसान है।
ड्यूक बॉल और इंग्लिश परिस्थितियों पर भारतीय बल्लेबाजों को किस तरह खेलना चाहिए?
-इंग्लैंड में ड्यूक बाल से जब खेलते हैं तो तीन चीजों का ध्यान रखना चाहिए। पहला है कि वहां ओवरहेड कंडीशन, दूसरा है कि कितनी तेज हवा चल रही है, किस दिशा में चल रही है और तीसरा है ग्राउंड व पिच। इन तीनों चीजों को साथ में लेकर चलना चाहिए। यह नहीं कि तेज हवा चल रही है, ठंड है, विकेट पर घास है और खिलाड़ी फैसला करें कि हम ऐसे ही खेलेंगे। कंडिशन को देखकर बल्लेबाजी होनी चाहिए। हमें परिस्थितियों के हिसाब से अनुकूल होना चाहिए। ड्यूक गेंद अलग-अलग स्टेज में अगल तरह से बिहेव करती है। ड्यूक गेंद 50-55 ओवर तक कठोर रहती है। उसके बाद एक विंडो आता है 55 से 80 के बीच जहां आप थोड़े आक्रामक हो सकते हैं। अगर धूप है, सूरज निकला हुआ है और पिच सूख चुकी है तो उस समय आप गाड़ी को थोड़ी तेज जाने दे सकते हैं। उस समय कुछ रन बना लो, जब तक दूसरी गेंद न आ जाए। इन बातों को ध्यान में रखकर टीम साझेदारी में खेलते हैं तो उसका फायदा होगा।
इंग्लैंड के बैजबाल क्रिकेट के बारे में क्या कहेंगे? क्या भारतीय टीम उस बारे में सोच रही होगी?
-बैजबाल उनके स्टाइल का क्रिकेट है। उनके स्टाइल के क्रिकेट को उनको खेलने दें और हम हमारे स्टाइल से खेलेंगे। सबकी अलग-अलग पहचान होती है और हमको देखना चाहिए कि हमें क्या जंच रहा है और हमें उसके अनुकूल खेलना चाहिए। हमें लगता है कि इंग्लिश टीम थोड़ा आक्रामक खेलेगी क्योंकि बैजबाल उसी स्टाइल का क्रिकेट है। ऐसे में हमें स्मार्ट होना पड़ेगा। मैं यही कहूंगा कि जोश के साथ होश में क्रिकेट खेलना होगा।
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