Exclusive: 'वर्ल्ड कप जीत के बाद अब महिलाओं को लेकर बदलेगी सोच', चैंपियन दीप्ति शर्मा का बड़ा बयान
दीप्ति कहती हैं, महिला टीम के विश्व विजेता बनने के बाद अब देश में महिलाओं को लेकर वैसा ही माहौल बन गया है, जैसे 1983 में भारत के पहली बार विश्व कप जीतने पर क्रिकेट की लोकप्रियता चरम पर पहुंच गई थी। दीप्ति से विकास मिश्र ने बातचीत की।

वर्ल्ड कप में प्लेयर ऑफ द टूर्नामेंट के खिताब के साथ दीप्ति। फाइल फोटो
विकास मिश्रा, जागरण, लखनऊ। महिला क्रिकेट टीम के पहली बार विश्व विजेता बनने से देश गौरान्वित है। टीम को चैंपियन बनाने में आगरा की हरफनमौला क्रिकेटर दीप्ति शर्मा का भी अहम भूमिका रही है। दीप्ति ने कुल 222 रन बनाए और 22 विकेट भी हासिल किए। वह प्लेयर ऑफ द सीरीज बनीं।
दीप्ति कहती हैं, महिला टीम के विश्व विजेता बनने के बाद अब देश में महिलाओं को लेकर वैसा ही माहौल बन गया है, जैसे 1983 में भारत के पहली बार विश्व कप जीतने पर क्रिकेट की लोकप्रियता चरम पर पहुंच गई थी। दीप्ति से विकास मिश्र ने बातचीत की। पेश हैं प्रमुख अंश:-
दीप्ति अब विश्व चैंपियन बन गई हैं। कैसा रहा यहां तक का सफर? क्या उतार-चढ़ाव देखने को मिले?
-- मैं लड़की होने के साथ मध्यम वर्गीय परिवार से हूं। ऐसे में क्रिकेट में करियर बनाने का निर्णय कठिन था। पापा रेलवे में कार्यरत हैं। हमारे पास पैसे की कमी थी, लेकिन आत्मविश्वास की नहीं। शुरुआत में तो काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा, पर पापा और भाई के सहयोग से धीरे-धीरे चीजें सामान्य होती गईं। मेरे करियर में जब भी कोई परेशानी आई तो भाई ने आगे बढ़कर संभाला। मेरा मानना है कि यदि आप लक्ष्य को लेकर समर्पित होते हैं और पूरे मन से तैयारी करते हैं तो सफलता निश्चित मिलती है। विश्व कप जीतना मतलब सबसे बड़ा सपना पूरा होने जैसा है।
भारतीय टीम इससे पहले दो फाइनल हारी थी। इस बार आप लोग अपने देश में खेल रहे थे। क्या खिलाड़ियों के जहन में था कि चैंपियन बनेंगे?
-- सच कहूं तो निश्चित तौर यह हमारी रणनीति का हिस्सा था। हम इस बार घर में खेल रहे थे, जहां खिलाड़ियों को प्रशंसकों का खूब समर्थन मिल रहा था। यह हमारे लिए बेहद महत्वपूर्ण था। जब दर्शक आपको प्रोत्साहित करते हैं तो और बेहतर प्रदर्शन करने की प्रेरणा मिलती है। हमें होम ग्राउंड का मनोवैज्ञानिक लाभ मिला। भारत को विश्व चैंपियन बनाने में किसी एक खिलाड़ी नहीं, बल्कि पूरी टीम ने एकजुट होकर सर्वश्रेष्ठ क्रिकेट खेलकर मुश्किल को संभव में परिवर्तित किया।
सेमीफाइनल में भारत के सामने सात बार की विश्व चैंपियन ऑस्ट्रेलिया टीम थी। क्या भारत पर इसका दबाव था?
-- बिल्कुल भी नहीं। यह बात सच है कि ऑस्ट्रेलिया विश्व कप की मजबूत दावेदार थी, लेकिन कंगारू टीम यह जानती थी कि उसे सिर्फ भारत ही हरा सकता है। हम इसे अपनी मजबूती मानकर मैदान में उतरे और परिणाम पूरी दुनिया के सामने है। सेमीफाइनल में हमने वाकई बहुत अच्छी क्रिकेट खेली। हमारी रणनीति आक्रामक खेल की थी और इसे पूरी तरह लागू भी किया।
आपको क्रिकेटर बनाने में किसकी भूमिका अधिक है? क्या आपने पहले सोचा था कि विश्व कप टीम का हिस्सा होंगी?
-- मुझे क्रिकेटर बनाने में बड़े भाई सुमित शर्मा ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। दरअसल, वह भी यूपी के लिए अंडर-19 और अंडर-23 क्रिकेट खेल चुके हैं। जब मैं छोटी थीं, तब एक दिन किक्रेट मैदान पर पहुंची। मैंने एक गेंद को थ्रो किया, जो सीधे विकेट में लगी। यह देख सुमित चौंक गए और उन्होंने मुझे क्रिकेट खेलने के लिए प्रेरित किया। यहां से सबकुछ बदल गया। विश्व कप टीम में जगह बनाना आसान नहीं था, लेकिन जब भी मुझे मौका मिला मैंने खुद को साबित किया। चयन समिति ने मुझपर भरोसा जताया और इससे मेरा आत्मविश्वास मजबूत हुआ।

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