IND vs PAK: 'भारत-पाक मुकाबले हमेशा ही आतिशबाजी भरे रहे', फाइनल से पहले सुनील गावस्कर का यह कॉलम जरूर पढ़ें
एशिया कप का फाइनल भारत और पाकिस्तान के बीच खेला जाएगा। यह वही परिदृश्य है जिसका सपना प्रसारक और विज्ञापनदाता देखते हैं क्योंकि उन्हें दर्शकों की भारी संख्या की गारंटी मिल जाती है। दोनों टीमें 41 साल बाद एशिया कप के फाइनल में आमने-सामने होंगी। इससे पहले दोनों टीमें कभी-कभी फाइनल में नहीं टकराई हैं।

सुनील गावस्कर का कॉलम। एशिया कप का फाइनल भारत और पाकिस्तान के बीच खेला जाएगा। यह वही परिदृश्य है जिसका सपना प्रसारक और विज्ञापनदाता देखते हैं, क्योंकि उन्हें दर्शकों की भारी संख्या की गारंटी मिल जाती है। दोनों टीमें 41 साल बाद एशिया कप के फाइनल में आमने-सामने होंगी। इससे पहले भी वे शुरुआती दौर में भिड़ते रहे हैं, क्योंकि 2007 में कैरेबियन में हुए आईसीसी विश्व कप में जो हुआ उसके बाद से चीजें बदल गईं।
उस समय दोनों टीमों से सेमीफाइनल में पहुंचने की उम्मीद थी, लेकिन दोनों ही शुरुआती दौर में बाहर हो गईं। इसके चलते बड़ी संख्या में टिकट और होटल बुकिंग रद्द हुईं। सभी को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा। तभी से आईसीसी और अन्य आयोजनों के ड्रॉ ऐसे बनाए जाते हैं कि दोनों टीमें एक ही समूह में रहें। इससे कम से कम एक मुकाबला तो तय हो ही जाता है। यहां तक कि इस बार भी उनके समूह में अपेक्षाकृत कमजोर टीमें रखी गईं, ताकि 2007 विश्व कप जैसे अप्रत्याशित उलटफेर की कोई गुंजाइश न रहे।
अन्य देशों को इससे कोई आपत्ति नहीं होती, क्योंकि वे भी जानते हैं कि यही भिड़ंत सबसे ज्यादा दर्शक जुटाती है और वही पैसा लाती है जिससे उनके क्रिकेट को भी फंड मिलता है।अन्य सभी खेलों में ड्रा रैंकिंग या सीडिंग के आधार पर होता है, लेकिन क्रिकेट में जब भारत और पाकिस्तान शामिल होते हैं तो हालात अलग होते हैं। भारत-पाकिस्तान के मुकाबले हमेशा ही आतिशबाजी भरे रहे हैं, लेकिन एशिया कप के इस संस्करण में जैसी शत्रुतापूर्ण स्थिति देखने को मिली, वैसी कम ही देखने को मिली है।
अतीत में कभी-कभार खिलाड़ियों के बीच कहासुनी जरूर हुई है, लेकिन पिछले हफ्ते जैसा कड़वाहट भरा माहौल पहले कभी नहीं दिखा। दर्शकों का विपक्षी टीम के फील्डरों को सीमा रेखा पर ताने कसना आम बात है और यह दुनिया भर के खेलों में होता है। लेकिन इस बार माहौल अलग था। फील्डरों पर सीधे युद्ध से जुड़े कमेंट किए गए। दोनों देशों में युद्ध को लेकर जैसी कथाएं और नैरेटिव बनाए गए, उसी आधार पर इशारे और ताने भी मैदान पर किए गए।
यह मानना कि खेल और राजनीति को अलग रखा जा सकता है, महज एक कल्पना है। पिछले रविवार को हुए मैच में जो कुछ दिखा, उसने तो यह और भी मजबूत कर दिया कि पाकिस्तान के विरुद्ध किसी भी खेल में, खासकर भावनात्मक रूप से भरे खेल क्रिकेट में नहीं खेलना चाहिए। लोग अक्सर उदाहरण देते हैं कि कई बार देशों ने ओलंपिक, विश्व कप जैसे आयोजनों में भाग नहीं लिया। भारत का भी एक बड़ा उदाहरण है जब डेविस कप फाइनल नहीं खेला गया। उस समय भारत एक मजबूत टेनिस देश था और अमृतराज बंधु अपने खेल के शिखर पर थे।
फाइनल दक्षिण अफ्रीका में होना था। उस वक्त भारतीय पासपोर्ट पर साफ लिखा होता था कि वे दक्षिण अफ्रीका और इजराइल की यात्रा के लिए मान्य नहीं हैं। दक्षिण अफ्रीका तब रंगभेद की नीति अपनाता था और खेल जगत में उसका बहिष्कार हो रहा था। भले ही विश्व स्तर पर बहिष्कार न होता, भारत वहां जाकर कभी नहीं खेलता। नतीजा यह हुआ कि भारत ने टीम नहीं भेजी और दक्षिण अफ्रीका को डेविस कप विजेता घोषित कर दिया गया।
भारत की टीम बेहद मजबूत थी और खिताब जीतने का सुनहरा मौका था, जो विश्व कप जीतने के बराबर होता। उसके बाद कोई भी भारतीय टीम डेविस कप जीतने के करीब नहीं पहुंच सकी। भारत ने उस वक्त सैद्धांतिक रुख अपनाया और एक सुनहरे अवसर का त्याग किया।आइसीसी मैच रेफरी द्वारा पहले मैच के बाद भारतीय कप्तान सूर्यकुमार यादव की टिप्पणियों पर लगाए गए जुर्माने को बीसीसीआइ चुनौती दे सकता है।
हालांकि, उनके सफल होने की संभावना कम है, क्योंकि आइसीसी के नियम स्पष्ट कहते हैं कि किसी खेल में राजनीतिक टिप्पणी, इशारे या पोस्टर की अनुमति नहीं है। अतीत में भी अन्य देशों के खिलाडि़यों पर राजनीतिक टिप्पणी करने पर जुर्माना या चेतावनी दी जा चुकी है। यह लेख फाइनल की पूर्व संध्या पर लिखा जा रहा है। उम्मीद यही है कि मुकाबला रोमांचक और शानदार क्रिकेट से भरा हो, लेकिन वे हरकतें न हों जिनसे इस महान खेल की छवि को नुकसान पहुंचे।
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