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    जन्मदिन स्पेशल: सौरव गांगुली को यूं ही नहीं कहा जाता दादा, ये हैं खास वजहें

    गांगुली जब भारतीय टीम के कप्तान थे तो उन्होंने वर्ल्ड क्रिकेट को ना सिर्फ अपने बल्ले और कप्तानी से दादागीरी दिखाई बल्कि यह भी दिखाया कि भारतीय किसी से भी कम नहीं हैं।

    By Pradeep SehgalEdited By: Updated: Sat, 08 Jul 2017 02:45 PM (IST)
    जन्मदिन स्पेशल: सौरव गांगुली को यूं ही नहीं कहा जाता दादा, ये हैं खास वजहें

    नई दिल्ली, जेएनएन। सौरव गांगुली भारत का एक ऐसा कप्तान जिसने टीम इंडिया को विदेशों में जीतना सिखाया। गांगुली को दादा भी कहा जाता है। टीम इंडिया के इस दादा ने वर्ल्ड क्रिकेट में अपनी दादागीरी भी दिखाई। आज सौरव गांगुली का जन्मदिन है और वो 45 साल के हो गए हैं।

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    दादा ने जब दुनिया को दिखाई दादागिरी

    सौरव गांगुली जब भारतीय टीम के कप्तान थे तो उन्होंने वर्ल्ड क्रिकेट को ना सिर्फ अपने बल्ले और कप्तानी से दादागीरी दिखाई बल्कि दुनिया को ये भी दिखाया कि भारतीय खिलाड़ी किसी से भी कम नहीं हैं। इतना ही नहीं, दादा ने विश्व क्रिकेट पर राज कर रही ऑस्ट्रेलियाई टीम के गुरूर को भी अपनी दमदार कप्तानी से चकनाचूर किया था। आखिर कौन भूल सकता है 2001 का वो ऐतिहासिक कोलकाता टेस्ट। भारतीय टीम ने इस सीरीज़ में पिछड़ने के बाद ऑस्ट्रेलिया से सीरीज़ जीती थी।

    गांगुली ने ऑस्ट्रेलिया में जाकर भी कंगारुओं को अपना कद दिखाया था। सौरव गांगुली ने अपनी कप्तानी के दौरान ऑस्ट्रेलिया दौरे पर एक टेस्ट में ऑस्ट्रेलिया के कप्तान स्टीव वॉ को टॉस के लिए इंतज़ार करवाया था। वॉ इस बात पर लंबे समय तक अपनी नाराज़गी जाहिर भी करते रहे।

    इंग्लैंड को भी दिखाया दम

    गांगुली की आक्रामकता का अंदाजा दुनिया को 2002 की नेटवेस्ट सीरीज के दौरान हुआ था, जब भारत द्वारा फाइनल में इंग्लैंड को हराने के बाद उन्होंने लॉ्डर्स की बालकनी में अपनी टीशर्ट निकालकर लहराई थी। गांगुली पहले ऐसी कप्तान थे जिन्होंने दिखाया कि भारतीय टीम भी उतनी ही आक्रामकता के साथ ना सिर्फ खेल सकती है बल्कि ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड जैसी दिग्गज टीमों को पटखनी देने का माद्दा भी रखती है।

    गजब की है पारखी नज़र

    जब क्रिकेट जगत में मैच फिक्सिंग की वजह से उथलपुथल मची हुई थी तब इस 'प्रिंस ऑफ कोलकाता' को भारतीय टीम की कमान सौंपी गई। इसके बाद टीम के चेहरे और चाल-चलन में बदलाव आया। गांगुली ने भारतीय खिलाड़ियों को आक्रामकता के साथ खेलने की सीख दी और उनके इस मंत्र ने टीम इंडिया की तस्वीर बदलकर रख दी। जो टीम विदेशों में जाकर हार से परेशान रहती थी वो बड़ी-बड़ी टीमों को उन्हीं के घर में मात देने लगी। गांगुली ने टीम को जुझारू और आक्रामक खिलाडि़यों की फौज के रूप में तब्दील किया। उन्होंने युवा खिलाडियों की एक टीम तैयार की जिसमें युवराज, हरभजन, सहवाग और ज़हीर खान जैसे खिलाड़ी शामिल थे। दादा ने इन खिलाड़ियों में पूरा विश्वास दिखाया और यही टीम खिलाड़ी टीम इंडिया के लिए मैच विनर्स भी बनें। 

    ऐसा रहा क्रिकेट का सफर

    बाएं हाथ के इस कलात्मक बल्लेबाज ने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट की शुरुआत तो 1992 में वन-डे से की, लेकिन उन्हें पहचान 1996 के इंग्लैंड दौरे से मिली। दादा के नाम से मशहूर गांगुली ने 113 टेस्ट मैचों में 7,212 रन बनाए हैं जबकि 311 वनडे मैचों में उन्होंने 22 सेंचुरी समेत 11,363 रन बनाए हैं। वनडे मैचों में रन बनाने के मामले में गांगुली की गिनती दुनिया के दिग्गज खिलाडि़यों में हुई।

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