गलत फैसले, आलोचनाओं का अंबार, फिर भी कैसे इंग्लैंड में किंग बन गई टीम इंडिया, इस खासियत ने दिलाई नई पहचान
टीम इंडिया जब से इंग्लैंड दौरे पर आई थी तब से उसकी रणनीति उसके फैसले सवालों के घेरे में थे। दिग्गजों ने आलोचनाओं का अंबार लगा दिया था। काफी हद तक सवाल सही थे और पूछे जाने थे। लेकिन फिर भी सभी की नजरों में कमजोर दिख रही टीम इंडिया ने इंग्लैंड में सीरीज ड्रॉ कर तारीफें लूटी हैं।

अभिषेक उपाध्याय, स्पोर्ट्स डेस्क, नई दिल्ली। सेलेक्शन को लेकर बवाल, मैदान के बाहर आलोचनाएं और चोटों से जूझती टीम इंडिया। न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया के हाथों टेस्ट सीरीज गंवाने के बाद गौतम गंभीर के लिए इंग्लैंड का दौरा चुनौतीपूर्ण बन गया था। इस दौरे पर नए कप्तान शुभमन गिल के साथ वह आए थे। शुरू से ही टीम सेलेक्शन के साथ-साथ कई फैसलों को लेकर उनकी और गिल की आलोचना हो रही थी। कुलदीप यादव को न खिलाना सबसे बड़ा टॉकिंग प्वाइंट था।
जसप्रीत बुमराह का वर्कलोड भी सवालों के घेरे में था। जो सवाल उठ रहे थे वो जायज भी थे। किसी को समझ में नहीं आ रहा था कि गिल और गंभीर की जोड़ी क्या सोच रही है? इन लोगों के पास कोई रणनीति है भी के नहीं? लेकिन तमाम आलोचनाओं के बाद अगर आप भारत को इंग्लैंड में सीरीज ड्रॉ कराते हुए देखते हैं तो सवाल मन में उठता है कि कैसे इतने सारे गलत फैसलों, जिन पर दिग्गजों ने सवाल उठाए, उनके बाद भी ये टीम इंग्लैंड में परचम लहारकर आ रही है।
आप बेशक कह सकते हैं कि इंग्लैंड की टीम का गेंदबाजी आक्रमण उस स्तर का न हीं था। इस टीम के खिलाफ भारत को आसानी से सीरीज जीत जाना चाहिए था। यहां ये नहीं भूलना होगा कि इंग्लैंड अपने घर में खेल रही थी और टीम इंडिया अनुभवहीन थी। फिर भी इस टीम ने वो कर दिखाया जिसकी उम्मीद नहीं थी। तीन टेस्ट मैचों के बाद भारत 1-2 से पीछे था। फिर मैनचेस्टर टेस्ट विषम परिस्थितियों में ड्रॉ कराया। द ओवल में खेला गया आखिरी टेस्ट इंग्लैंड के जबड़े में से छीन लिया।
सवाल फिर मन में उठा होगा। इतने गलत फैसलों, चोटों के बाद भी टीम इंडिया ने ये कमाल कैसे कर दिया?
इसका जवाब मिलता है टीम इंडिया के मैदान पर दिखाए गए खेल में। दिग्गजों की नजरों में किसी भी टेस्ट में प्लेइंग-11 का चुनाव सही नहीं हुआ,लेकिन गौर करने वाली बात ये है कि जिन खिलाड़ियों को चुना गया उन्होंने मैदान पर अपनी जान लगा दी। ऐसे खेले जैसे जो मैच खेल रहे हैं वही सब कुछ है। गलतियां कीं और आगे भी होंगी क्योंकि टीम युवा है, लेकिन कदम पीछे नहीं खींचे।
गंभीर ने पांचवां टेस्ट मैच जीतने के बाद एक पोस्ट किया है और वही मैदान पर खिलाड़ियों ने दिखाया। गंभीर ने लिखा है, "हम कुछ मैच जीतेंगे, कुछ हारेंगे... लेकिन हम कभी सरेंडर नहीं करेंगे।"
इस सीरीज में अनुभव की कमी, गलत प्लेइंग-11 का चयन, चोटों, कप्तानी करते हुए गलत फैसलों पर यही बात भारी पड़ गई। आप इस सीरीज का कोई भी मैच उठाकर देख लें। टीम इंडिया ने हार नहीं मानी। लॉर्ड्स में भी जब उम्मीदें धूमिल हो रही थीं तब रवींद्र जडेजा ने लड़ाई लड़ी और उनका साथ दिया जसप्रीत बुमराह ने। फिर मोहम्मद सिराज ने भी जीत के लिए जान लगा दी। वहां किस्मत धोखा दे गई, लेकिन पूरी दुनिया ने देखा कि भारत ने अंत तक लड़ाई लड़ी और लगभग मैच जीत ही लिया था।
मैनचेस्टर में भी जब चौथे दिन बड़े खिलाड़ी पवेलियन लौट गए थे और पांचवें दिन भी टीम इंडिया के सामने संकट था तो जडेजा, वॉशिंगटन सुंदर ने अंग्रेजों को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया। ये हल्की बात नहीं है। ये वो कमिटमेंट है, वो फाइटिंग स्प्रिट है जो हर टीम में देखने को नहीं मिलती। कई बार हार न मानने की जिद, अंत तक लड़ने की लत आपकी कई कमियों पर पानी फेर देती है और वहां से जो आत्मविश्वास मिलता है उससे सिर्फ निखार आता है। वही निखार की उम्मीद गिल की युवा गैंग ने जताई है।
आखिरी मैच तो टीम की इस स्प्रिट का सबसे बड़ा उदाहरण है। सब कुछ पलट गया था। हैरी ब्रूक और जो रूट के सामने टीम इंडिया की स्प्रिट खोती दिख रही थी। ऐसे में सिर्फ एक उम्मीद की किरण चाहिए थी जो ब्रूक के विकेट के बाद मिली। गिल ने मैच के बाद कहा है कि टेस्ट क्रिकेट आपको दूसरा मौका देता है। उसने दिया और भारत ने दोनों हाथों से कैश किया।
इंग्लैंड जीत के करीब थी और टीम इंडिया फिर भी जीत के सपने देख रही थी। ऐसी हरकतों को शेख चिल्ली के सपने जैसी उपमा से नवाजा जाता है। हालांकि, भारत ने सपने में दिख रही जीत को 22 गज की पिच पर उतार दिया।
ये सीरीज टीम इंडिया के तमाम गलत फैसलों के बाद भी मैदान पर दिखाए गए उसके जुझारूपन के लिए याद की जाएगी। और यहां से टीम की इस भावना में कमी नहीं आएगी बल्कि आगे बढ़ती जाएगी। ये वाकई में नए युग की शुरुआत है। इस जीत का जश्न मनाइए।
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