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    इंटरनेशनल क्रिकेट खेलने को तरस रहा था साउथ अफ्रीका, भारत की मदद के बाद हुई वापसी, जानिए पूरी कहानी

    Updated: Mon, 01 Dec 2025 11:59 PM (IST)

    भारत और साउथ अफ्रीका के बीच एक समय संबंध ज्यादा अच्छे नहीं थे और इसी कारण दोनों के बीच लंबे समय तक क्रिकेट नहीं हुआ, लेकिन ये भारत ही था जिसने 1991 में साउथ अफ्रीका की इंटरनेशनल क्रिकेट में वापसी में अहम रोल निभाया। जानिए इसकी पूरी कहानी 

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    साउथ अफ्रीका क्रिकेट टीम भारत दौरे पर है

    स्पोर्ट्स डेस्क, नई दिल्ली। साउथ अफ्रीका की टीम इस समय भारत के दौरे पर है। टेस्ट सीरीज में उसे जीत हासिल हुई जो ऐतिहासिक थी। इस समय दोनों टीमों के बीच वनडे सीरीज खेली जा रही है जो तीन मैचों की है। इसके बाद दोनों के बीच पांच मैचों की टी20 सीरीज खेली जानी है। विश्व क्रिकेट में साउथ अफ्रीका बड़ी टीम है, लेकिन एक समय ऐसा था जब इस देश को इंटरनेशनल क्रिकेट से बैन कर दिया गया था। तब भारत ही था जिसने साउथ अफ्रीका की वापसी की राह तय की थी।

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    इंटरनेशनल क्रिकेट में वापसी के बाद साउथ अफ्रीका ने अपनी पहली वनडे सीरीज भारत के खिलाफ ही खेली थी और यहां से उदय हुआ था सचिन तेंदुलकर-एलन डोनाल्ड की राइवलरी का। तब से साउथ अफ्रीका ने अपने पैर इंटरनेशनल क्रिकेट में जमाए और आज एक बेहतरीन टीम बनकर खड़ी है। ऐसी टीम जो भारत को भारत में हरा चुकी है।

    बैन हो गया था साउथ अफ्रीका

    बात 20वीं सदी से शुरू होती है। तब अधिकांश समय तक भारत और साउथ अफ्रीका के बीच संबंधों में अविश्वास सा था। साउथ अफ्रीका की क्रिकेट टीम थी और ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड के खिलाफ वह खेल रही थी। साउथ अफ्रीका पर साल 1970 में बैन लगा था और इससे पहले भारत ने उसके खिलाफ कभी नहीं खेला था।

    गैर-श्वेत देशों की तरह भारत भी रंगभेद व्यवस्था का कड़ा विरोधी था। 1948 से लगभग आधी सदी तक चले क्रूर रंगभेद शासन के कारण 1950 के दशक से ही साउथ अफ्रीका खेल जगत में अलग-थलग पड़ गया। 1970 में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट दौरे पूरी तरह बंद हो गए और वापसी के लिए 20 साल से ज्यादा इंतज़ार करना पड़ा। नेल्सन मंडेला की 27 साल जेल के बाद रिहाई ने ही साउथ अफ्रीका वापसी के दरवाजे खोले।

    साउथ अफ्रीका की इंटरनेशनल क्रिकेट में वापसी में सबसे अहम किरदार निभाया डॉ अली बाखर जो पूर्व कप्तान थे और बाद में प्रशासक भी बने। 1980 के दशक में वे रिबेल टूर्स करवाने के लिए बदनाम हुए थे। रंगभेद के दौर में साउथ अफ्रीका क्रिकेट दो हिस्सों में बंटा था। एक था श्वेतों का साउथ अफ्रीका क्रिकेट संघ जिसमें बाखर थे और बहु-नस्लीय साउथ अफ्रीकी क्रिकेट बोर्ड। इन दोनों का एक होना ही इंटरनेशनल क्रिकेट में साउथ अफ्रीका की पहली शर्त थी।

    दो बोर्ड हुए एक

    एएनसी की मदद से जून 1991 में दोनों बोर्ड मिलकर यूनाइटेड क्रिकेट बोर्ड ऑफ साउथ अफ्रीका बने। यही एकता आईसीसी और उसके सदस्य देशों को यह विश्वास दिलाने के लिए जरूरी थी कि साउथ अफ्रीका क्रिकेट नए रास्ते पर चलने को तैयार है।

    इसमें दूसरे मुख्य किरदार थे स्टीव श्वेते जो एएनसी के बड़े नेता। वे मशहूर थे विरोधियों को एक साथ लाने के लिए, इसलिए उन्हें 'मिस्टर फिक्सइट' कहा जाता था। मार्च 1991 में बाखर और श्वेते हरारे गए और भारत व पाकिस्तान के हाई कमिश्नरों से मिले। मई में दोनों ने लंदन जाकर आईसीसी से पूर्ण सदस्यता हासिल करने और इंटरनेशनल क्रिकेट में तुरंत वापसी की गुहार भी लगाई। लेकिन ये काम आसान नहीं था। इसके लिए कई देशों का समर्थन जुटाना था। खासकर उन देशों का जो साउथ अफ्रीका के विरोधी रहे हैं। इनमें भारत भी शामिल था जो उसकी रंगभेद नीती के खिलाफ था।

    बीसीसीआई की हुई एंट्री

    ऑस्ट्रेलियाई बोर्ड के उस समय के सीईओ डेविड रिचर्ड्स ने बाखर को सलाह दी कि उन्हें उस समय के बीसीसीआई सचिव जगमोहन डालमिया से संपर्क करना चाहिए। बाखर ने बात मानी और डालमिया को फोन किया। वेबसाइट ईएसपीएनक्रिकइंफो ने अपनी रिपोर्ट में लेखक मिहिर बोस के हवाले से लिखा है कि, डालमिया का पहला जवाब था 'मुझे नहीं पता था कि साउथ अफ्रीका से भारत फोन किया जा सकता है!'

    किसी तरह दोनों के बीच बात हुई और बाखर अपनी बात रखने में सफल रहे। अप्रैल से जुलाई के बीच बाखर के हिसाब से दोनों के बीच करीब 40 दफा फोन पर बात हुई, लेकिन अंतिम मंजूरी के लिए उस समय के बीसीसीआई अध्यक्ष माधवराव सिंधिया और वेस्टइंडीज-पाकिस्तान का समर्थन चाहिए था जो श्वेतों के साउथ अफ्रीका के खिलाफ थे।

    बाखर जानते थे कि यहां एएनसी का साथ निर्णायक होगा। जुलाई में लंदन में आईसीसी की बैठक तय हुई। डालमिया और बाखर इसमें पहुंचे। डालमिया ने लंदन में भारत के हाई कमिश्नर एल.एम. सिंघवी से मदद मांगी। पहले तो सिंघवी भड़क गए और कहा, 'ये कूटनीतिक फैसला है इसलिए इस पर फैसला सरकार को लेने दो।', लेकिन अंततः वह मान गए।

    बैठक से एक दिन पहले सिंघवी ने डालमिया को साथ लेकर सिंधिया को फोन किया और समझाया कि रंगभेद-विरोधी आंदोलन के नजरिए से भारत को साउथ अफ्रीका का साथ देना चाहिए। अगले दिन सिंघिया ने भारत सरकार से विशेष अनुमति ली और डालमिया को हरी झंडी दे दी।

    ऐसे बनी बात

    अभी बहुत कुछ होना बाकी था। कई सारी चीजों को एक साथ लाना था और कई लोगों को बहुत कुछ समझाना था। श्वेते और बाखर पूरी शिद्दत से इसी में लगे थे। उसी समय डरबन में एएनसी का पहला राष्ट्रीय सम्मेलन चल रहा था, फिर भी श्वेते लंदन पहुंचे। वहीं बाखर सारा दिन सिंधिया से संपर्क करने की कोशिश कर रहे थे। आखिरकार कॉल लगी। बाखर ने 20 मिनट तक सिंधिया को बैकग्राउंड समझाया और फिर फोन श्वेते को दिया। बाखर ने इसे अपनी जिंदगी के सबसे तनावपूर्ण समय बताया है। आखिर में श्वेते ने बाखर के कंधे पर हाथ रखकर कहा, 'चिंता मत करो, हो गया।;

    ये तो बस बातें थी लेकिन अभी औपचारिकताएं बाकी थीं। डालमया और सिंधिया भी चाहते थे कि साउथ अफ्रीका की वापसी हो जाए। आधे घंटे बाद डालमिया का फोन आया और उन्होंने बताया कि उनके पास सिंधिया का फोन आया जिन्होंने उनसे आईसीसी की बैठक में साउथ अफ्रीका के नाम का प्रस्ताव रखने को कहा है।

    भारत का वोट मिलते ही रास्ता साफ हो जाना था, लेकिन वेस्टइंडीज के क्लाइड वॉलकॉट तो प्रस्ताव रखना भी नहीं चाहते थे। बात फंस रही थी ऐसे में फिर भारत बीच में आया। भारत ने जोर डाला और पाकिस्तान भी इसके लिए मान गया।

    वेबसाइट ईएसपीएनक्रिकइंफो ने खेल पत्रकार बोरिया मजूमदार का हवाला देते हुए अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि नया साउथ अफ्रीका को प्रमोट करने की जल्दी थी और क्रिकेट के जरिए ही यह संभव था। अगर जुलाई की बैठक न होती तो साउथ अफ्रीका की खेलों में वापसी 1992 बार्सिलोना ओलंपिक से होती और वे 1992 विश्व कप से चूक जाते।

    शारजाह में मिली खुशखबरी

    अक्टूबर में शारजाह में 1992 में होने वाले वर्ल्ड कप को लेकर बैठक थी। मेजबान ऑस्ट्रेलिया चाहता था कि साउथ अफ्रीका इसका हिस्सा बने। इस बीच भारत में बीसीसीआई में बदलाव हुआ था। बोर्ड की सालाना बैठक में डालमिया हटाए जा चुके थे, लेकिन सिंधिया थे और वही शारजाह गए जहां उन्होंने वर्ल्ड कप में हिस्सा लेने के लिए साउथ अफ्रीका का समर्थन किया और बात बन गई। इसके कुछ दिन बाद बाखर, कृष मकेर्धुज और ज्यॉफ डेकिन भारत आए।

    ऐसे तय हुआ भारत का दौरा

    यहां किस्मत साउथ अफ्रीका के साथ दिख रही थी। भारत को पाकिस्तान के खिलाफ सीरीज खेलनी थी जो रद्द हो चुकी थी। बीसीसीआई को तुरंत कोई सीरीज चाहिए थी। उसी समय बंगाल के मुख्यमंत्री ज्योति बसु ने बाखर को बुलाया और कहा, 'अगले हफ्ते आपको कलकत्ता में क्रिकेट मैच खेलना है।'

    बाखर के लिए ये भावुक पल था। उनकी मेहनत रंग लाई थी और उनके देश की इंटरनेशनल क्रिकेट में वापसी होने जा रही थी। नवंबर 1991 में अंदर तीन वनडे मैचों की सीरीज पक्की हो गई। इसी सीरीज का पहला मैच कोलकाता जो उस समय कलकत्ता था वहां होना था तो वहीं दूसरा मैच सिंधिया ने अपने शहर ग्वालियर में कराया था। तीसरा मैच दिल्ली में हुआ था।

    10 नवंबर 1991 को ऐतिहासिक ईडन गार्डन्स स्टेडियम में साउथ अफ्रीका ने अपना पहला आधिकारिक वनडे मैच खेला। इस मैच में स्टेडियम खचाखच भरा था। भारत ने कम स्कोर वाले मैच में तीन विकेट से जीत हासिल की। भारत ने ग्वालियर में दूसरा मैच भी जीता। साउथ अफ्रीका दिल्ली में खेला गया तीसरा मैच जीतने में सफल रही। साउथ अफ्रीका की इंटरनेशनल क्रिकेट की नई यात्रा शुरू हो चुकी थी और इसमें पहला पड़ाव भारत था। यही वह ऐतिहासिक पल था जब दो देशों के बीच सदियों का अविश्वास क्रिकेट के मैदान पर दोस्ती में बदल गया।