अब तक कुछ नहीं बदला, फिर से 1932 की कहानी दोहराई गई
86 साल बाद भी चीजें बहुत ज्यादा नहीं बदलीं और इंग्लैंड के निचले क्रम ने फिर से भारतीय गेंदबाजी को बौना साबित कर दिया।
(गावस्कर का कॉलम)
1932 में भारत ने जब अपना पहला टेस्ट मैच खेला था, तब मुहम्मद निसार और अमर सिंह ने इंग्लैंड के शीर्ष क्रम को पवेलियन भेज दिया था। इंग्लैंड के पांच बल्लेबाज बहुत ही कम स्कोर पर आउट हो चुके थे। इसके बाद इंग्लैंड के निचले क्रम ने संघर्ष किया और प्रतिबद्धता व किस्मत के सहारे बेशकीमती रन जोड़कर मैच को भारत की पहुंच से बाहर कर दिया।
86 साल बाद भी चीजें बहुत ज्यादा नहीं बदलीं और इंग्लैंड के निचले क्रम ने फिर से भारतीय गेंदबाजी को बौना साबित कर दिया। उन्होंने इंग्लिश गेंदबाजों को भारतीय बल्लेबाजों को आउट करने के लिए अच्छा स्कोर दे दिया।
पिछले मैच की तरह इस बार भी जोस बटलर ने इंग्लैंड को संकट से बचाया। उनका तरीका सीधा सा है-अच्छी गेंद को रोको और बुरी गेंद पर शॉट मारो। इससे इंग्लैंड का स्कोर बोर्ड चलता रहा। उन्होंने खुशी-खुशी एक रन बनाने का कोई मौका नहीं छोड़ा। उन्होंने निचले क्रम के बल्लेबाजों में भी विश्वास जताया। स्टुअर्ट ब्रॉड ने उनके साथ अच्छा प्रदर्शन किया और भारतीयों को परेशान करने लायक रन जुटाए।भारतीय गेंदबाजों ने एक बार फिर से अच्छा प्रदर्शन किया और एलिस्टेयर कुक द्वारा दी गई अच्छी शुरुआत के बावजूद दबाव बनाया।
कुक और मोइन अली की साझेदारी अहम रही और दोनों ने अर्धशतक बनाए। इसके बाद बुमराह और इशांत ने पासा पलटा और अगले छह बल्लेबाजों को कम स्कोर पर आउट कर दिया। इससे उम्मीद जगी कि अगले दिन निचले क्रम के बल्लेबाज जल्द आउट हो जाएंगे क्योंकि दूसरी नई गेंद सिर्फ तीन ओवर पुरानी थी। मगर इसके बाद 1932 की कहानी दोहराई गई।