EXCLUSIVE: इरफान पठान ने खोले अपनी जिंदगी से जुड़े कई राज, पिता करते थे मस्जिद में काम
Irfan Pathan EXCLUSIVE इंटरनेशनल क्रिकेट से संन्यास लेने वाले इरफान पठान ने अपनी जिंदगी से जुड़े कई राज खोले हैं और बताया है कि उनके वालिद यानी पिता मस्जिद में काम करते थे।
नई दिल्ली, जागरण EXCLUSIVE: बेशक इरफान पठान ने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास ले लिया हो, लेकिन वह अपने पीछे भारतीय क्रिकेट में कई यादगार पल छोड़ गए हैं। नौ साल के अंतरराष्ट्रीय करियर के दौरान इरफान 2007 विश्व कप सहित भारत की कई यादगार जीत के गवाह रहे। शुरुआती ओवरों में विकेट चटकाने की कला उनसे बेहतर शायद किसी दूसरे भारतीय गेंदबाज को आई हो और उस दौर को संन्यास लेने के बाद भी इरफान काफी याद कर रहे हैं। अपनी कोण बनाती गेंदों से विरोधी खेमे में हलचल मचाने वाले इरफान पठान से अभिषेक त्रिपाठी ने उनके करियर से जुड़ी तमाम पहलुओं पर विस्तार से चर्चा की। पेश है उस बातचीत के प्रमुख अंश :
- सबसे पहले आप अपने सफर के बारे में बताइए। क्रिकेट में आपका सफर कैसा रहा ?
- किसी भी खिलाड़ी के करियर में उसे सफलता से ज्यादा असफलता का सामना करना पड़ता है। ऐसे में उस लिहाज से देखेंगे तो आप कभी भी खुश नहीं रह पाएंगे। आप हमेशा ज्यादा से ज्यादा सफलता हासिल करना चाहेंगे। मैं भी जब पीछे मुड़कर देखता हूं तो सोचता हूं कि मैं इससे ज्यादा सफलता हासिल कर सकता था क्योंकि जब मैं 27 साल का था तब मैं 300 विकेट ले चुका था जबकि कई खिलाड़ी इस उम्र में अपना करियर शुरू करते हैं। ऐसे में आप कह सकते हैं कि मैं इससे ज्यादा सफलता अर्जित कर सकता था लेकिन मेरा परिवेश देखेंगे तो अलग कहानी मालूम होगी। मैं वहां क्रिकेट खेलकर बड़ा हुआ हूं जहां सुविधाएं नहीं थी। मैं वहां से आया हूं जहां मैं कैनवास के जूते से गेंदबाजी किया करता था लेकिन अगर आज किसी लड़के के लिए मुझे जूते के लिए प्रयोजन करना हो तो मैं वह भी कर सकता हूं। रब का बड़ा शुक्र है कि मैं जहां से आया हूं और जो कुछ हासिल किया है, वह मेरे लिए संतोषजनक रहा है।
- संन्यास लेने से पहले आपकी किस-किस से इस विषय पर चर्चा हुई?
- मैंने अपने परिवार से बात की। वालिद (पिता) और भाई से चर्चा की। भाभी और पत्नी के अलावा सभी को एक साथ बिठाकर बात की और उन्हें बताया कि मुझे लगता है कि संन्यास की घोषणा करने का अब समय आ गया है। पिछले साल ही मैंने इसके बारे में सोचा था लेकिन कुछ कारणों से यह तब नहीं हो पाया था।
- हाल के वर्षो में आपको कमेंट्री बॉक्स में काफी देखा गया है। क्या आप पूर्णरूप से कमेंट्री पर ध्यान लगाएंगे या फिर भविष्य को लेकर कुछ अलग रणनीति है ?
--बहुत कुछ करने का इरादा है। दक्षिण सिनेमा में मैं एक फिल्म कर रहा हूं। साथ ही जम्मू-कश्मीर की क्रिकेट से भी जुड़ा हुआ हूं। मुझे कमेंट्री करने में मजा आता है क्योंकि आप इसके माध्यम से क्रिकेट से जुड़े रहते हैं। सब आपके कमेंट्री की तारीफ करते हैं तो अच्छा भी लगता है लेकिन मैं वो हर चीज करूंगा जो मुझे करना चाहिए। समाजिक कार्यो से भी मैं जुड़ा रहूंगा।
- आप किस चीज को सबसे ज्यादा याद करेंगे ?
-मैं ड्रेसिंग रूम के माहौल को बहुत याद करूंगा। आप हारते हैं तो यकीनन ड्रेसिंग रूम का माहौल मायूसी भरा रहता है लेकिन जब आप जीतते हैं तो उसका माहौल शानदार होता है। पहले या दूसरे ओवर में भारत के लिए विकेट हासिल करने के जश्न को मैं बहुत याद करूंगा।
- गली क्रिकेट से भारतीय टीम तक के सफर में आपको कई पायदानों से होकर गुजरना पड़ा है। आप किन्हें अपने इस सफर में उनके योगदान का श्रेय देना चाहेंगे?
--बहुत सारे लोग थे जिन्होंने मेरे करियर में मेरा साथ दिया। इसमें किसी एक को भूल जाऊं तो बड़ी बात नहीं होगी। दत्ता गायकवाड़, बशीर शेख, रशीद शेख, मंगला बाबर मैडम का मेरे करियर में बहुत योगदान रहा है। साथ ही टीए शेखर ने 2006/07 में मेरे गेंदबाजी एक्शन को दुरुस्त करने में मदद की थी जिसे मैं कभी नहीं भूल पाऊंगा। मेरे भाई यूसुफ पठान मेरे लिए रीढ़ की हड्डी साबित हुए हैं। एक बड़े भाई के लिए यह पचा पाना आसान नहीं होता कि उसका छोटा भाई उससे पहले सफलता हासिल करे। मैं यूसुफ भाई के भारत के लिए खेलने से कई साल पहले अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में देश का प्रतिनिधित्व कर चुका था। भाई ने मेरे लिए जिस तरह से खुद को ढाला और मुझे संभाला, यह काम कोई बड़े दिल वाला भाई ही कर सकता है। मैं हर चीज अपने भाई से सीखी। करियर में मेरी सबसे बड़ी ताकत मेरे भाई रहे हैं।
- अंतरराष्ट्रीय करियर में आपके हीरो कौन रहे?
-मैं पीछे मुड़कर देखता हूं तो मुझे लगता है कि काश मैं सर सुनील गावस्कर को कभी लाइव खेलते देख पाता। उस समय वह क्रिकेट के सबसे बड़े हीरो थे। बिना हेलमेट के तेज गेंदबाजों को उस समय खेलना जब बाउंसर की कोई सीमा नहीं थी। मेरे लिए वह एक हीरो थे। कपिल देव ने पहली बार भारत को अपनी कप्तानी मंें विश्व चैंपियन बनाया था जो मेरे लिए हीरो थे। वह एक शानदार ऑलराउंडर थे। इसी तरह सचिन तेंदुलकर भी मेरे हीरो रहे हैं।
- टी-20 विश्व कप में धौनी की कप्तानी में विश्व चैंपियन बनने वाली भारतीय टीम के आप सदस्य थे और मैन ऑफ द मैच थे। आपके हिसाब से आपके करियर का सबसे खास पल कौन सा था?
-वाकई में 2007 का टी-20 विश्व कप मेरे लिए खास था और फाइनल में शाहिद अफरीदी का विकेट लेना मेरे लिए सबसे खास था। वह विकेट पूरी रणनीति के साथ निकाला गया था। इसी तरह सीबी सीरीज में ऑस्ट्रेलिया को उसके घर में हराना भी बहुत खास रहा। तब ऑस्ट्रेलिया की टीम बहुत मजबूत हुआ करती थी। उनकी टीम में तब मैथ्यू हेडन, एडम गिलक्रिस्ट, ब्रेट ली और एंड्रयू साइमंड्स जैसे धाकड़ खिलाड़ी थे। इस टीम को हमने लगातार दो फाइनल में हराकर सीरीज जीती थी। विश्व कप जीतकर जब हम मुंबई पहुंचे थे वह पल बहुत खास था। तब ना रुकने वाली मुंबई पांच घंटे के लिए रुक गई थी।
- एक मस्जिद में रहकर खेलते हुए भारतीय टीम में आना और इस सफलता को पचाना आपके लिए कितना आसान और कितना मुश्किल रहा?
--सभी को पता है कि मेरा परिवेश कैसा रहा है। मेरे पिता मस्जिद में 14-14 घंटे काम करते थे और तब जाकर उन्हें तीन, साढ़े तीन हजार रुपये मिलते थे। इसके बाद मेरे क्रिकेटर बनने के बाद मुझे तमाम प्रयोजक मिले और भारतीय टीम के लिए खेलने के अलावा मैं आइपीएल भी खेला। मेरे वालिद ने मुझे हमेशा यह सीख दी है कि भले ही आप आसमान छूने की ख्वाहिश रखो लेकिन अपने पांव जमीन पर रखो।
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