ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल का निधन, रायपुर एम्स में थे भर्ती
ज्ञानपीठ से सम्मानित प्रख्यात साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल का 89 वर्ष की आयु में निधन हो गया। वह कुछ दिनों से रायपुर एम्स में भर्ती थे, जहाँ उन्होंने ...और पढ़ें

मंगलवार को उन्होंने एम्स में ही आखिरी सांस ली (फाइल फोटो)
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। ज्ञानपीठ से सम्मानित प्रख्यात साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल का मंगलवार को निधन हो गया। वह बीते कुछ दिनों से एम्स में एडमिट थे। 89 वर्षीय विनोद कुमार शुक्ल की तबीयत काफी नाजुक बनी हुई थी और मंगलवार को उन्होंने एम्स में ही आखिरी सांस ली।
एम्स प्रबंधन के अनुसार शुक्ल दो दिसंबर से भर्ती थे। वह गंभीर श्वसन रोग से ग्रसित थे। वह इंटरस्टिशियल लंग डिजीज (आईएडी) से भी पीड़ित थे और गंभीर निमोनिया भी हो गया था। शुक्ल को टाइप-2 मधुमेह और उच्च रक्तचाप जैसी समस्याएं भी थीं।
राजनांदगांव जिले में हुआ जन्म
विनोद कुमार शुक्ल का जन्म 1 जनवरी 1937 को छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले में हुआ। शिक्षा को पेशे के रूप में चुनकर उन्होंने अपना अधिक समय साहित्य सृजन में लगाया। वे हिंदी भाषा और साहित्य के ऐसे लेखक रहे, जिन्हें सरल भाषा, गहरी संवेदनशीलता और सृजनात्मक लेखन के लिए जाना जाता है।
उनके हिंदी साहित्य में अनूठे योगदान, विशिष्ट शैली और सृजनात्मकता के लिए वर्ष 2024 में उन्हें 59वां ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया गया। विनोद कुमार शुक्ल हिंदी के 12वें ऐसे साहित्यकार हैं, जिन्हें यह सम्मान प्राप्त हुआ, और वे छत्तीसगढ़ राज्य के पहले लेखक हैं, जिन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार से नवाजा गया। हाल ही में मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने एम्स पहुंचकर उनका हालचाल जाना था।
साहित्य और लेखन की विशेषताएं
लेखक, कवि और उपन्यासकार विनोद कुमार शुक्ल ने उपन्यास और कविता दोनों विधाओं में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनकी पहली कविता ‘लगभग जयहिंद’ (1971) प्रकाशित हुई। उनके प्रमुख उपन्यासों में ‘नौकर की कमीज’, ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’ और ‘खिलेगा तो देखेंगे’ शामिल हैं।
1979 में प्रकाशित ‘नौकर की कमीज’ पर फिल्मकार मणिकौल ने इसी नाम से फिल्म भी बनाई। उनके उपन्यास ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’ को साहित्य अकादमी पुरस्कार भी मिल चुका है। शुक्ल का लेखन सरल भाषा, संवेदनशीलता और अनूठी शैली के लिए प्रसिद्ध था। उन्होंने हिंदी साहित्य में प्रयोगधर्मी लेखन के नए आयाम स्थापित किए।
भारतीय वैश्विक साहित्य को समृद्ध किया
विनोद कुमार शुक्ल केवल कवि ही नहीं, बल्कि कथाकार भी रहे। उनके उपन्यासों ने हिंदी में एक मौलिक भारतीय उपन्यास की दिशा दी। उन्होंने लोक आख्यान और आधुनिक मनुष्य की जटिल आकांक्षाओं को समाहित करते हुए नए कथा ढांचे का निर्माण किया। उनके उपन्यासों में मध्यवर्गीय जीवन की बारीकियों को कुशलता से चित्रित किया गया। उनकी विशिष्ट भाषिक शैली, संवेदनात्मक गहराई और सृजनशीलता ने भारतीय और वैश्विक साहित्य को समृद्ध किया।
प्रमुख पुरस्कार और सम्मान
गजानन माधव मुक्तिबोध फेलोशिप (म.प्र. शासन)
रजा पुरस्कार (मध्यप्रदेश कला परिषद)
शिखर सम्मान (म.प्र. शासन)
राष्ट्रीय मैथिलीशरण गुप्त सम्मान (म.प्र. शासन)
दयावती मोदी कवि शेखर सम्मान (मोदी फाउंडेशन)
साहित्य अकादमी पुरस्कार (भारत सरकार)
हिंदी गौरव सम्मान (उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान)
मातृभूमि पुरस्कार, 2020 (‘ब्लू इज लाइक ब्लू’, अंग्रेजी कहानी संग्रह)
साहित्य अकादमी, नई दिल्ली के सर्वोच्च सम्मान महत्तर सदस्य (2021)
2024 का 59वां ज्ञानपीठ पुरस्कार (समग्र साहित्य पर)
प्रमुख कृतियां
कविता संग्रह
लगभग जयहिंद (1971)
वह आदमी चला गया नया गरम कोट पहिनकर विचार की तरह (1981)
सब कुछ होना बचा रहेगा (1992)
अतिरिक्त नहीं (2000)
कविता से लंबी कविता (2001)
आकाश धरती को खटखटाता है (2006)
पचास कविताएं (2011)
कभी के बाद अभी (2012)
कवि ने कहा – चुनी हुई कविताएं (2012)
प्रतिनिधि कविताएं (2013)
उपन्यास
नौकर की कमीज (1979)
खिलेगा तो देखेंगे (1996)
दीवार में एक खिड़की रहती थी (1997)
हरी घास की छप्पर वाली झोपड़ी और बौना पहाड़ (2011)
यासि रासा त (2016)
एक चुप्पी जगह (2018)
कहानी संग्रह
पेड़ पर कमरा (1988)
महाविद्यालय (1996)
एक कहानी (2021)
घोड़ा और अन्य कहानियां (2021)
कहानी/कविता पर पुस्तक
गोदाम (2020)
गमले में जंगल (2021)

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