विश्व में त्रिपुर सुंदरी की स्फटिक मणि से निर्मित एकमात्र प्रतिमा स्थापना शंकराचार्य ने की, एक हजार कमल फूलों से पूजा
Swaroopanand Saraswati passed away पूरे विश्व में मां त्रिपुर सुंदरी की स्फटिक मणि से निर्मित एकमात्र प्रतिमा है। शंकराचार्य आश्रम के महाराज के अनुसार शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती ने नेपाल से स्फटिक पत्थर मंगवाया था। साल के 365 दिन अलग-अलग साड़ी पहनाकर माता का श्रृंगार किया जाता है।
रायपुर, जागरण आनलाइन डेस्क। Swaroopanand Saraswati News: शंकराचार्य महाराज का छत्तीसगढ़ से गहरा नाता रहा है। शंकराचार्य महाराज ने 16 साल पहले 5 मई 2006 को शंकराचार्य आश्रम में भगवती राजराजेश्वरी त्रिपुर सुंदरी ललिता प्रेमाम्बा की स्थापना कराई थी। कहा जाता है कि पूरे विश्व में मां त्रिपुर सुंदरी की स्फटिक मणि से निर्मित एकमात्र प्रतिमा है। साल के 365 दिन अलग-अलग साड़ी पहनाकर माता का श्रृंगार किया जाता है।
यह स्फटिक नेपाल से मंगवाया गया था
शंकराचार्य आश्रम के महाराज के अनुसार शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती ने नेपाल से स्फटिक पत्थर मंगवाया था। सालों तक तराशने के बाद मां त्रिपुर सुंदरी की प्रतिमा बनवाई। साथ ही स्फटिक का श्रीयंत्र भी बनवाया था। स्थापना समारोह में स्वयं शंकराचार्य महाराज पधारे थे और उन्हीं के हाथों स्थापना, पूजन विधि संपन्ना हुई थी।
एक हजार कमल फूलों से पूजा
मालूम हो कि नवरात्र पर त्रिपुर सुंदरी माता की पूजा में एक हजार कमल के फूल अर्पित किए जाते हैं। काजू, किशमिश, बादाम, गुलाब फूल से भी अर्चन किया जाता है।
इनके दर्शन से समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती
जानकारी के अनुसार वैशाख शुक्ल सप्तमी गंगा सप्तमी पर गुरु पुष्य योग में सन 2006 को परांबा भगवती राजराजेश्वरी की स्थापना पूज्य पाद शंकराचार्य महाराज ने की थी। विश्व का यह अद्वितीय स्फटिक मणि मय श्रीविग्रह है। इनका समस्त पूजन उपचार श्री यंत्र में ही होता है। इनके दर्शन से समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। ललिता सहस्रनाम पाठ द्वारा आम किसमिस, गुलाब फूल, बादाम चावल आदि से हजार नामों का उच्चारण करके राजराजेश्वरी का पूजन किया जाता है।
गुंबद दक्षिण भारत के मंदिरों की तर्ज पर बनाया गया
बोरियाकला स्थित शंकराचार्य आश्रम का मंदिर दक्षिण भारत के मंदिरों की तर्ज पर तंजावुर शैली में बनाया गया है। इसमें 10 महाविद्या और 64 योगिनी की मूर्तियां बनी हैं। मुख्य द्वार पर लक्ष्मी के दो रूप श्यामा और दंडिनी के रूप में विराजित किया गया है। श्यामा रूप यानी जो भक्तों को अपनी ओर खींचे तथा दंडिनी रूप जो दंड देने वाली हो।
शंकराचार्य आश्रम के शिष्यों में शोक की लहर
जानकारी हो कि तीन साल पहले उनका छत्तीसगढ़ आगमन हुआ था। तब वे बिलासपुर, कवर्धा, रायपुर समेत अन्य शहरों में धार्मिक आयोजन में शामिल हुए थे। जगद्गुरु शंकराचार्य ज्योतिर्मठ एवं द्वारका शारदा पीठाधीश्वर स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज का देवलोकगमन हो जाने से बोरियाकलां स्थित शंकराचार्य आश्रम के शिष्यों में शोक की लहर व्याप्त है।
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