छत्तीसगढ़ में विकसित कुसुम की नई प्रजातियों के बीज का तेल रोकेगा हृदयाघात, लगातार उपयोग दिल के लिए सेहतमंद
कुसुम का वैज्ञानिक नाम कार्थमस टिंक्टरियस है। इसके फूलों के बीज से निकले तेल में ऐसे तत्व मिले हैं जो दिल की बीमारियों के खतरे को कम करते हैं। इसमें विटामिन एफ जो असंतृप्त वसी अम्ल ओमेगा 3 व ओमेगा 6 कहलाते हैं की संतुलित मात्रा मिली है।

रायपुर, जेएनएन। इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिकों ने कुसुम भाजी की ऐसी तीन प्रजातियां विकसित की हैं, जिनमें हृदयाघात रोकने की क्षमता है। कुसुम का वैज्ञानिक नाम कार्थमस टिंक्टरियस है। इसके फूलों के बीज से निकले तेल में ऐसे तत्व मिले हैं जो दिल की बीमारियों के खतरे को कम करने का काम करते हैं। इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय में परीक्षण के बाद भारतीय तिलहन अनुसंधान केन्द्र हैदराबाद में भी किए गए परीक्षण में विकसित की गई नई किस्म में से एक में 80 प्रतिशत तक संतृप्त व असंतृप्त वसा होना पाया गया है।
इसमें विटामिन एफ जो असंतृप्त वसी अम्ल ओमेगा 3 व ओमेगा 6 कहलाते हैं की संतुलित मात्रा मिली है। इसमें विटामिन ए, विटामिन ई, टोकोफेराल व विटामिन के की मात्रा भी मिली है जो मधुमेह समेत अन्य रोगों के रोकथाम में उपयोगी है। वर्तमान में भारत में प्रचलित कुसुम तेल में सामान्यतः 10 से 20 प्रतिशत ही ओमेगा 3 व ओमेगा 6 की मात्रा होती है।
लगातार उपयोग दिल के लिए सेहतमंद
वैज्ञानिक शोधों के अनुसार यह वही अम्ल है जो हृदय की धमनियों में वसा को जमने नहीं देता है। शरीर में खराब कोलेस्ट्रोल को कम करने का काम भी करता है। इसके लगातार उपयोग से दिल सेहतमंद रहेगा।
यूनाइटेड किंगडम से प्रकाशित प्रसिद्ध मेडिकल जर्नल लैंसेट की मानें तो 2019 के बाद से भारत में हर साल मरने वाले 100 में से 28 लोगों की मौत दिल की बीमारी से हो रही है। यह आंकड़े डराने वाले हैं। इस डर को छत्तीसगढ़ के कृषि विज्ञानियों का नया शोध कुछ कम कर सकता है। यानी आपको तला-भुना खाते समय ज्यादा डरने की जरूरत नहीं होगी।
दो साल में किसानों तक पहुंचेगी नई प्रजातियां
शोध में शामिल विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिक डा. राजीव श्रीवास्तव ने बताया कि छत्तीसगढ़ में बर्रे भाजी जिसे कुसुम या सेफ फ्लावर भी कहते हैं अत्यंत चाव से खाई जाती है। इसकी तीन नई प्रजातियां विकसित की गई हैं। दो प्रजातियों को भारतीय तिलहन अनुसंधान केन्द्र हैदराबाद ने अधिसूचित कर लिया है। तीसरी प्रजाति अभी प्रयोग के स्तर पर है। इसे किसानों तक पहुंचने में दो साल का समय लगेगा।
अधिक उपज व तेल, खेती होगी फायदेमंद
कुसुम की यह तीनों नई किस्में कृषकों के लिए भी फायदेमंद रहेंगी। भारत सरकार के तिलहन अनुसंधान केन्द्र हैदराबाद ने इन किस्मों में तेल की अधिक मात्रा निकलने और अधिक पैदावार की पुष्टि की है। छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश के लिए इन प्रजातियों को उपयुक्त पाया गया है। पहली प्रजाति सीजी कुसुम-1 में तेल 33 प्रतिशत तक मिला है।
125 दिन में फसल पककर यह 1740 किलो प्रति हेक्टेयर उत्पादन देगी। दूसरी प्रजाति आईजीकेवी कुसुम में तैलीय मात्रा 35 प्रतिशत मिली है। यह 135 दिन में पकेगी व 1800 किलो प्रति हेक्टेयर उत्पादन देगी। तीसरी प्रजाति को सबसे ज्यादा क्रांतिकारी बताया जा रहा है। उसका नाम अभी तय नहीं किया गया है। इस किस्म में 40 प्रतिशत तैलीय मात्रा मिली है। 145 दिन में यह 1800 किलो प्रति हेक्टेयर उत्पादन देगी।
इन्होंने कहा…
विश्वविद्यालय में विकसित की गई कुसुम की नई प्रजातियों में ऐसे गुण मिले हैं जो शरीर के लिए फायदेमंद होंगे। प्रदेश में इसकी भाजी खाई जाती है, जिसे किसान बाजार में बेच सकते हैं। फूलों के पंखुडि़यों से खाद्य रंग बनाए जाते हैं। बीज से तेल मिलता है। सूखाग्रस्त इलाके में भी इसकी फसल ली जा सकती है।
-डा विवेक त्रिपाठी, संचालक कृषि अनुसंधान विभाग
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर
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