छत्तीसगढ़ में हर साल हजार में से तीन सौ बच्चों की प्रिमेच्योर डिलवरी, जान बचाने की अस्पताल में दवा नहीं
शिशु रोग विशेषज्ञ अनुसार 32 सप्ताह से पहले जन्मे नवजात के फेफड़े अविकसित होते हैं। सरफेक्टेंट दवा बेहद जरूरी है। दवा न मिलने पर गिनती के बच्चे ही दूसरे इलाज से बच पाते हैं। दवा से 80 प्रतिशत तक बच्चों की जान बचाई जा सकती है।

रायपुर, ऑनलाइन डेस्क। छत्तीसगढ़ में हर साल हजार में से तीन सौ बच्चों की प्रिमेच्योर डिलवरी होती है। ऐसे बच्चों के फेफड़े अविकसित होते हैं। इस अवस्था को रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम कहा जाता है। दुर्भाग्य से ऐसे मरीजों की जान बचाने के लिए जिस सरफेक्टेंट दवा की जरूरत पड़ती है, वह किसी भी शासकीय अस्पताल या मेडिकल कालेज अस्पताल में उपलब्ध नहीं है।
राज्य के सबसे बड़े आंबेडकर अस्पताल में पिछले छह माह से सरफेक्टेंट दवा नहीं है। यहां हर माह में 150 से अधिक ऐसे बीमार नवजात आते हैं। इनके लिए माह में दवा की पांच सौ से अधिक वायल की जरूरत पड़ती है। इस दवा की कीमत 12 से 15 हजार रुपये प्रति वायल है।
मालूम हो कि सरकारी मेडिकल कालेजों व अस्पतालों में दवा उपलब्ध न होने से आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के मरीजों को काफी परेशानी उठानी पड़ रही है।
रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम
शिशु रोग विशेषज्ञ अनुसार 32 सप्ताह से पहले जन्मे नवजात के फेफड़े अविकसित होते हैं। सरफेक्टेंट दवा बेहद जरूरी है। दवा न मिलने पर गिनती के बच्चे ही दूसरे इलाज से बच पाते हैं। दवा से 80 प्रतिशत तक बच्चों की जान बचाई जा सकती है।
चिकित्सा शिक्षा विभाग संचालक के अनुसार स्थानीय स्तर पर दवाओं की जल्द खरीदी करने के लिए मेडिकल कालेज प्रबंधनों को निर्देशित किया गया है।
आंबेडकर अस्पताल के शिशु रोग विभाग में इलाज की वर्षवार स्थिति वर्ष - भर्ती - मौत 2016 - 3,234 - 265 2017 - 3,903 - 415 2018 - 4,093 - 382 2019 - 3,237 - 208 2020 - 4,197 - 468 2021 - 4,501 - 495 राज्य में शिशु व बाल मृत्यु दर, प्रति 1,000 जीवित जन्म पर शिशु - प्रतिशत नवजात मृत्यु दर (एनएनएमआर) - 32.4 शिशु मृत्यु दर - 44.3 पांच साल से कम उम्र की मृत्यु दर - 50.4 बाक्स प्रदेश में प्रसव सुविधाओं की स्थिति 85.7 प्रतिशत संस्थागत प्रसव राज्य में 15 प्रतिशत तक घरेलू प्रसव हुए 5.8 प्रतिशत घरेलू जन्म कुशल स्वास्थ्य कर्मियों से हमें बजट मिल गया है।
जानकारी हो कि चिकित्सा शिक्षा विभाग (डीएमई) के अनुसार छह माह पूर्व छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विसेस कारपोरेशन (सीजीएमएससी) को दवा के लिए मांग भेजी गई है, लेकिन अब तक दवा नहीं मिली है। पिछले वर्ष डीएमई को मिले 350 वायल 2021 में डीएमई को 350 वायल दवा उपलब्ध कराई गई थी। इसके बाद यह दवा नहीं दी गई है। दवा की टेंडर प्रक्रिया में लंबा समय लग सकता है। इसे देखते हुए डीएमई को दवा खरीदी के लिए 3.5 करोड़ रुपये दिए गए हैं। इसका भी उपयोग नहीं हो पाया है।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।