बंद खदान से खुला पर्यटन और रोजगार का द्वार, पीएम मोदी ने भी सराहा
एसईसीएल में वर्तमान में 67 कोयला खदानें संचालित हैं। 20 से अधिक खदानों में खनन बंद कर दिया गया है। पानी भरने के बाद ये खुली खदानें आसपास के गांव वालों के लिए खतरनाक हो गई थीं। इस संकट में ही संभावना नजर आई और ईको टूरिज्म स्पाट बनाया गया।

कोरबा, प्रदीप बरमैया। कोल इंडिया से संबद्ध साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (एसईसीएल) के बिश्रामपुर स्थित बंद केनापारा कोयला खदान को ईको-टूरिज्म स्पाट के रूप में विकसित किया गया है। फ्लोटिंग (तैरता हुआ) रेस्टोरेंट व नौका विहार के अलावा मछली पालन भी किया जा रहा है। इससे स्थानीय लोगों को आजीविका का साधन मिला है। इस प्रयास की प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ट्वीट कर सराहना की है।
बनाया गया ईको टूरिज्म स्पॉट
एसईसीएल में वर्तमान में 67 कोयला खदानें संचालित हैं। 20 से अधिक खदानों में खनन बंद कर दिया गया है। पानी भरने के बाद ये खुली खदानें आसपास के गांव वालों के लिए खतरनाक हो गई थीं। इस संकट में ही संभावना नजर आई और ईको टूरिज्म स्पाट बनाया गया।
1472 हेक्टेयर क्षेत्र में फैले, बिश्रामपुर क्षेत्र की 10 खदानों ने वर्ष 1961 से अपने संचालन के 57 वर्षों के दौरान 387 लाख टन से अधिक कोयला दिया। इससे राष्ट्र की ऊर्जा सुरक्षा में योगदान देने वाले छत्तीसगढ़ की विरासत को मजबूती मिली है।
वर्तमान में बिश्रामपुर की बंद केनापारा कोयला खदान (ओपनकास्ट) को तैयार कर लिया गया है। पर्यटन स्थल के रूप में इसे विकसित करने के पीछे दो प्रमुख वजह है, पहला भौतिक परिस्थिति और दूसरा राष्ट्रीय राजमार्ग-43 से कनेक्टिविटी।
तीन दशकों से बंद पड़ी इस खदान की सूरत तब बदल गई जब इसे एक आकर्षक जल संसाधन के रूप में विकसित किया गया। 1.75 किमी लंबाई और लगभग 39 फीट गहराई के साथ 10.57 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में फैले जल स्रोत की सुंदरता देखते ही बनती है।
महिला सशक्तीकरण पर भी जोर
एसईसीएल के प्रयास से छत्तीसगढ़ के मत्स्य पालन विभाग ने मछली पालन और नौका विहार के लिए अवसर यहां विकसित की। स्थानीय ग्रामीणों व महिलाओं को प्रशिक्षित कर समिति बनाई गई और महामाया मत्स्य पालन सोसायटी के माध्यम से यहां ग्रामीण मछलीपालन करते हैं।
186 गरीब महिलाओं का समूह नौका विहार को संभाल रही हैं। तैरता रेस्टोरेंट खास आकर्षण है। विभाग के अनुसार 100 से अधिक पर्यटक प्रतिदिन यहां पहुंच रहे हैं।
प्रधानमंत्री ने बताया सराहनीय प्रयास
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इससे खासे प्रभावित हुए हैं। उन्होंने ट्वीट कर कहा है कि सतत विकास और ईको-टूरिज्म को आगे बढ़ाने के लिए यह प्रयास सराहनीय है।
वहीं अब इससे प्रेरित होकर कोरबा की 30 साल पहले बंद मानिकपुर खदान समेत आधा दर्जन अन्य खदानों को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की तैयारी तेज कर दी गई है।
एथनिक पर्यटन केंद्र की योजना
कोयला खदान पर्यटन के लिए अधिक पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए, दो मोटर नौकाओं द्वारा सेवा, फ्लोटिंग राफ्ट, किसान काटेज, बैठने का कमरा और स्टोर रूम जैसी अन्य सुविधाएं उपलब्ध कराई गई हैं। भविष्य की योजना साइट को ईको-एथनिक पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित करने की है, जिसमें भूनिर्माण, नवीनतम जल खेलों को बढ़ावा देना, ठहरने के लिए काटेज और आगंतुकों के लिए मनोरंजन को आगे बढ़ाने के लिए एक सांस्कृतिक केंद्र का निर्माण शामिल होगा।
मानिकपुर पोखरी में भी अब तेज होगा कार्य
30 साल पहले बंद मानिकपुर कोयला खदान अब झील की तरह नजर आता है। इसकी लंबाई एक किलोमीटर, चौड़ाई 300 मीटर है। वर्ष 1966 में सोवियत रूस के तकनीकी परामर्श से यहां कोयला उत्खनन शुरू हुआ था। इसे भी पर्यटन क्षेत्र के रूप में विकसित करने की योजना है।
यहां फूड जोन, कैफेटेरिया, रेस्टोरेंट, व्यूइंग पाइंट, सेल्फी पाइंट, पार्किंग जोन, हर्बल जोन, कैंपिंग, साइकिल ट्रैक, आर्चरी, वाकिंग ट्रैक, नेचुरल ट्रैक, फाउंटेन, गार्डन, गजेबो, ओपन जिम, ट्री हाउस की सुविधा होगी। उम्मीद जताई जा रही है कि यहां भी जल्द काम शुरू होगा।
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