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नवरात्रि 2022: हजारों साल पुराने इस मंदिर में लगा भक्‍तों का तांता, श्रद्धा से मांगी गई हर मुराद मां करती हैं पूरी

राजनांदगांव जिले के डोंगरगढ़ी पहाड़ी पर 1600 फीट की ऊंचाई पर स्थित मां बम्‍लेश्‍वरी का मंदिर दो हजार साल से भी अधिक पुराना है। नवरात्रि के समय में यहां भारी संख्‍या में श्रद्धालु पहुंच रहे हैं। अष्‍ठमी के दिन यहां दर्शन के लिए लंबी कतारें लगती हैं।

By JagranEdited By: Arijita SenPublished: Thu, 29 Sep 2022 10:35 AM (IST)Updated: Thu, 29 Sep 2022 10:35 AM (IST)
नवरात्रि 2022: हजारों साल पुराने इस मंदिर में लगा भक्‍तों का तांता, श्रद्धा से मांगी गई हर मुराद मां करती हैं पूरी
मां बम्‍लेश्‍वरी के दरबार हर मनोकामना होती है पूरी

रायपुर, जागरण डिजिटल डेस्‍क। नवरात्र (Navratri) के त्‍यौहार की शुरुआत हो चुकी है। इस दौरान भक्‍तजनों में उत्‍साह चरम पर है और देश भर में देवी मां के मंदिर में लोगों का तांता लगा हुआ है। हम इस मौके पर आपको एक ऐसे ही चमत्‍कारी मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जां दूर-दूर से श्रद्धालु मां के दर्शन के लिए आते हैं।

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यह मंदिर छत्‍तीसगढ़ में स्थित राजनांदगांव जिले (Rajnandgaon) के डोंगरगढ़ी पहाड़ी (Dongargarh) पर 1,600 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। यहां स्‍थापित मंदिर में मां बम्लेश्वरी (Maa Bamelshwari) विराजीं हैं। मालूम हो कि इस मंदिर का अभी नवीनीकरण किया जा रहा है और इसका निर्माण कार्य वर्ष 2023 तक पूरा होगा। यह केंद्र सरकार के प्रसाद योजना के तहत स्वीकृत 46 करोड़ रुपये से हो रहा है।

यहां साल में दो बार (चैत व क्वांर) में नवरात्र पर लगने वाले मेले में करीब 20 लाख भक्त दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं। सामान्य दिनों में भी हजारों श्रद्धालु माई के दरबार में हाजिरी लगाने आते हैं। देश के अलावा विदेशों से भी भक्त मां बम्लेश्वरी मंदिर में अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए आते हैं।

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जानिए मां बम्लेश्वरी मंदिर का इतिहास

मां बम्लेश्वरी शक्तिपीठ का इतिहास 2,200 वर्ष पुराना हैं। प्राचीन समय में डोंगरगढ़ वैभवशाली कामाख्या नगरी के रूप में जाना जाता था। मां बम्लेश्वरी को राजा विक्रमादित्य की कुल देवी भी कहा जाता है जो मध्यप्रदेश में उज्जयन के एक प्रतापी राजा थे। इतिहासकारों और विद्वानों ने इस क्षेत्र को कल्चूरी काल का पाया है।

मंदिर की अधिष्ठात्री देवी मां बगलामुखी हैं, जिन्हें मां दुर्गा का स्वरूप माना जाता है। मां को मंदिर में बम्लेश्वरी के रूप में पूजा जाता है। मां बम्लेश्वरी के दरबार में पहुंचने के लिए 1,100 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती है। वैसे यहां रोप-वे की भी सुविधा है।

पहाड़ी के नीचे छोटी बम्लेश्वरी का मंदिर है, जिन्हें बड़ी बम्लेश्वरी की छोटी बहन कहा जाता है। यहां बजरंगबली मंदिर, नाग वासुकी मंदिर, शीतला मंदिर भी है।

अष्‍टमी पर दर्शन के लिए करना पड़ता है घंटों इंतजार

नवरात्र के दौरान ही नहीं, सामान्य दिनों में भी देश के अलावा विदेशों के भक्त मां बम्लेश्वरी के दरबार में हाजिरी लगाने के लिए पहुंचते हैं। कोई पैदल तो कोई अपने साधन से मां की चौखट में आस्था के फूल चढ़ाने पहुंचते हैं। मान्यता है कि यहां सच्‍चे मन से मांगी की हर मुराद पूरी होती है। यहां अष्‍टमी के दिन माता के दर्शन करने घंटों लाइन में खड़ा रहना पड़ता है। मंदिर का पट सुबह चार बजे से ही खुल जाता है। दोपहर में एक से दो के बीच माता के द्वार का पट बंद किया जाता है।

कोरोना के बाद इस बार उत्‍साह दोगुना

ट्रस्टी संजीव गोमास्ता ने कहा, कोरोना संक्रमण के चलते दो वर्षों से काफी बंदिशें थीं। क्वांर नवरात्र में इस बार माता के भक्तों में जमकर उत्साह है। रोजाना बड़ी संख्या में श्रद्धालु मां बम्लेश्वरी के दर्शन करने के लिए पहुंच रहे हैं। रोप-वे से भी दर्शनार्थी आना-जाना कर रहे हैं। माता के दरबार में बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने मनोकामना ज्योत प्रज्ज्वलित किए हैं।

दर्शन कर खुशी-खुशी लौट रहे श्रद्धालु

दर्शनार्थी विकास सरपायले ने कहा, मां बम्लेश्वरी के दर्शन करने हर साल आता हूं। इस बार प्रशासन और मंदिर ट्रस्ट ने भी काफी अच्छी व्यवस्था की है। मां बम्लेश्वरी हर श्रद्धालुओं की मनोकामनाओं को पूरा करती हैं। कोरोना के चलते दो सालों से उत्साह फीका था। लेकिन इस बार काफी चमक है। आसानी से मां बम्लेश्वरी के दर्शन करने को मिला।

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