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    राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव : झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम से लोक कलाकार देंगे हो नृत्य की प्रस्तुति

    फसल की बुआई से लेकर कटाई एवं उसके बाद की सभी गतिविधियों को अपनी प्रस्तुति में उकेरेंगे। नृत्य की शुरुआत झारखंडी जोहार से होती है जिसमें दर्शकों का लोकरीति से स्वागत एवं अभिनंदन किया जाता है। विभिन्न राज्यों और केन्द्रशासित प्रदेशों के लगभग 15 सौ कलाकार अपनी प्रस्तुति देंगे।

    By Jagran NewsEdited By: Vijay KumarUpdated: Mon, 31 Oct 2022 09:06 PM (IST)
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    खेती की बुआई, कटाई और इस दौरान लोकजीवन की प्रमुख गतिविधि, विविध परंपराओं से जुड़े रिवाजों को अभिव्यक्त किया जाता।

    रायपुर, डिजिटल डेस्क : छत्तीसगढ़ के 23 वें स्थापना दिवस के अवसर पर छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव एवं राज्योत्सव का तीन दिवसीय आयोजन राजधानी रायपुर स्थित साइंस कॉलेज मैदान में किया जा रहा है। इस महोत्सव में झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम की हो सांस्कृतिक दल के लोक कलाकार "हो नृत्य" की प्रस्तुति देंगे। झारखंड की परंपरा में इस नृत्य में फसल की बुआई से लेकर फसल की कटाई एवं उसके पश्चात की सभी गतिविधियों को पारंपरिक वाद्ययंत्रों की संगीतमय प्रस्तुति के माध्यम से दिखाया जाता है। दल के निर्देशक सोमाय देवगम एवं जुलियानी कोड़ा ने बताया कि झारखंड की लोक परंपरा में हो लोकनृत्य जनजातीय हो त्यौहार के अवसर पर किया जाता है। जिसमें खेती की बुआई, कटाई और इस दौरान लोकजीवन की प्रमुख गतिविधि, विविध परंपराओं से जुड़े रिवाजों को अभिव्यक्त किया जाता है, यह नृत्य लोकजीवन की शैली का प्रतिबिंब है।

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    टाटा-टाटा इस नृत्य में प्रस्तुतियों के अलग-अलग चरण

    हो लोक नृत्य लगभग 20-30 मिनट तक प्रस्तुत किया जाता है। मूलतः 21 लोगों का समूह इस नृत्य को प्रस्तुत करते हैं, जिसमें 14 महिलाएं एवं 7 पुरुष लोक कलाकार शामिल होते हैं। इस नृत्य की शुरुआत झारखंडी जोहार से होती है, जिसमें दर्शकों का लोकरीति से स्वागत एवं अभिनंदन किया जाता है। इसके पश्चात मांगे पर्व, बाहा पर्व, जंगल में शिकार का दृश्य, गोबर का छिड़काव, धान बुनना, धान रोपना, हेरोअः पर्व, धान काटना, मछली पकड़ना, नहाना, फूल तोड़कर लगाना, हड़िया पिलाना, जोड़ी बनाना, संदेश, परिवार नियोजन, अंतिम सलामी और टाटा-टाटा इस नृत्य में प्रस्तुतियों के अलग-अलग चरण हैं।

    हो सांस्कृतिक दल” के कलाकारों ने प्रशंसा जाहिर की है

    झारखंड से आए “हो सांस्कृतिक दल” के कलाकारों ने छत्तीसगढ़ आने पर प्रशंसा जाहिर करते हुए कहा कि छत्तीसगढ़ की संस्कृति और परंपरा के विषय में बहुत सुन रखा था, आज यहां आकर बहुत अच्छा लग रहा है, हम सभी अपनी प्रस्तुति के लिए उत्साहित हैं। उन्होंने राष्ट्रीय आदिवासी महोत्सव का आयोजन में शामिल होने हेतु आमंत्रित करने के लिए छत्तीसगढ़ सरकार और मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल का धन्यवाद किया है।

    केन्द्रशासित प्रदेशों के 15 सौ कलाकार प्रस्तुति देंगे

    उल्लेखनीय है कल से शुरू हो रहे राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव में मोजाम्बिक, टोगो, मंगोलिया, रूस, इंडोनेशिया, सर्बिया, न्यूजीलैंड, इजिप्ट और मालदीव कलाकारों सहित देश के विभिन्न राज्यों और केन्द्रशासित प्रदेशों के लगभग 15 सौ कलाकार अपनी प्रस्तुति देंगे।

    उड़ीसा की घुडका जनजाति के कलाकार पहुंचे राजधानी

    रायपुर : उड़ीसा की घुमंतु जनजाति लकड़ी और चमड़े से बने वाद्ययंत्रों के साथ मनमोहक प्रस्तुति देंगे। राजधानी रायपुर कें साइंस कॉलेज मैदान में एक नवंबर से शुरू हो रहा है। राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव में उड़ीसा के घुडका जनजाति के कलाकार पहली बार शामिल होने जा रहे हैं। ये कलाकार मुख्य मंच पर घबुकुडु नृत्य की प्रस्तुति देंगे। घबुकुडु नृत्य में लगभग 22 कलाकार अपने परंपरागत् परिधानों में सज-धजकर घुडका गीत गाते हुये नृत्य करते हैं। इस नृत्य में लकड़ी और चमड़े से बने वाद्य यंत्र घुडका का उपयोग किया जाता है। नृत्य में पुरूष और महिला दोनों शामिल होते है।

    जरूरतों को पूरी तरह वन संसाधनों पर निर्भर जनजाति

    नृत्य समूह के मुखिया सुश्री रीमा बाघ ने बताया कि महिलायें कपटा (साड़ी), हाथों में भथरिया और बदरिया, गले में पैसामाली, भुजाओं में नागमोरी पहन कर नृत्य करती है। इसी प्रकार पुरूष लंगोट (धोती) और सिर में खजूर की पत्ती से बनी टोपी विशेष रूप से पहनते है। उन्होंने बताया कि घुडका जनजाति घुमन्तु प्रजाति है, इस नृत्य का प्रदर्शन वे जंगल से बाहर भ्रमण के दौरान आम जनता के समक्ष प्रस्तुत करते हैं। यह जनजाति भोजन से लेकर अन्य जरूरतों के लिए पूरी तरह वन संसाधनों पर निर्भर रहती है। ये अपने परंपरागत् देवी-देवाताओं में गहरी आस्था रखते हैं।