Jagdalpur: पुरातात्विक स्थलों और जलप्रपातों के संग कीजिए जगदलपुर में धार्मिक पर्यटन
रामायणकालीन दंडकारण्य क्षेत्र यानी छत्तीसगढ़ का बस्तर संभाग आदिवासी संस्कृति पुरातात्विक धरोहरों और धार्मिक पर्यटन स्थलों के लिए प्रसिद्ध है। जहां रोमांच के साथ प्रकृति के सौंदर्य आस्था और प्राचीन इतिहास का संगम देखने को मिलता है। इनमें आदिवासियों के पूर्वजों का डेढ़ से दो हजार वर्ष तक का इतिहास संरक्षित है। यहां मृतक स्तंभ के रूप में पत्थर के ऐसे कई स्थल हैं जो मेगालिथिक काल के हैं।

जगदलपुर, विनोद सिंह। अगर आप मेगालिथिक काल के स्थलों को देखने की इच्छा रखते हैं, जलप्रपात का रोमांच और धार्मिक पर्यटन भी करना चाहते हैं तो एक बार बस्तर की सैर जरूर कीजिए। रामायणकालीन दंडकारण्य क्षेत्र यानी छत्तीसगढ़ का बस्तर संभाग आदिवासी संस्कृति, पुरातात्विक धरोहरों और धार्मिक पर्यटन स्थलों के लिए प्रसिद्ध है। यहां पर्यटन केंद्रों का ऐसा समागम है, जहां रोमांच के साथ प्रकृति के सौंदर्य, आस्था और प्राचीन इतिहास का संगम देखने को मिलता है।
बस्तर के दक्षिण क्षेत्र में आदिवासियों में पूर्वजों की स्मृति सहेजकर रखने के लिए मृतक स्तंभ बनाने की परंपरा है। इनमें आदिवासियों के पूर्वजों का डेढ़ से दो हजार वर्ष तक का इतिहास संरक्षित है। यहां मृतक स्तंभ के रूप में पत्थर के ऐसे कई स्थल हैं, जो मेगालिथिक काल के हैं। दंतेवाड़ा जिले में 137 मृतक स्तंभों का सरकार ने अभिलेखीकरण किया है। इन स्थलों में कुछ को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा हेरिटेज साइट का दर्जा मिला हुआ है। इन अवशेषों में कुछ को यूनेस्को के विश्व धरोहर स्थल में शामिल कर संरक्षित करने की मांग भी लंबे समय से उठ रही है। मातागुड़ी, देवगुड़ी, घोटूल के साथ ही मृतक स्थलों के सुंदरीकरण का काम भी किया जा रहा है। यहां शोध पर्यटन को बढ़ावा देने की तैयारी है।
दंतेवाड़ा जिला मुख्यालय से 15 किलोमीटर दूर से बैलाडीला मार्ग पर राजमार्ग के किनारे गामावाड़ा में सैकड़ों की संख्या में एक ही स्थल में मृतक स्तंभ हैं। इन्हें देखने हर वर्ष बड़ी संख्या में लोग पहुंचते हैं। कटेकल्याण क्षेत्र में भी मृतक स्तंभ अवस्थित हैं। इनमें कुछ को संरक्षित स्थल घोषित किया गया है। एक मृतक स्तंभ जगदलपुर-गीदम मार्ग पर डिलमिली में हैं। भारतीय मानव विज्ञान सर्वेक्षण उपकेन्द्र जगदलपुर में भी लकड़ी एवं पत्थर के 20-25 मृतक स्तंभ संरक्षित कर प्रदर्शित किए गए हैं।
आदिवासी संस्कृति का प्रतिनिधित्व : डा साहू
भारतीय मानव विज्ञान सर्वेक्षण उपकेंद्र बस्तर क्षेत्रीय जोन के निदेशक डा पीयूष साहू का कहना है कि मृतक स्तंभ गोंड जाति समूह की बस्तर की आदिवासी संस्कृति की देन हैं। दंडामी माड़िया जनजाति के लोग गांव के प्रमुख व्यक्ति की स्मृति में उनकी मृत्यु के बाद सड़क किनारे स्मारक स्तंभ स्थापित करते आ रहे हैं। लकड़ी और पत्थर के इन स्तंभों में बनी आकृतियां जीवन चक्र, पर्यावरण, सामुदायिक जीवन एवं लोक विश्वासों का प्रतिनिधित्व करती है।
लोगों के लिए शोध का विषय
बस्तर की महापाषणीय संस्कृति की दुर्लभ संपदा दुनिया भर के लोगों के लिए शोध की विषयवस्तु रही है। माड़िया मर्डर एवं सुसाइड में प्रसिद्ध अंग्रेज मानवविज्ञानी वेरियर एलविन ने मृतक स्तंभ स्थापित करने की पंरपरा का विस्तार से वर्णन किया है। एक अन्य अंग्रेज ग्रीकसन ने माड़िया गोंड्स आफ बस्तर किताब में मृतक स्तंभ स्थापित करने की संस्कृति पर प्रकाश डाला है।
मां दंतेश्वरी मंदिर और जलप्रपात का रोमांच
दंतेवाड़ा में मां दंतेश्वरी और भैरवबाबा का मंदिर प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। यहां से 22 किमी दूर बैलाडीला के पहाड़ पर तीन हजार फीट की उंचाई पर स्थित 12वीं शताब्दी की ढोलकल गणेशजी की प्रतिमा पर्यटकों को रोमांच के साथ लुभाती है। इंद्रावती नदी के तट पर स्थित बारसूर प्रसिद्ध पर्यटन और धार्मिक आस्था का केंद्र हैं। यहां दो दर्जन से अधिक छोटे-बड़े पत्थर के मंदिर हैं। दंतेवाड़ा से 42 किमी दूर फूलपाड़ और 30 किमी दूर झारालावा जलप्रपात पर्यटकों के रोमांच को बढ़ा देता है। दंतेवाड़ा की फागुन मंडई की ख्याति भी पूरे देश में हैं।
ऐसे पहुंचे और यहां ठहरें
जगदलपुर से 85 किमी की दूरी पर दंतेवाड़ा स्थित हैं। यह विशाखापटनम-किरंदुल रेलमार्ग से जुड़ा है। बंगाल, ओडिशा की ओर से जगदलपुर तक रेल में आकर यहां से रेल और सड़क से यहां आ-जा सकते हैं। हवाई मार्ग से आने वालों के लिए निकटतम हवाई अड्डा मां दंतेश्वरी एयरपोर्ट जगदलपुर है। ठहरने के लिए दंतेवाड़ा में होटल और बचेली-किरंदुल में सरकारी विश्रामगृह भी हैं।
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