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    Bastar Dussehra 2023: देश के इस राज्य में सबसे लंबे समय तक मनाया जाता है दशहरे का पर्व, लेकिन नहीं होता 'रावण दहन'

    By Jagran NewsEdited By: Achyut Kumar
    Updated: Sun, 22 Oct 2023 06:25 PM (IST)

    Bastar Dussehra 2023। छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले का दशहरा देश ही नहीं बल्कि दुनिया में प्रसिद्ध है। इस बार यह पर्व 107 दिनों तक मनाया जाएगा। इस दशहरे का सबसे खास बात यह है कि इसमें रावण का दहन नहीं किया जाता है। यह भगवान राम से भी संबंधित नहीं है। पढ़ें यह खास रिपोर्ट...

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    देश ही नहीं, दुनिया में भी प्रसिद्ध है बस्तर का दशहरा

    डिजिटल डेस्क, बस्तर। Bastar Dussehra 2023: छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले का दशहरा देश ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। बस्‍तर में यह पर्व जिस अंदाज में मनाया जाता है वह न केवल अनूठा है बल्‍क‍ि दुनिया में सबसे ज्‍यादा दिनों तक मनाया जाने वाला पर्व भी बन जाता है। यहां आमतौर पर यह पर्व 75 दिनों का होता है, लेकिन इस बार यह पर्व 107 तक दिन तक मनाया जाएगा।

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    इस बार बस्तर दशहरा की कब से हुई शुरुआत?

    इस बार बस्तर दशहरा की शुरुआत पाठ जात्रा रस्म के साथ 17 जुलाई से हुई। वहीं, रथ निर्माण का काम 27 सितंबर से डेरी गडाई रस्म के साथ शुरू हुआ, जबकि दशहरे की शुरुआत 14 अक्टूबर को काछनगादी रस्म के साथ हुई। इस दिन काछनगुड़ी देवी की विशेष पूजा की जाती है।

    दशहरे तक चलाया जाएगा फूल रथ

    दशहरा तक हर दिन फूल रथ चलाया जाएगा, जिसमें चार चक्के होंगे। दशहरे के दिन दंतेश्वरी मंदिर से कुम्हड़ाकोट तक विजय रथ परिक्रमा होगी। दशहरे के के पर्व का समापन 31 अक्टूबर को होगा। इसी दिन बस्तर की देवी मावली माता की विदाई होगी।

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    क्यों खास है बस्तर का दशहरा?

    आमतौर पर दशहरे का संबंध भगवान राम से माना जाता है। दशहरे को लोग बुराई पर अच्छाई की जीत के पर्व के तौर पर मनाते हैं। इसी दिन भगवान राम ने लंका के राजा रावण का वध किया था, लेकिन बस्तर के दशहरे का संबंध महिषासुर का वध करने वाली मां दुर्गा से जुड़ा हुआ है।

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    क्या है बस्तर की रथ यात्रा का इतिहास?

    बस्तर के विश्व प्रसिद्ध दशहरे पर रथ यात्रा की शुरुआत चालुक्य वंश के चौथे राजा पुरुषोत्तम देव ने की थी। उन्हें जगन्नाथ पुरी के राजा ने 'लहुरी रथपति' की उपाधि देते हुए 16 चक्कों का रथ भेंट किया था। बस्तर की सड़कें रथ चलाने के लायक नहीं थी। इस पर उन्होंने रथ का विभाजन कर चार चक्कों को भगवान जगन्नाथ को भेंट कर दिया। इसी से बाद में विजय रथ और फूल रथ बनवाया गया, जिसे आज भी चलाया जाता है। विजय रथ में आठ और फूल रथ में चार पहिए हैं।

    कौन करता है रथ का निर्माण?

    रथ का निर्माण बेड़ाउमरगांव और झारउमरगांव के लोग करते हैं। रथ बनाने के काम में 150 लोग शामिल होते हैं। रथ बनाने का काम पिछले 600 साल से चला आ रहा है। लोग इसे मां दंतेश्वरी की सेवा मानकर करते हैं।

    रथ बनाने में कितना समय लगता है?

    रथ बनाने में लंबा समय लगता है। एक माह तक अपने सभी काम को छोड़कर लोग रथ बनाने का काम करते हैं। यह एक परंपरा है, जिसका पालन गांव के सभी लोगों को करना पड़ता है। जो लोग इसका पालन नहीं करते हैं, उन्हें अर्थदंड भी देना पड़ता है। यह दस रुपये से शुरू हुआ था और आज 500 रुपये है।