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    अबूझमाड़: जहां कभी बंदूकों का था बोलबाला, वहां सज रहा बाजार

    By ANIMESH PALEdited By: Garima Singh
    Updated: Tue, 23 Dec 2025 06:50 PM (IST)

    छत्तीसगढ़ के बस्तर में अबूझमाड़ में दशकों बाद जाटलूर गांव में साप्ताहिक हाट लगा। कभी माओवादी हिंसा से त्रस्त इस क्षेत्र में अब सब्जियां, वनोपज और बच्च ...और पढ़ें

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    जहां कभी बंदूकें का था बोलबाला, वहां सज रहा बाजार

    अनिमेष पाल, जगदलपुर। छत्तीसगढ़ के बस्तर में फैला अबूझमाड़! करीब 4400 वर्ग किलोमीटर का वह इलाका, जिसका नाम आते ही दिमाग में बंदूक, बारूदी सुरंगें और खौफ उभर आता था। घने जंगलों से घिरे इस क्षेत्र की पहचान दशकों तक माओवादी हिंसा और सुरक्षा बलों के अभियानों से जुड़ी रही।

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    जिन पगडंडियों पर आम ग्रामीण कदम रखने से डरते थे, वहां हथियारबंद दस्तों की आवाजाही आम थी। लेकिन शनिवार को अबूझमाड़ की उसी धरती पर एक नई तस्वीर उभरी, जब जाटलूर गांव में पहली बार साप्ताहिक हाट सजा।

    अबूझमाड़ के जाटलूर में पहली बार साप्ताहिक हाट

    सब्जियों से भरी टोकरी, वनोपज के ढेर, सौदेबाजी की आवाजें और बच्चों की खिलखिलाहट-यह सब कुछ उस इलाके में देखने को मिला, जहां कभी सन्नाटा और डर ही पहचान था। जाटलूर वही पंचायत है, जहां कुछ महीने पहले भाकपा (माओवादी) के शीर्ष नेता बसवा राजू को सुरक्षा बलों ने मुठभेड़ में मार गिराया था। इसी से जाटलूर की दुर्गमता और माओवादियों के प्रभाव का अंदाजा लगाया जा सकता है।

    जाटलूर में हाट लगना केवल बाजार की शुरुआत नहीं है, बल्कि यह प्रशासनिक पहुंच और भरोसे की वापसी का संकेत है। माओवादियों के सक्रिय होने से पहले यहां बालक आश्रम तो था, लेकिन वर्षों तक प्रशासन की नियमित निगरानी संभव नहीं हो पाई। अब हालात बदले हैं। जिला पंचायत सीईओ नम्रता खलको बताती हैं कि अब तक इस क्षेत्र के दर्जनों गांवों के लिए सरकारी राशन दुकान ओरछा विकासखंड मुख्यालय से संचालित होती थी।

    अब जाटलूर में पीडीएस दुकान और उपस्वास्थ्य केंद्र स्वीकृत कर दिए गए हैं, जिससे राशन और प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाएं गांव के पास ही उपलब्ध होंगी। ग्रामीणों के मनरेगा जाब कार्ड तो वर्षों पहले बन चुके थे, लेकिन माओवादी दखल के कारण पिछले चार दशकों से कोई काम शुरू नहीं हो सका। सुरक्षा कैंपों और सड़कों के निर्माण के साथ अब विकास कार्यों का रास्ता भी खुलने लगा है।

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    गांव के पास लौटी जरूरतें

    जाटलूर में हाट खुलने का महत्व इस बात से समझा जा सकता है कि इससे पहले नमक या जरूरी सामान खरीदने के लिए ग्रामीणों को 40 से 65 किलोमीटर दूर ओरछा बाजार तक पैदल जाना पड़ता था। घना जंगल, जंगली जानवरों का खतरा और हर कदम पर आइईडी (इंप्रोवाइज्ड एक्स्प्लोसिव डिवाइस) विस्फोट का डर और तीन से चार दिन की यात्रा उनकी मजबूरी था। अब वही जरूरतें गांव के पास पूरी हो रही हैं।

    शनिवार को बाजार लगा तो डोडीमरका, पदमेटा, लंका, बोटेर, करांगुल, मुरुमवाडा, धोबे, कुमनार और गट्टाकाल जैसे गांवों से लोग इस हाट में पहुंचे। डोडीमरका की मासे, जो घर में उगाई सब्जियां बेचने आई हैं, कहती हैं कि पहले जंगल में डर लगता था। कई किलोमीटर चलकर सब्जी बेचनी पड़ती थी। अब बाजार अपने गांव में है और दाम भी ठीक मिल रहा है। मुरुमवाड़ा से बर्तन खरीदने आए सोमा बताते हैं कि रास्ता बना है, कैंप खुले हैं। अब आने-जाने में डर नहीं लगता। वहीं पदमेटा की सोमा कहती हैं कि अब वह वनोपज सीधे व्यापारियों को बेच पा रही हैं।

    चार दशक से माओवादियों ने इस इलाके में बाहरी लोगों का आना प्रतिबंधित कर रखा था, पर माओवादी साया छंटने के बाद इस हाट में स्थानीय उत्पादों के साथ जिला मुख्यालय और आसपास के इलाकों से कपड़ा, राशन, बर्तन और प्लास्टिक सामान के व्यापारी भी पहुंचे। जाटलूर–लंका एक्सिस पर सुरक्षा की मौजूदगी ने व्यापारियों को भीतर तक आने का भरोसा दिया। बाजार की शुरुआत आदिवासियों की रूढ़ीगत परंपरा अनुसार पूजा-पाठ के साथ की गई।

    दो माह में बदली तस्वीर

    अबूझमाड़ के इस माओवादी कारीडोर को तोड़ने के लिए सुरक्षा बलों ने महज दो माह के भीतर नौ सुरक्षा कैंप स्थापित किए। पहला कैंप 1 सितंबर को ओरछा से आगे एडजुम में खुला। इसके बाद ईदवाया, आदेर, कुड़मेल, जाटलूर, धोबे, डोडीमरका और पदमेटा में कैंप स्थापित हुए।

    अंततः बीजापुर जिले की सीमा पर ओरछा से 65 किलोमीटर दूर लंका में कैंप खोलकर एक मजबूत सुरक्षा शृंखला खड़ी कर दी गई। इन कैंपों के साथ-साथ पहाड़ी और घने जंगलों के बीच सड़क निर्माण भी तेजी से हुआ। जहां कभी केवल पगडंडियां थीं, वहां अब चारपहिया वाहन चलने लगे हैं। इससे न केवल सुरक्षा बलों की पहुंच बढ़ी, बल्कि ग्रामीणों के मन में भी सुरक्षा का भरोसा गहराया है।

    सिमटता माओवाद, लौटती सामान्य जिंदगी

    पिछले दो वर्षों में बस्तर में माओवादी हिंसा की रीढ़ टूटती नजर आई है। इस दौरान 500 से अधिक माओवादी मारे गए, जबकि दो हजार से ज्यादा ने हथियार छोड़कर मुख्यधारा का रास्ता अपनाया। अबूझमाड़ में भी यही कहानी है।

    यहां सक्रिय माओवादियों के वैचारिक रीढ़ भूपति और केंद्रीय समिति सदस्य रुपेश समेत 210 माओवादियों के साथ आत्मसमर्पण कर दिया। इससे माड़ डिविजन के तहत आने वाली माड़ और कुतुल एरिया कमेटी का प्रभाव लगभग खत्म हो गया।

    ROBINSON GURIYA

    यह बाजार केवल आर्थिक गतिविधि नहीं है, बल्कि शांति की वापसी का संकेत है। सुरक्षा, सड़क और बाजार, तीनों मिलकर विकास की स्थायी नींव रखते हैं-राबिन्सन गुरिया, पुलिस अधीक्षक नारायणपुर