Move to Jagran APP

Chhattisgarh: तीन साल अतिरिक्त सजा काटी, सुप्रीम कोर्ट ने साढ़े सात लाख मुआवजा देने का दिया आदेश

Chhattisgarh दुष्कर्म के दोषी को सात साल की जगह दस साल जेल में रहना पड़ा। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में पीड़ित को साढ़े सात लाख रुपये मुआवजा देने व लापरवाह अफसरों पर कार्रवाई करने का आदेश दिया।

By Sachin Kumar MishraEdited By: Published: Thu, 14 Jul 2022 09:58 PM (IST)Updated: Thu, 14 Jul 2022 09:58 PM (IST)
Chhattisgarh: तीन साल अतिरिक्त सजा काटी, सुप्रीम कोर्ट ने साढ़े सात लाख मुआवजा देने का दिया आदेश
तीन साल अतिरिक्त सजा काटी, सुप्रीम कोर्ट ने साढ़े सात लाख मुआवजा देने का दिया आदेश। फाइल फोटो

बिलासपुर, जेएनएन। दुष्कर्म के दोषी को सात साल की जगह दस साल जेल में रहना पड़ा। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में पीड़ित को साढ़े सात लाख रुपये मुआवजा देने और लापरवाह अफसरों पर कार्रवाई करने का आदेश दिया है। छत्तीसगढ़ में जशपुर जिले के फरसाबहार थाना क्षेत्र के तमामुंडा गांव के भोला कुमार को निचली अदालत ने दस साल की सजा सुनाई थी। उसने हाई कोर्ट में अपील की। 19 जुलाई, 2018 को जारी आदेश में हाई कोर्ट ने उसकी सजा की अवधि कम करके सात साल कर दी, इसके बाद भी उसे रिहा नहीं किया गया।

loksabha election banner

जानें, क्या है मामला

अंबिकापुर जेल में बंद भोला ने इसके बाद सुप्रीम कोर्ट को पत्र भेजकर रिहाई की अपील की थी। सुप्रीम कोर्ट ने उसके पत्र को स्पेशल लिव पिटीशन के रूप में स्वीकार करते हुए राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण को विस्तृत जानकारी उपलब्ध कराने का आदेश दिया था। राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण ने सभी दस्तावेज जुटाए और भोला के लिए वकील भी नियुक्त किया। जेल प्रशासन ने सुप्रीम कोर्ट में शपथ पत्र दाखिल कर कहा कि उन्हें हाई कोर्ट के फैसले की जानकारी नहीं दी गई थी।

सुप्रीम कोर्ट ने मौलिक अधिकारों का हनन माना

सुप्रीम कोर्ट की डिवीजन बेंच ने इसे गंभीर लापरवाही मानते हुए संविधान में निहित मौलिक अधिकारों का हनन माना है और कहा है कि हाई कोर्ट ने सजा कम कर दी थी फिर प्रशासन अनभिज्ञता का नाटक कैसे कर सकता है। कोर्ट ने कहा कि हम इस तथ्य से बेखबर नहीं हैं कि अपीलकर्ता को गंभीर अपराध में दोषी ठहराया गया था। फिर भी जब एक सक्षम अदालत ने सजा कम करने की पुष्टि कर दी तो उसे हिरासत में कैसे रखा जा सकता है।

सुप्रीम कोर्ट ने एक अन्य मामले में कहा कि गरीबी की रेखा के नीचे (बीपीएल) होना कानून के शासन का पालन नहीं करने के लिए 'कोई अपवाद नहीं' है और सभी को कानून के शासन का पालन करना होगा। गुजरात में रेलवे की जमीन पर अतिक्रमण के एक मामले में सुनवाई के दौरान सर्वोच्च अदालत ने कहा कि संविधान सिर्फ कानून को मान्यता देता है। कानून सबके लिए एक है। याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वकील ने जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस जेबी पार्डीवाला की पीठ से गुरुवार को कहा कि अतिक्रमण हटाने से प्रभावित हुए योग्य आवेदकों को उन्हें उपलब्ध कराई गई रहने की जगह के लिए किस्त अदा करने को कुछ समय दिया जाए और उनका पुनर्वास प्रधानमंत्री आवास योजना के मुताबिक किया जाए। 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.