Ram Mandir: 14 साल की भतीजी को कंधे पर उठाया और नदी में कूदकर बचाई जान, कारसेवक चाचा अर्जुन तीर्थानी ने सुनाई आपबीती
30 अक्टूबर 1990 को अयोध्या कारसेवा के लिए गए छत्तीसगढ़ के बिलासपुर के तिर्थानी परिवार की कहानी रोमांचित करने वाली है। कारसेवकों की भीड़ को तितर-बितर करने के लिए पुलिस ने लाठी जार्च कर दिया। भगदड़ की स्थिति बन गई। 14 साल की आरती को भी लाठी की चोट लगी। उसकी जान बचाने के जतन में लगे कारसेवक चाचा अर्जुन तीर्थानी ने आपबीती सुनाई है।
राधाकिशन शर्मा, बिलासपुर। 30 अक्टूबर, 1990 को अयोध्या कारसेवा के लिए गए छत्तीसगढ़ के बिलासपुर के तिर्थानी परिवार की कहानी रोमांचित करने वाली है। कारसेवकों की भीड़ को तितर-बितर करने के लिए पुलिस ने लाठी जार्च कर दिया। भगदड़ की स्थिति बन गई। 14 साल की आरती को भी लाठी की चोट लगी। उसकी जान बचाने के जतन में लगे कारसेवक चाचा अर्जुन तीर्थानी ने उसे उठाया और सरयू नदी में कूद गए। उफनती नदी में आधा किलोमीटर दूर जाकर निकले। बिलासपुर संभाग से तब 60 लोग कारसेवा में गए थे। इसमें आरती 14 साल की कारसेविका थीं।
कारसेवक चाचा अर्जुन तीर्थानी ने सुनाई आपबीती
अपने संस्मरण बताती आरती के अनुसार कारसेवकों के दल में वह सबसे छोटी थीं। दल में आठ महिलाएं थी। प्रयागराज तक ट्रेन यात्रा सहज रही। प्रयागराज पहुंचने के बाद पुलिस की कार्रवाई शुरू हो गई। हम सभी लोगों को पहले ही बता दिया गया था कि पूछताछ होने पर संगम स्नान पर आने की बात बतानी है। एक-दूसरे से बातचीत नहीं करने का भी निर्देश दिया गया था।
इसके बाद स्टेशन से बाहर आते ही पुलिस ने घेरा। किसी तरह संगम पहुंचे। स्नान किया। ट्रेन रद, बस सेवा भी बंद हो गई थी। प्रयागराज में विहिप के पदाधिकारी मिले। बड़े लोगों की आपस में चर्चा हुई और शाम ढलने पर पैदल ही अयोध्या रवाना होने का संकल्प लिया गया। शाम को पांच से छह किलोमीटर पैदल चले होंगे कि पुलिस आ धमकी। पूछताछ हुई और बस में बैठाकर सीधे प्रतापगढ़ ले गए। पॉलिटेक्निक कालेज बनाई गई अस्थाई जेल में बंद कर दिया गया।
स्थानीय लोगों ने बताया रास्ता
कॉलेज की दीवार तोड़कर अयोध्या की ओर गए आरती के अनुसार कॉलेज परिसर में बिजली भी नहीं थी। खाने का सामान खत्म हो गया। कारसेवक रहे अर्जुन तिर्थानी ने बताया कि परिसर की कमजोर दीवार ढूंढी और करीब रात ढाई बजे उसे तोड़ दिया। आधे घंटे बाद सबसे पहले उनकी टोली बाहर निकली, जिसमें आरती समेत आठ महिलाएं थीं। स्थानीय लोगों ने रास्ता बताया। अयोध्याजी के रास्ते में ग्रामीणों ने टोली से प्रेम से बात की। लोगों का स्नेह इतना था कि वे भोजन कराने के बाद ही गंतव्य के लिए रवाना करते थे।