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    बंदूक नहीं अब किताब और लाइब्रेरी से बस्तर के 'बचपन' में फैला ज्ञान का प्रकाश; माओवाद के काले साये से मिलेगी आजादी

    पूर्व कलेक्टर कुणाल दुदावत की पहल पर बस्तर के आदिवासी आश्रम शालाओं में कल्पना कक्ष पुस्तकालय ज्ञान की नई रोशनी फैला रहे हैं। डिजिटल क्लासरूम और किताबों की विशाल दुनिया ने इन बच्चों के लिए ज्ञान के नए द्वार खोल दिए हैं। बस्तर की यह नई पीढ़ी पुस्तकों के पंखों पर सवार होकर देश और दुनिया को जानने और समझने के लिए उड़ान भर रही है।

    By Jagran News Edited By: Piyush Kumar Updated: Tue, 22 Apr 2025 07:52 PM (IST)
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    कोंडागांव जिले के कोसागांव के बालक आश्रम में संचालित पुस्तकालय में पढ़ते बच्चे।(फोटो सोर्स: नई दुनिया)

    अनिमेष पाल,जगदलपुर। बस्तर की फिजा बदल रही है। कभी जिस धरती पर माओवादियों की बंदूकें मासूम हाथों को हिंसा का पाठ पढ़ाती थीं, आज उसी बस्तर के बच्चे किताबों के सहारे सुनहरे भविष्य की कल्पना कर रहे हैं। यह बदलाव की कहानी कोंडागांव जिले की है, जिसे हाल ही में माओवाद के काले साये से आजादी मिली है।

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    पूर्व कलेक्टर कुणाल दुदावत की पहल पर अब यहां के आदिवासी आश्रम शालाओं में 'कल्पना कक्ष पुस्तकालय' ज्ञान की नई रोशनी फैला रहे हैं, जहां विज्ञान, साहित्य और प्रेरणादायक कहानियां बच्चों की साथी बन रही हैं। डिजिटल क्लासरूम और किताबों की विशाल दुनिया ने इन बच्चों के लिए ज्ञान के नए द्वार खोल दिए हैं। बस्तर की यह नई पीढ़ी, पुस्तकों के पंखों पर सवार होकर, देश और दुनिया को जानने और समझने के लिए उड़ान भर रही है।

    बस्तर में कभी माओवादी मोबाइल पालिटिकल स्कूल (मोपास) चलाया करते थे। इन स्कूलों में बच्चों को माओवादी साहित्य के साथ बंदूक चलाने का प्रशिक्षण देकर बाल संघम सदस्य बना दिया जाता था। वहां अब आदिवासी बच्चों को आधुनिक पुस्तकालय में पढ़ाई करते देखना सुखद अनुभव देता है।

    कोंडागांव जिले में 10 आदिवासी आश्रम शालाओं में पिछले छह माह में जिला खनिज न्यास निधि (डीएमएफ) से 'कल्पना कक्ष पुस्तकालय' स्थापित किया गया है। कोंडागांव को केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने हाल ही में माओवाद प्रभावित अतिसंवेदनशील सूची से हटा दिए जाने की घोषणा की है।

    आदिवासी बहुल कोसागांव के बालक आश्रम के भीतर पुस्तकालय में घुसते ही यह आभास नहीं होता कि यह बस्तर का कोई सरकारी बालक आश्रम है। सैकड़ों पुस्तकें, आधुनिक साज-सज्जा युक्त स्मार्ट कक्षा ओर डिजिटल पुस्तकालय किसी बड़े शहर के निजी स्कूल सा लगता है।

    अब पढ़ाई रूचिकर लगती है

    पुस्तकों के इस संसार में खोए आदिवासी बालक प्रवीण नाग और अंकुल नेताम कहते हैं कि इस पुस्तकालय के खुलने से उन्हें पढ़ाई अब रूचिकर लगती है। यहां आकर पुस्तकों की दुनिया में खो जाना अच्छा लगता है। बहुत कुछ नया सीखने और इस संसार के बारे में जानने को मिल रहा है।

    124 आश्रमों में बनेंगे पुस्तकालय

    जिले के पूर्व कलेक्टर कलेक्टर कुणाल दुदावत कहते हैं कि यह पुस्तकालय छात्रों में शिक्षा के प्रति जिज्ञासा पैदा करता है। पारंपरिक और डिजिटल संसाधनों के उपयोग से छात्रावासों के कक्षों को किताबें पढ़ने में तल्लीन बच्चों के सीखने के केंद्रों में बदला गया है। जिले के 124 आश्रमों को कल्पना कक्ष पुस्तकालय के लिए चयनित किया गया है।

    कलेक्टर के नवाचार ने बदली बच्चों की दुनिया

    आदिवासी आश्रम शालाओं में स्मार्ट पुस्तकालय का यह नवाचार 2017 बैच के आइएएस कुणाल दुदावत की देन हैं, जिससे आदिवासी बच्चों की दुनिया बदल चुकी है। राजस्थान के सवाई माधोपुर के रहने वाले कुणाल को दो दिन पहले ही दंतेवाड़ा जिले का कलेक्टर बनाया गया है। बतौर कलेक्टर कोंडागांव जिले में उनकी पहली पोस्टिंग थी। चिकित्सक परिवार में जन्मे कुणाल ने आइआइटी से कंप्यूटर सांइस में इंजीनियरिंग की है।

    कनाडा की मल्टीनेशनल कंपनी व भारत में आनलाइन शॉपिंग कंपनी फ्लिपकार्ट में साफ्टवेयर डेवलपर की नौकरी छोड़कर उन्होंने दिल्ली से यूपीएससी की तैयारी की। पहले-दूसरे प्रयास में आइएफएस-आइपीएस के बाद तीसरे प्रयास में 669 वीं रैंक के साथ आइएएस के लिए चुने गए।

    छत्तीसगढ़ में कोरिया जिला पंचायत सीईओ रहते झुमका डैम को पर्यटन स्थल बनाने व सोनहत के सुंदरीकरण में उन्होंने विशेष प्रयास किए। बिलासपुर नगर निगम कमिश्नर व बिलासपुर स्मार्ट सिटी लिमिटेड के एमडी रहते अरपा रिवर फ्रंट उनकी विशेष उपलब्धियों में से एक है।

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