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    नौ साल की बच्ची के शव के साथ दुष्कर्म, फिर भी आरोपी बरी; जानिए हाईकोर्ट ने क्यों नहीं सुनाई सजा

    Updated: Sat, 21 Dec 2024 10:42 PM (IST)

    छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने एक नौ साल की बच्ची के साथ दुष्कर्म और हत्या से जुड़े एक मामले की सुनवाई करते हुए अहम टिप्पणी की है। कोर्ट ने मामले में शव के साथ दुष्कर्म करने वाले आरोपी को सजा नहीं दी है। इसके लिए हाई कोर्ट ने एक अहम वजह बताई है। बच्ची की मां ने ट्रायल कोर्ट के फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट में अपील की थी।

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    हाई कोर्ट ने बच्ची के मां की याचिका खारिज कर दी है। (File Image)

    जेएनएन, बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि मौजूदा भारतीय कानून में शव के साथ दुष्कर्म (नेक्रोफीलिया) को अपराध की श्रेणी में शामिल नहीं किया गया है। इसलिए, इस आधार पर किसी को सजा नहीं दी जा सकती है। मामला गरियाबंद जिले की नौ वर्षीय एक बच्ची की हत्या और हत्या के बाद दुष्कर्म से जुड़ा है।

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    उसकी मां ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। ट्रायल कोर्ट ने मुख्य आरोपित नितिन यादव को हत्या और अन्य अपराधों में उम्रकैद की सजा दी है, जबकि सह आरोपित नीलकंठ नागेश को साक्ष्य मिटाने के आरोप में सात साल की सजा सुनाई है। हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस बीडी गुरु की डिवीजन बेंच ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए मां की याचिका खारिज की है।

    क्या है मामला?

    18 अक्टूबर 2018 को गरियाबंद निवासी नौ साल की बालिका का शव सुनसान इलाके में मिला था। 22 अक्टूबर 2018 को आरोपित नीलकंठ उर्फ नीलू नागेश को पुलिस ने गिरफ्तार किया। पूछताछ में उसने बताया कि नितिन यादव ने बच्ची का अपहरण और दुष्कर्म कर हत्या की थी। आरोपित नीलकंठ ने अपने बयान में जिक्र किया था कि उसने मृतका के शव के साथ दुष्कर्म कर शव को फेंका था।

    ट्रायल कोर्ट के फैसले को हाई कोर्ट में दी चुनौती

    मामले की सुनवाई के बाद ट्रायल कोर्ट ने मुख्य आरोपित नितिन यादव को अलग-अलग धाराओं में आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। वहीं नीलकंठ को साक्ष्य छिपाने के आरोप में ट्रायल कोर्ट ने आइपीसी की धारा 201 के तहत सात वर्ष कैद की सजा सुनाई थी। ट्रायल कोर्ट के फैसले को मृतका की मां ने हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। हाई कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को सही ठहराते हुए याचिका खारिज कर दी।

    हाई कोर्ट का फैसला

    हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच ने अपने फैसले में लिखा है कि देश में प्रचलित कानून में शव के साथ दुष्कर्म को अपराध की श्रेणी में नहीं रखा गया है। मौजूदा कानून में नेक्रोफीलिया अपराध नहीं है। वर्तमान कानून में शव के साथ दुष्कर्म करने वाले को सजा देने का प्रविधान नहीं है।