एडीआर और जीडीआर के बारे में वह सब कुछ, जो आप जानना चाहते हैं
अक्सर आप समाचार पत्र और पत्रिकाओं में दो शब्द एडीआर व जीडीआर का जिक्र पाते हैं।
हरिकिशन शर्मा, नई दिल्ली। अक्सर आप समाचार पत्र और पत्रिकाओं में दो शब्द एडीआर व जीडीआर का जिक्र पाते हैं। एडीआर व जीडीआर का मतलब क्या है ? यह आइडीआर से किस तरह भिन्न हैं ? बहुराष्ट्रीय कंपनियां पूंजी जुटाने के लिए किस तरह इनका इस्तेमाल करती हैं ? 'जागरण पाठशाला' के इस अंक में रविवार को हम यही समझने का प्रयास करेंगे।
कारपोरेट जगत में पूंजी जुटाने के लिए विभिन्न तरीके अपनाए जाते हैं। ऐसा ही एक प्रचलित तरीका है 'डिपाज़टॉरी रिसीट' जिनके बहुराष्ट्रीय कंपनियां देश के बाहर से विदेशी मुद्रा में वित्तीय संसाधन जुटाती हैं। दअरसल डिपाज़टॉरी रिसीट (डीआर) ऐसी सीक्युरिटी होती हैं जिन्हें भारत से बाहर एक डिपाज़टॉरी बैंक किसी भारतीय कंपनी की तरफ से जारी करता है। ये निगोशिएबल सीक्युरिटी होती है। इसका मतलब यह है कि शेयर या बांड की तरह इनको खरीदा और बेचा जा सकता है।
अमेरिका, सिंगापुर, लग्जमबर्ग, लंदन आदि जगहों पर शेयर बाजार में इनकी खरीद-बिक्री की जाती है। इनका नामकरण भी इस बात पर निर्भर करता है कि ये कहां जारी किया जा रहा है। मसलन, जब इन्हें अमेरिकी शेयर बाजार में खरीदा-बेचा जाता है तो उसे 'अमेरिकन डिपाज़टॉरी रिसीट' (एडीआर) कहते हैं। हालांकि जब कई देशों में 'डिपाज़टॉरी रिसीट' जारी किए जाते हैं तो 'ग्लोबल डिपाज़टॉरी रिसीट' (जीडीआर) कहते हैं।
इस तरह 'अमेरिकन डिपाज़टॉरी रिसीट' एक ऐसा प्रपत्र है जो किसी विदेशी सीक्युरिटी के बदले में अमेरिका में जारी किया गया है जबकि मूल सीक्युरिटी किसी बैंक या संरक्षक के पास दूसरे देश में रखी होती है। एडीआर को एक उदाहरण के जरिये समझते हैं।
मान लीजिए एक भारतीय कंपनी जैसे इन्फोसिस एडीआर जारी करती है। अमेरिकी शेयर बाजार जैसे न्यूयार्क स्टॉक एक्सचेंज पर कोई भी अमेरिकी निवेश उस एडीआर को खरीद सकता है। एडीआर में निवेश करने वाले उस निवेशक को जो लाभांश प्राप्त होगा उसका भुगतान उसे अमेरिकी डालर में ही मिलेगा। इस तरह भारतीय कंपनियों के लिए एडीआर विदेश से पूंजी जुटाने का माध्यम होता है वहीं अमेरिकी निवेशकों के लिए यह विदेश में जाए बैगर और विदेशी मुद्रा खरीदे बिना ही विदेशी सीक्युरिटी में निवेश करने का जरिया होता है।
अब मान लीजिए उस भारतीय कंपनी को अन्य देशों से भी पूंजी जुटानी है। इसके लिए वह कंपनी 'ग्लोबल डिपाज़टॉरी रिसीट' जारी करती है। असल में जीडीआर ऐसा प्रपत्र होता है जो भारत से बाहर स्थित डिपाज़टॉरी बैंक अनिवासी निवेशकों को जारी करती हैं। जिन देशों में यह जारी किया जाता है वहां के शेयर बाजार पर इसे ट्रेड किया जा सकता है। यह सामान्य शेयर या फॉरिन करेंसी कन्वर्टीबल बांड (एफसीसीबी) जारी करने वाली कंपनी के शेयर के आधार पर जारी किया जाता है। कंपनियां जब यूरो जुटाने के लिए यह तरीका अपनाती हैं तो इसे 'यूरोपियन डिपाज़टॉरी रिसीट' कहते हैं।
इसी तरह अगर कोई विदेशी कंपनी भारतीय शेयर बाजार से पूंजी जुटाना चाहती है तो वह आइडीआर यानी इंडियन डिपाज़टॉरी रिसीट जारी कर सकती है। आइडीआर रुपये में होता है। जो घरेलू डिपाज़टॉरी सेबी (सीक्युरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया) के पास पंजीकृत होती हैं वे उस कंपनी के शेयर के बदले में आइडीआर जारी कर सकती हैं जो भारतीय शेयर बाजार से पूंजी जुटाना चाहती हैं।
इस प्रकार भारतीय कंपनियां एडीआर/जीडीआर के माध्यम से देश के बाहर से विदेशी मु्द्रा में वित्तीय संसाधन जुटा सकती हैं। इनके जरिए विदेशी मु्द्रा देश में आती है। जब भी कंपनियां एडीआर/जीडीआर जारी करती हैं तो वे इसकी सूचना बाकायदा रिजर्व बैंक को देती हैं।