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अमेरिकी और ब्रिटिश कल्चर को बाय-बाय, कपड़ों और जूतों की साइज के लिए बनेगा भारतीय मानक

केंद्रीय कपड़ा मंत्रालय जल्द कपड़ों और जूतों का साइज निर्धारित करने के लिए भारतीय मानक लाने जा रहा है। इसका फायदा यह होगा कि कंपनियों में साइज को लेकर कन्फ्यूजन दूर हो जाएगा। लोगों को भारतीय शरीर के हिसाब से कपड़े और जूते मिल पाएंगे।

By Abhinav ShalyaEdited By: Abhinav ShalyaPublished: Wed, 24 May 2023 11:30 AM (IST)Updated: Wed, 24 May 2023 11:43 AM (IST)
अमेरिकी और ब्रिटिश कल्चर को बाय-बाय, कपड़ों और जूतों की साइज के लिए बनेगा भारतीय मानक
Indian Size For Apparel and Shoes Close to Roll Out

नई दिल्ली, बिजनेस डेस्क। जल्द अब कपड़ों से लेकर जूतों पर इंडियन स्टैंडर्ड नंबर देखने को मिलेगा। केंद्रीय कपड़ा मंत्रालय इसे अंतिम रूप दे रहा है और जल्द ये लोगों के सामाने आ जाएंगे। इसका फायदा यह होगा कि कंपनियों की ओर से बनाए गए कपड़े और जूते भारतीयों को अच्छे से फिट आएंगे।

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भारत में अभी चलता है कौन-सा स्टैंडर्ड?

मौजूदा समय में अंतरराष्ट्रीय और घरेलू ब्रांड्स की ओर से कपड़ों के माप के लिए यूएस और यूके के स्टैंडर्ड का उपयोग किया जाता है जो कि स्मॉल, मीडियम और लार्ज होते हैं।

ग्राहकों को क्या होगा फायदा?

कपड़ों और जूतों के लिए इंडियन स्टैंडर्ड आने का लाभ कंपनियों और ग्राहकों दोनों को होगा, क्योंकि पश्चिमी देशों में देशों की लंबाई और वजन में भारतीय के मुकाबले काफी अंतर होता है। इससे कंपनियां भारतीय ग्राहकों के हिसाब से कपड़े बना पाएंगी और ग्राहकों को भी अपनी फिट के हिसाब से कपड़े और जूते मिल पाएंगे।

जानकारी के मुताबिक, भारतीय मानक 3D स्कैनर की मदद से तय किया जाएंगे। इसके लिए देश के छह शहरों - दिल्ली, कोलकाता, मुंबई, बेंगलुरु, शिलांग और हैदराबाद के 15 से 65 वर्ष के उम्र के 25,000 लोगों के माप को लिया गया है।

साइज चार्ट के लिए हुआ सर्वे

2018 में कपड़ा मंत्रालय की ओर से बताया गया था कि नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फैशन टेक्नोलॉजी (NIFT) भारतीय साइज चार्ट को लेकर अध्ययन करेगा और इसे पूरा होने में 2 से 3 साल लगेंगे। इस सर्वे की लागत करीब 31 करोड़ रुपये आनी थी, जिसमें से 21 करोड़ रुपये का योगदान कपड़ा मंत्रालय की ओर से दिया जाएगा, जबकि बाकी का योगदान NIFT करेगा।

पश्चिमी देशों से कितना अलग होगा इंडियन स्टैंडर्ड?

भारतीय के लिए इंडियन स्टैंडर्ड की मांग उद्योग की ओर से भी की जा रही थी। भारतीय के शरीर का आकार पश्चिमी देशों के लोगों के मुकाबले काफी अलग होता है। सबसे बड़ा अंतर इंडियन स्टैंडर्ड में कमर और पैरों के माप को लेकर होता है। इससे भारत में बनने वाले कपड़े भारतीयों को यूएस और यूके वाले साइज के मुकाबले अधिक फिट आएंगे।

इंडियन स्टैंडर्ड साइज आने का क्या होगा फायदा?

इंडियन स्टैंडर्ड साइज आने से ग्राहकों से लेकर उद्योगों दोनों को फायदा होगा। इससे कंपनियां अपने ग्राहकों के लिए अधिक फिट कपड़े बना पाएंगी और ई-कॉमर्स को भी बड़ा बूस्ट मिलने की संभावना है। इससे भारत में कपड़ा बनाने वाली कंपनियों में भी साइज को लेकर कन्फ्यूजन दूर जाएगा। वहीं, ग्राहक अपने माप के हिसाब से कपड़े चुन सकते हैं।

भारत में क्यों होता है यूके और यूस साइज स्टैंडर्ड का प्रयोग?

दुनिया के 40 से अधिक देशों में यूके के मानक का प्रयोग किया है। इसके पीछे का सबसे बड़ा कारण यूके का इन देशों पर लंबे समय तक शासन करना है और अग्रेंजों के जाने के बाद भी यूके स्टैंडर्ड साइज भारत में उपयोग होने लगा। अमेरिकी ब्रांड्स के साथ यूएस स्टैंडर्ड भी भारत आ गया।

 


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