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    जानिए क्या होती है लिबरलाइच्ड रेमिटेंस स्कीम?

    By Surbhi JainEdited By:
    Updated: Mon, 02 Jul 2018 01:09 PM (IST)

    स्विस बैंकों में भारतीयों द्वारा जमा राशि में 40 फीसद हिस्सा लिबरलाइच्ड रेमिटेंस स्कीम (एलआरएस) के तहत देश से बाहर भेजी गई विदेशी मुद्रा का है

    नई दिल्ली (हरिकिशन शर्मा)। पिछले हफ्ते आपने एक खबर पढ़ी होगी कि वर्ष 2017 में स्विस बैंकों में भारतीयों की जमाराशि 50 फीसद बढ़कर 7,000 करोड़ रुपये हो गई है। सरकार ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि स्विस बैंकों में भारतीयों द्वारा जमा राशि में 40 फीसद हिस्सा लिबरलाइच्ड रेमिटेंस स्कीम (एलआरएस) के तहत देश से बाहर भेजी गई विदेशी मुद्रा का है। यह स्कीम क्या है? आम लोगों और अर्थव्यवस्था के लिए इसका क्या मतलब है? जागरण पाठशाला के इस अंक में हम यही समझने का प्रयास करेंगे।

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    एलआरएस का पूरा नाम है लिबरलाइज्ड रेमिटेंस स्कीम। दरअसल अंग्रेजी भाषा के रेमिटेंस शब्द का मतलब होता है किसी देश के बाहर धन भेजना। एक करोड़ से अधिक अनिवासी भारतीय विदेश में रहते हैं और हर साल बड़ी धनराशि अपने परिजनों और रिश्तेदारों के लिए स्वदेश भेजते हैं। यह धनराशि रेमिटेंस के रूप में देश में आती है।

    इसी तरह हमारे देश से बड़ी संख्या में लोग अपने बच्चों को पढ़ने के लिए विदेश भेजते हैं, इलाज कराने या कारोबार के लिए बाहर जाते हैं और विदेशी मुद्रा देश से बाहर भेजते हैं। यह राशि भी रेमिटेंस की श्रेणी में आती है। हर देश अपने यहां से विदेशी मुद्रा बाहर ले जाने पर कुछ न कुछ नियंत्रण रखता है। चौदह साल पहले तक भारत में भी ऐसा ही था। विदेशी मुद्रा बाहर ले जाने के लिए लोगों को पूर्वानुमति लेनी पड़ती थी। फरवरी, 2004 में रिजर्व बैंक ने इसमें छूट दी और लिबरलाइज्ड रेमिटेंस स्कीम शुरू की गई। इस योजना के तहत विदेशी मुद्रा देश से बाहर भेजने के लिए पूर्वानुमति आवश्यक नहीं है।

     

    एलआरएस के तहत भारत के निवासी चाहे वे वयस्क हों या अवयस्क, एक वित्त वर्ष में ढाई लाख डॉलर (करीब पौने दो करोड़ रुपये) विदेशी मुद्रा देश से बाहर भेज सकते हैं। एलआरएस 4 फरवरी, 2004 को शुरू हुई थी। उस समय इसके तहत मात्र 25 हजार डॉलर विदेश ले जाने की इजाजत थी। इसके बाद अलग-अलग समय पर देश की अर्थव्यवस्था की स्थिति को ध्यान में रखकर एलआरएस के तहत विदेशी मुद्रा बाहर भेजने की सीमा घटाई-बढ़ाई गई है।

    जब वित्त वर्ष 2013-14 में चालू खाते का घाटा बढ़ने लगा और अधिकाधिक भारतीय विदेशी मुद्रा देश से बाहर ले जाने लगे तब रिजर्व बैंक ने स्थिति पर नियंत्रण पाने के लिए 14 अगस्त, 2013 को एलआरएस के तहत सीमा दो लाख डॉलर से घटाकर 75 हजार डॉलर कर दी। साथ ही विदेशों में अचल संपत्ति खरीदने के लिए एलआरएस के इस्तेमाल पर भी रोक लगा दी गई। बाद में इसे बढ़ाकर ढाई लाख डॉलर कर दिया गया। ध्यान देने वाली बात यह है कि इस योजना के तहत धनराशि बाहर भेजने के लिए पैन नंबर होना आवश्यक है। जो भी विदेशी मुद्रा आसानी से बदली जा सके, उसमें धनराशि बाहर भेजी जा सकती है।

     

    एलआरएस की सबसे अच्छी खूबी यह है कि इसके तहत विदेशी मुद्रा बाहर भेजने के लिए विदेश में बैंक खाता खोलने के लिए कोई पूर्वानुमति आवश्यक नहीं है। 1एलआरएस के तहत व्यक्ति विदेश में पढ़ाई करने, विदेश यात्र (नेपाल व भूटान को छोड़कर) पर जाने, उपहार या दान देने, विदेश में बसे रिश्तेदारों के लिए पैसा भेजने, बिजनेस ट्रैवल और विदेश में इलाज कराने जैसे काम के लिए विदेशी मुद्रा देश से बाहर ले जा सकता है। एलआरएस के तहत विदेश में लॉटरी का टिकट खरीदने और मुद्रा का कारोबार करने के लिए विदेशी मुद्रा देश से बाहर भेजने की इजाजत नहीं है। साथ ही फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) ने जिन देशों को नॉन कॉपरेटिव की श्रेणी में डाल रखा है, वहां भी एलआरएस के तहत पैसा नहीं भेजा जा सकता।

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