क्या होता है वोट ऑन अकाउंट? जानिए
देश में फरवरी में बजट पेश करने की परंपरा रही है, लेकिन चुनावों की वजह से इसमें कुछ फेरबदल भी करने पड़ते हैं
नई दिल्ली (बिजनेस डेस्क)। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 112 के तहत सरकार को हर साल संसद में एक वार्षिक वित्तीय विवरण पेश करना होता है। इसमें सालाना आय-व्यय का लेखा-जोखा होता है। इसे ही बजट कहते हैं। वैसे संविधान में बजट शब्द का उल्लेख नहीं है। हमारे देश में बजट पूरे वित्त वर्ष के लिए पेश किया जाता है जो पहली अप्रैल से अगले साल 31 मार्च तक के लिए मान्य होता है। देश में फरवरी में बजट पेश करने की परंपरा रही है, लेकिन चुनावों की वजह से इसमें कुछ फेरबदल भी करने पड़ते हैं।
पिछले कुछ समय से लोकसभा के चुनाव अप्रैल-मई में होते आए हैं, ऐसे में सरकार उस समय पूर्ण बजट पेश करने की स्थिति में नहीं होती, मगर सरकारी खचोर्ं को पूरा करने के लिए उसे इंतजाम जरूर करना पड़ता है ताकि नई सरकार के आने तक सभी व्यवस्थाएं सुचारू रूप से चलती रहें। इसके राजनीतिक एवं नैतिक निहितार्थ भी हैं। क्योंकि जिस सरकार के पास पूरे साल शासन चलाने का जनादेश नहीं है तो उसे पूरे साल का वित्तीय विवरण पेश करने से भी बचना होता है। ऐसी ही स्थिति में सरकार पूर्ण बजट पेश करने के बजाय कुछ महीनों का खर्च चलाने के लिए वोट ऑन अकाउंट पेश करती है। इसे लेखानुदान मांग, अंतरिम बजट और आम भाषा में मिनी बजट भी कहा जाता है।
संविधान के अनुच्छेद 116 में इसका प्रावधान है। इसमें सरकार कोई नया टैक्स नहीं लगाती। वैसे भी संविधान के अनुच्छेद 265 में स्पष्ट उल्लेख है कि कानून के प्राधिकार के बिना कोई भी टैक्स नहीं लगाया जा सकता। इसलिए अंतरिम बजट में सरकार विभागवार आवंटन कर बस कुछ महीने का खर्च चलाने के लिए धनराशि की मांग संसद के समक्ष प्रस्तुत करती है। इस तरह सरकार पूर्ण बजट आने से पहले एडवांस में अनुदान लेती है।
यहां यह समझना जरूरी है कि लेखानुदान, अनुदान की मांगों और अनुदान की पूरक मांगों से भिन्न है। संविधान के अनुच्छेद 115 में अनुदान की पूरक मांगों की व्यवस्था दी गई है। दरअसल जब विनियोग के जरिये निकाली गई राशि किसी कार्य के लिए पर्याप्त नहीं होती है तो सरकार उस कार्य को पूरा करने या नया कार्य शुरू करने के लिए अनुदान की मांग संसद के समक्ष रखती है।
सरकार जो भी खर्च करती है उसके लिए वह संचित निधि से राशि निकालती है। ऐसा नहीं है कि बजट पारित होने भर से सरकार संचित निधि से राशि निकाल ले। इसके लिए सरकार को संसद से विनियोग विधेयक पारित कराना पड़ता है। संविधान के अनुच्छेद 114 के तहत विनियोग विधियेक लोकसभा में पेश किया जाता है। इसके पारित होने के बाद ही सरकार संचित निधि से पैसा निकाल सकती है। संविधान के अनुच्छेद 266 में भारत की संचित निधि और लोकलेखा का जिक्र किया गया है।
भारत सरकार जो भी राजस्व प्राप्त करती है, लोन लेती है या लोन की अदायगी प्राप्त करती है, वह पूरा धन इस निधि में जमा होना चाहिए। ऐसी ही निधि राज्यों के लिए भी होती है। इस निधि में से एक भी पैसा विनियोग के बिना नहीं निकाला जा सकता।
वैसे जो खर्च सीधे भारत की संचित निधि से होने हैं, उन पर संसद में मतदान की जरूरत नहीं होती। बाकी अन्य खर्च के लिए संसद की मंजूरी जरूरी है। संविधान के अनुच्छेद 113 में इसकी व्यवस्था दी गई है।