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क्या होता है ईज ऑफ डूइंग बिजनेस रैंकिंग, जानिए

ईज ऑफ डूइंग बिजनेस का मतलब होता है किसी भी देश में कारोबार कितनी सरलता से शुरू किया जा सकता है

By Surbhi JainEdited By: Published: Mon, 28 May 2018 11:07 AM (IST)Updated: Mon, 28 May 2018 11:07 AM (IST)
क्या होता है ईज ऑफ डूइंग बिजनेस रैंकिंग, जानिए

नई दिल्ली (हरिकिशन शर्मा)। राजनीतिक और आर्थिक चर्चाओं में आप अक्सर ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस रैंकिंग’ का जिक्र सुनते होंगे। यह रैंकिंग क्या होती है? इसमें उतार-चढ़ाव का क्या मतलब होता है? जागरण पाठशाला के इस अंक में हम यही समझने का प्रयास करेंगे।

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ईज ऑफ डूइंग बिजनेस का मतलब होता है किसी भी देश में कारोबार कितनी सरलता से शुरू किया जा सकता है। विश्व बैंक हर साल डूइंग बिजनेस रिपोर्ट जारी करता है जिसमें वह 10 पैमानों पर 190 देशों की रैकिंग करता है जिसे ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस रैंकिंग’ कहते हैं। इसका मकसद यह जानना है कि किस देश में कारोबार शुरू करना आसान है और किस देश में कठिन।

जिन 10 पैमानों के आधार पर देशों की रैंक तय की जाती है वे हैं- बिजली कनेक्शन लेने में लगने वाला वक्त, कॉन्ट्रैक्ट लागू करना, बिजनेस शुरू करना, प्रॉपर्टी रजिस्ट्रेशन, दिवालियापन के मामले सुलझाना, कंस्ट्रक्शन सर्टिफिकेट, लोन लेने में लगने वाला वक्त, माइनॉरिटी इन्वेस्टर्स के हितों की रक्षा, टैक्स पेमेंट और ट्रेडिंग अक्रोस बॉर्डर (सीमापार व्यापार) शामिल हैं। एक 11वां पैमाना ‘श्रम बाजार के नियम’ भी होता है लेकिन देशों की रैंकिंग तय करते समय इसके मूल्य को नहीं जोड़ा जाता।

मोटे तौर पर समझें तो प्रत्येक देश में यह देखा जाता है कि वहां नया कारोबार शुरू करने में कितने दिन लग रहे हैं, कंस्ट्रक्शन परमिट लेने में कितना समय लग रहा है और बिजली कनेक्शन पाने में कितने दिन लग रहे हैं। ईज ऑफ डूइंग बिजनेस रैकिंग तैयार करने वाली टीम सरकारी अधिकारियों, कारोबारियों, शिक्षाविदों, चार्टर्ड अकाउंटेंट फर्म से फीडबैक लेकर यह डाटा जुटाती है।

विश्व बैंक ने 2003 से डूइंग बिजनेस रिपोर्ट प्रकाशित करना शुरू किया था। उस समय केवल पांच पैमानों के आधार पर 133 देशों की रैकिंग तैयार की जाती थी। ईज ऑफ डूइंग बिजनेस रैंकिंग की नवीनतम रिपोर्ट पिछले साल अक्टूबर में आई थी, जिसमें 190 देशों की सूची में भारत 100वें नंबर पर रहा।

सरकार ने आगामी वषों में भारत का स्थान शीर्ष 50 देशों में सुनिश्चित करने का लक्ष्य रखा है। आम तौर पर प्रत्येक देश के सबसे बड़े व्यापारिक शहर से इन पैमानों पर आंकड़े लेकर यह रिपोर्ट तैयार की जाती है, लेकिन 10 करोड़ से अधिक जनसंख्या वाले 11 देशों (बांग्लादेश, ब्राजील, चीन, भारत, इंडोनेशिया, जापान, मेक्सिको, नाइजीरिया, पाकिस्तान, रूस और अमेरिका) के मामले में देश के दूसरे बड़े व्यापारिक शहर से भी डाटा लिया जाता है। उदाहरण के लिए विश्व बैंक जब भारत की रैंक तय करता है तो वह दो शहरों मुंबई और दिल्ली से इन पैमानों पर आंकड़े जुटाता है। इसका मतलब यह हुआ कि अगर तमिलनाडु या गुजरात में कारोबार शुरू करना आसान है, वहां कंस्ट्रक्शन परमिट समय पर मिल रहा है, बिजली कनेक्शन भी जल्दी मिल जाता है लेकिन दिल्ली और मुंबई में ऐसा नहीं है तो देश की रैंकिंग बेहतर नहीं होगी।

यहां यह बात भी समझना जरूरी है कि ईज ऑफ डूइंग बिजनेस रैंकिंग एक जून से लेकर अगले साल 31 मई तक इन दस पैमानों पर उठाए गए सुधारात्मक कदमों को संज्ञान में लेकर तैयार की जाती है और अमूमन अक्टूबर के दूसरे सप्ताह में जारी होती है। इसका मतलब यह हुआ कि इस साल जब विश्व बैंक ईज ऑफ डूइंग बिजनेस रैकिंग अक्टूबर में जारी करेगा तो उसमें भारत सरकार, राज्य सरकारों और शहरी स्थानीय निकायों द्वारा पहली जून, 2017 से 31 मई, 2018 के बीच उठाए गए कदमों को संज्ञान में लिया जाएगा।

किसी देश के लिए ईज ऑफ डूइंग बिजनेस रैंकिंग बेहद महत्वपूर्ण है। बहुराष्ट्रीय कंपनियां किसी देश में निवेश से पहले वहां की ईज ऑफ डूइंग बिजनेस रैंकिंग में उतार-चढ़ाव को ध्यान में रखकर निर्णय लेती हैं। देश की रैंकिंग में सुधार आए और पूरे देश में कारोबार की प्रक्रिया आसान बने इसके लिए सरकार ने राज्यों के लिए भी एक एक्शन एजेंडा तैयार किया है। प्रत्येक राज्य को यह एजेंडा लागू करना है और इसके आधार पर राज्यों की रैंकिंग भी की जा रही है। हालांकि यह रैंकिंग विश्व बैंक द्वारा तैयार की जाने वाली देशों की रैंकिंग से अलग है।


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