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    शुरू करना चाहते हैं खुद का स्टार्टअप, तो जान लें एंजल इन्वेस्टर्स से कैसे जुटाएं पूंजी

    By Praveen DwivediEdited By:
    Updated: Thu, 02 May 2019 09:07 AM (IST)

    ऐसे आन्त्रप्रेन्योर (उद्यमी) जिनके पास आइडिया तो होता है लेकिन फंडिंग की कमी होती है उनका सहारा एंजेल इन्वेस्टर्स होते हैं

    शुरू करना चाहते हैं खुद का स्टार्टअप, तो जान लें एंजल इन्वेस्टर्स से कैसे जुटाएं पूंजी

    नई दिल्ली (प्रवीण द्विवेदी)। 4जी इंटरनेट वाले दौर में आज हर कोई छोटी से लेकर बड़ी जानकारी हासिल करने के लिए गूगल को खंगालता है। लोगों की इसी जिज्ञासा को भांपते हुए लाखों लोग मौजूदा दौर में अलग-अलग थीम पर अपनी वेबसाइट चलाकर आन्त्रप्रेन्योरशिप का फायदा उठा रहे हैं। इस उद्यमिता वाले दौर में जहां हर कोई अपने स्टार्टअप के जरिए न सिर्फ कमाई कर रहा है बल्कि लोगों को नौकरियां भी दे रहा है, इसमें एंजल इन्वेस्टर्स की भूमिका काफी अहम है। अगर आप यह नहीं जानते कि स्टार्टअप्स में इन्वेस्ट करने वाले एंजल इन्वेस्टर्स कौन होते हैं तो हमारी यह खबर आपके बेहद काम की है। इस बारे में हमने मेहता वेंचर्स के प्राइवेट इन्वेस्टर संजय मेहता (एंजेल इन्वेस्टर) से बात की है।

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    एंजल इन्वेस्टर्स कौन होते हैं?

    संजय मेहता ने बताया कि ऐसे आन्त्रप्रेन्योर (उद्यमी) जिनके पास आइडिया तो होता है, लेकिन फंडिंग की कमी होती है उनका सहारा एंजेल इन्वेस्टर्स होते हैं। ये इन्वेस्टर्स स्टार्टअप का बिजनेस मॉडल, फाउंडर, टीम और उद्यमी की प्लानिंग को समझते हुए उसमें फंडिंग को तैयार हो जाते हैं। इसके साथ ही उद्यमी एंजल इन्वेस्टर्स को बताता है कि उसे फंडिंग क्यों और किसलिए चाहिए। इसके साथ ही उसको अपने स्टार्टअप की यूनीक एजवांटेज बतानी होती है, कि कैसे उसका बिजनेस मॉडल बाजार में काम कर सकता है और उसके जैसा मार्केट में कोई नहीं है। यह मोनोपॉली जैसी स्थिति होती है। एंजल इन्वेस्टर्स मूलत: ऐसे स्टार्टअप्स में निवेश करते हैं जिसमें पैसा लगाने के बाद उन्हें उसका 10 गुना प्रॉफिट मिल जाए। ये छोटे निवेश के साथ शुरुआत करते हैं और तेजी से उस निवेश के बढ़ने के उद्देश्य के साथ कंपनी में हिस्सेदारी लेकर फंडिंग कर देते हैं। ध्यान दें कि एंजल इन्वेस्टर्स रियल एस्टेट में फंडिग नहीं करते हैं। ये प्रमुखता से टेक्नोलॉजी से जुड़े स्टार्टअप्स का चुनाव करते हैं।

    स्टार्टअप को फंडिंग कैसे करते हैं एंजल इन्वेस्टर?

    मेहता ने बताया कि इस प्रक्रिया में सबसे पहले एक पिच मीटिंग होती है। इसमें आन्त्रप्रेन्योर अपना आइडिया समझाता है और अपनी मीटिंग के बारे में बताता है। इसके बाद कई दौर की और मीटिंग होती है जिसमें एंजल इन्वेस्टर्स डिटेल में आन्त्रप्रेन्योर का प्लान समझता है। इसके बाद एंजल इन्वेस्टर्स आन्त्रप्रेन्योर के मॉडल की ऑथेंटिसिटी को समझता है, उनकी टीम के बारे में जानकारी हासिल करता है और फिर उसमें फंडिंग का फैसला लेता है। इसके बार टर्म सीट को देखा जाता है, जिसमें टर्म्स लिखे होते हैं कि फलां-फलां धारा के तहत स्टार्टअप में निवेश किया जाएगा। इसमें यह तय होता है एंजल इन्वेस्टर के निवेश करने पर उसे कितनी इक्विटी मिलेगी। मान लीजिए उसने 2 करोड़ का निवेश किया है तो उसे 15 या 20 फीसद तक की कितनी इक्विटी मिलेगी या नहीं। इसमें यह भी देखा जाता है कि कितने वैल्यूशन पर निवेश किया जा रहा है। इसके बाद सीए (चार्टेड अकाउंटेंट) को बोला जाता है कि वो उस कंपनी का लीगल ड्यू डेलिजेंस चेक करे। यह प्रक्रिया पूरी होने के बाद ही एंजेल इन्वेस्टर्स पैसा देने को तैयार होते हैं।

    आन्त्रप्रेन्योर एंजल इन्वेस्टर्स को कैसे करें अप्रोच?

    संजय मेहता ने बताया कि इसके लिए सबसे आसान तरीका यह है कि आप किसी ऐसे फाउंडर से बात करें जिसे फंडिंग मिली हुई है....आप उससे कहें कि वो आपको अपने इन्वेस्टर्स से बात कराएं। ऐसे में जो अच्छे फाउंडर होते हैं वे अपने एंजेल इन्वेस्टर्स को दूसरों को भी रेकमेंड करते हैं। वहीं लिंक्ड-इन भी एंजल इन्वेस्टर्स से जुड़ने का अच्छा तरीका है। इसकी मदद से आप स्टार्टअप, फाउंडर और इन्वेस्टर्स से खुद को कनेक्ट कर सकते हैं। अच्छे स्टार्टअप के पीछे सब इन्वेस्टर्स दौड़ते हैं। अच्छे आन्त्रप्रेन्योर के पीछे इन्वेस्टर दौड़ता है।

    फंडिग से एंजल इन्वेस्टर्स को क्या फायदा?

    स्टॉर्टअप्स फंडिंग में 3 तरह की एग्जिट होती है। मतलब एंजेल इन्वेस्टर्स के शेयर अगर कोई खरीदता है तो उसे एग्जिट बोला जाता है। जैसे हमारे पास किसी कंपनी में 20 फीसद हिस्सेदारी है। इसके बाद नए निवेशक आते रहते हैं और छोटे निवेशकों के शेयर्स को बायबैक कर लेते हैं। इसमें पुराने एंजल इन्वेस्टर्स को कई सौ गुना तक का मुनाफा हो जाता है। दूसरा तरीका है जहां कार्पोरेट कंपनी स्टार्टअप्स को खरीदती है। रिलायंस और महिंद्रा जैसी बड़ी कंपनियां जब पुराने एंजल इन्वेस्टर्स के शेयर खरीद लेती हैं, तो उनको फायदा हो जाता है। तीसरा तरीका यह होता है कि अगर कंपनी की हालत ठीक नहीं है तो उसको किसी और कंपनी के साथ मर्ज करा देते हैं, ताकि कंपनी बंद न हो और हमारे शेयर्स और पैसा वापस आ जाए।

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