साल में महीने 12, फिर 11 महीने का ही क्यों बनता है एग्रीमेंट? 90% लोग नहीं जानते; एक्सपर्ट ने 6 पॉइंट में समझा दिया
Rent Agreement Rule: आपने कभी न कभी जरूर सोचा होगा कि, जब साल में 12 महीने होते हैं तो रेंट एग्रीमेंट 11 महीने का ही क्यों बनाया जाता है? दरअसल, इसके पीछे कानूनी और टैक्स से जुड़े ऐसे नियम हैं, जो मकान मालिक और किराएदार दोनों के लिए फायदेमंद साबित होते हैं। अब सवाल यह है कि आखिर इससे फायदे क्या होते हैं? तो इस बारे में बता रहे हैं- स्क्वायर यार्ड्स के प्रिंसिपल पार्टनर सुधांशु मिश्रा।
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साल में महीने 12, फिर 11 महीने का ही क्यों बनता है एग्रीमेंट?
Rent Agreement Rule : आपने कभी न कभी जरूर सोचा होगा कि, जब साल में 12 महीने होते हैं तो रेंट एग्रीमेंट 11 महीने का ही क्यों बनाया जाता है? दरअसल, इसके पीछे कानूनी और टैक्स से जुड़े ऐसे नियम हैं, जो मकान मालिक और किराएदार दोनों के लिए फायदेमंद साबित होते हैं। 12 महीने का एग्रीमेंट करवाने पर रजिस्ट्रेशन और स्टांप ड्यूटी का खर्च बढ़ जाता है, जबकि 11 महीने का एग्रीमेंट इस झंझट से बचा लेता है। यही वजह है कि ज्यादातर लोग 11 महीने का ही करार करते हैं। इस पूरी प्रक्रिया को आसान भाषा में समझा रहे हैं- स्क्वायर यार्ड्स के प्रिंसिपल पार्टनर सुधांशु मिश्रा। आइए, जानते हैं 6 पॉइंट में रेंट एग्रीमेंट से जुड़ी अहम बातें।
1. क्या होता है रेंट एग्रीमेंट? (What is a rent agreement?)
यह एक तरह का लीगल डॉक्यूमेंट होता है, जो मकान मालिक और किराएदार के बीच होता है। इसमें घर किराए पर देने की सारी शर्तें लिखी होती हैं। जैसे- किराया कितना होगा, सुविधाएं क्या-क्या होंगी, एग्रीमेंट कितने महीने का है, सिक्योरिटी डिपॉजिट, मेंटेनेंस की जिम्मेदारी किसकी और एग्रीमेंट खत्म करने का तरीका या फिर यह खत्म कब होगा। यह कागज दोनों की हिफाजत करता है। अगर कोई झगड़ा हो जाए, तो ये कोर्ट में सबूत का काम करता है। इससे पारदर्शिता बनी रहती है और घर के इस्तेमाल और देखभाल को लेकर कोई कन्फ्यूजन नहीं रहता।
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2. 11 महीने का ही क्यों होता है रेंट एग्रीमेंट? (Why is the rent agreement only for 11 months?)
रेंट एग्रीमेंट (rent agreement) 11 महीने से ज्यादा के भी होते हैं। लेकिन सबसे ज्यादा पॉपुलर 11 महीने का ही है। क्योंकि, इसे रजिस्टर कराने की जरूरत नहीं पड़ती। 12 महीने या उससे ज्यादा के एग्रीमेंट में रजिस्ट्रेशन और ज्यादा स्टाम्प ड्यूटी देनी पड़ती है, जो खर्चीला और झंझट भरा होता है। 11 महीने का एग्रीमेंट किराएदार और मकान मालिक, दोनों के लिए सुविधाजनक होता है। किराया बढ़ाने या एग्रीमेंट खत्म करने में कम कानूनी पचड़े होते हैं। ये तरीका सस्ता और आसान है।
3. तो क्या 11 महीने से ज्यादा का बन सकता है एग्रीमेंट? (Can an agreement be made for more than 11 months?)
हां, बिल्कुल बन सकता है। एक साल, दो साल (12 या 24 महीने) या फिर उससे भी ज्यादा महीनों का एग्रीमेंट बन सकता है। लेकिन ऐसे एग्रीमेंट को सब-रजिस्ट्रार ऑफिस में रजिस्टर कराना जरूरी होता है। साथ ही, स्टाम्प ड्यूटी भी ज्यादा चुकानी पड़ती है। लंबे एग्रीमेंट से किराएदार को स्थिरता मिलती है और मकान मालिक को पक्की आमदनी। लेकिन इसके साथ कानूनी औपचारिकताएं बढ़ जाती हैं। ये दोनों पक्षों की सहमति और जरूरत पर निर्भर करता है।
4. रेंट एग्रीमेंट के कानूनी नियम क्या हैं? (What are the legal terms of a rent agreement?)
रेंट एग्रीमेंट लिखित, तारीख के साथ और दोनों पक्षों के दस्तखत वाला होना चाहिए। अगर एग्रीमेंट 11 महीने से ज्यादा का है, तो इसे रजिस्टर कराना जरूरी है। इसमें किराया, सिक्योरिटी डिपॉजिट, मेंटेनेंस, और किराया बढ़ाने की शर्तें साफ लिखी होनी चाहिए। इसे इंडियन कॉन्ट्रैक्ट एक्ट, ट्रांसफर ऑफ प्रॉपर्टी एक्ट और राज्य के रेंट कंट्रोल कानूनों के तहत बनाया जाता है। अगर लंबा करार रजिस्टर नहीं हुआ, तो कानूनी दिक्कत हो सकती है।
5. रजिस्ट्रेशन न कराने से कितनी बचत होती है? (How much is saved by not registering?)
11 महीने का रेंट एग्रीमेंट रखने से स्टाम्प ड्यूटी और रजिस्ट्रेशन का खर्चा बच जाता है। इसमें स्टाम्प ड्यूटी बहुत कम, कभी-कभी फिक्स फीस ही होती है और रजिस्ट्रेशन की जरूरत भी नहीं पड़ती। वहीं, 12 महीने से ज्यादा के करार (Agreement) में स्टाम्प ड्यूटी किराए की कुल राशि का एक परसेंट और रजिस्ट्रेशन फीस अलग से लगती है। ये खर्चा काफी ज्यादा हो सकता है।
6. 11 महीने बाद किराया कितना बढ़ सकता है? (How much can the rent increase after 11 months?)
किराया कितना बढ़ेगा, ये राज्य के रेंट कंट्रोल कानूनों और एग्रीमेंट की शर्तों पर निर्भर करता है। आमतौर पर 8-10% की बढ़ोतरी का नियम होता है, ताकि किराएदार पर बोझ न पड़े। कुछ एग्रीमेंट में फिक्स बढ़ोतरी लिखी होती है, तो कुछ में कानूनी सीमा का पालन होता है। कोई न्यूनतम बढ़ोतरी का नियम नहीं है, लेकिन मकान मालिक आमतौर पर महंगाई और बाजार के हिसाब से किराया बढ़ाते हैं।
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