रेडी-टू-मूव फ्लैट या अंडर कंस्ट्रक्शन, किसमें निवेश सुरक्षित? कौन देता है ज्यादा रिटर्न? एक्सपर्ट से समझें सबकुछ
घर खरीदते समय आपके सामने दो विकल्प होते हैं। पहला रेडी-टू-मूव और दूसरा अंडर-कंस्ट्रक्शन। कुछ लोग घर रहने के लिए खरीदते हैं तो कुछ निवेश के लिए। लेकिन सवाल यह है कि मौजूदा बाजार के हालात में कौन सा निवेश ज्यादा सुरक्षित और फायदेमंद है? कौन ज्यादा रिटर्न (high return property) देता है? इस बारे में बता रहे हैं स्क्वायर यार्ड्स के चीफ सेल्स ऑफिसर शरद शर्मा। चलिए समझते हैं...

नई दिल्ली| Ready to move vs under construction flat : जब आप घर खरीदने की सोचते हैं तो आपके सामने दो विकल्प होते हैं। पहला रेडी-टू-मूव और दूसरा अंडर-कंस्ट्रक्शन। कुछ लोग घर रहने के लिए खरीदते हैं तो कुछ निवेश (property investment) के लिए।
लेकिन सवाल यह है कि मौजूदा बाजार के हालात में कौन सा निवेश ज्यादा सुरक्षित और फायदेमंद है? कौन ज्यादा रिटर्न (high return property) देता है? तो इस बारे में बता रहे हैं स्क्वायर यार्ड्स के चीफ सेल्स ऑफिसर शरद शर्मा। तो चलिए आपके मन में उठ रहे सवालों को बारीकी से समझते हैं।
1. मौजूदा बाजार में दोनों के रिस्क और रिटर्न में क्या फर्क है?
जब बात रेडी-टू-मूव फ्लैट और अंडर कंस्ट्रक्शन (ready to move flats vs under construction) की हो तो आपका चुनाव इस बात पर निर्भर करता है कि आपको पजेशन कितनी जल्दी चाहिए और क्या आप पूरी रकम एक बार में चुका सकते हैं।
रेडी टू मूव फ्लैट: इनमें जोखिम कम है, क्योंकि निर्माण पूरा हो चुका होता है। आपको डिलीवरी में देरी या क्वालिटी की चिंता नहीं करनी पड़ती। आप तुरंत फ्लैट में रह सकते हैं या किराए पर दे सकते हैं। लेकिन, इनकी कीमत निर्माणाधीन प्रॉपर्टी से 10-15% ज्यादा हो सकती है। साथ ही, आपको पूरी रकम एक साथ देनी पड़ सकती है।
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अंडर कंस्ट्रक्शन प्रॉपर्टी: ये सस्ती होती हैं और बिल्डर अक्सर आसान किस्तों में पेमेंट का ऑप्शन देते हैं। लेकिन, इसमें देरी, बिल्डर की विश्वसनीयता, या प्रोजेक्ट रुकने का जोखिम रहता है। रिटर्न अच्छा हो सकता है अगर लोकेशन अच्छी हो, बिल्डर भरोसेमंद हो, और मार्केट की स्थिति ठीक रहे।
2. अंडर-कंस्ट्रक्शन में डिस्काउंट और फ्लेक्सिबल पेमेंट सच हैं या धोखा?
अक्सर अंडर-कंस्ट्रक्शन प्रोजेक्ट में डाउन पेमेंट या पजेशन-लिंक्ड प्लान जैसे ऑफर मिलते हैं, जो फाइनेंशियल फ्लेक्सिबिलिटी देते हैं। लेकिन ध्यान रखें, इसमें जोखिम खरीदार पर शिफ्ट हो जाता है। अगर बिल्डर देरी करे या प्रोजेक्ट रोक दे, तो पैसा वापस पाना मुश्किल हो सकता है।
3.RERA से अंडर-कंस्ट्रक्शन में कितना रिस्क कम हुआ?
RERA आने के बाद प्रोजेक्ट डिले, छिपे चार्ज और क्वालिटी इश्यू जैसी दिक्कतें कम हुई हैं। पेनल्टी और पारदर्शिता के चलते नियम सख्त हुए हैं, लेकिन देरी और विवाद पूरी तरह खत्म नहीं हुए, इसलिए खरीदार को अपनी तरफ से जांच-पड़ताल जरूर करनी चाहिए।
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4. मंदी में कौन सी प्रॉपर्टी ज्यादा मजबूत रहती है और क्यों?
मंदी या बाजार में उतार-चढ़ाव के समय रेडी-टू-मूव प्रॉपर्टी बेहतर प्रदर्शन करती है। क्योंकि, तैयार घर की मांग स्थिर रहती है और रिस्क कम होता है। अंडर-कंस्ट्रक्शन प्रोजेक्ट में कैश फ्लो घटने, खरीदार की हिचकिचाहट और काम रुकने का खतरा ज्यादा रहता है। हालांकि, नामी और वित्तीय रूप से मजबूत बिल्डर के प्रोजेक्ट पर असर कम पड़ता है।
5. नई टेक्नोलॉजी से अंडर-कंस्ट्रक्शन में पारदर्शिता कैसे बढ़ रही है?
ब्लॉकचेन जैसी टेक्नोलॉजी धीरे-धीरे भारतीय रियल एस्टेट में आ रही है। इससे ट्रांजैक्शन रिकॉर्ड स्थाई रहते हैं, स्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट और डिजिटल रजिस्ट्रेशन से पारदर्शिता बढ़ती है और धोखाधड़ी के मौके घटते हैं। हालांकि, इसका बड़े पैमाने पर इस्तेमाल अभी शुरुआती चरण में है।
6. पांच-सात साल में रिटर्न के लिए कौन सा ऑप्शन सही है?
अगर आप स्थिरता और तुरंत किराए की आमदनी चाहते हैं, तो रेडी-टू-मूव प्रॉपर्टी सुरक्षित है। वहीं, सही बाजार हालात और भरोसेमंद बिल्डर के साथ अंडर-कंस्ट्रक्शन प्रोजेक्ट भी बराबर या ज्यादा रिटर्न दे सकते हैं, लेकिन इसके लिए धैर्य और रिस्क झेलने की क्षमता चाहिए।
7. अंडर-कंस्ट्रक्शन खरीदते वक्त बिल्डर की साख कैसे जांचें?
- बिल्डर के पुराने प्रोजेक्ट्स और डिलीवरी रिकॉर्ड देखें।
- RERA रजिस्ट्रेशन और प्रोजेक्ट की कानूनी मंजूरी चेक करें।
- ऑनलाइन रिव्यूज पढ़ें और पुराने खरीदारों से बात करें।
- रियल एस्टेट या कानूनी विशेषज्ञ की सलाह लें।
8. रेडी-टू-मूव में छिपे खर्च कौन से?
मेंटेनेंस डिपॉजिट, क्लब या सोसाइटी फीस, प्रॉपर्टी टैक्स, होम इंश्योरेंस, रजिस्ट्रेशन और स्टांप ड्यूटी जैसे खर्चों के लिए पहले से बजट रखें। साथ ही, फर्निशिंग, इंटीरियर और छोटे-मोटे रिपेयर के लिए भी थोड़ा अतिरिक्त पैसा अलग रखें।
9. लोन लेना कहां आसान है?
बैंक आमतौर पर रेडी-टू-मूव प्रॉपर्टी पर जल्दी अप्रूवल देते हैं और शर्तें भी बेहतर होती हैं, क्योंकि इसमें जोखिम कम होता है। अंडर-कंस्ट्रक्शन प्रॉपर्टी, खासकर कम प्रसिद्ध बिल्डर से, ज्यादा जांच-पड़ताल के बाद लोन देती है, प्रक्रिया धीमी होती है और ब्याज दरें भी कभी-कभी ज्यादा होती हैं।
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