ईरान की चेतावनी, तेल गलियारे को बंद करेंगे; इससे भारत की ऊर्जा खरीद पर क्या पड़ेगा असर
इजरायल के साथ बढ़ते संघर्ष के बीच ईरान के तीन प्रमुख परमाणु स्थलों पर अमेरिका की बमबारी के बाद तेहरान ने चेतावनी दी है कि वह फारस की खाड़ी को अरब सागर से जोड़ने वाले दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण तेल गलियारे होर्मुज जलडमरूमध्य को बंद करने का अभूतपूर्व कदम उठा सकता है।

नई दिल्ली, जागरण न्यूज नेटवर्क : इजरायल के साथ बढ़ते संघर्ष के बीच ईरान के तीन प्रमुख परमाणु स्थलों पर अमेरिका की बमबारी के बाद तेहरान ने चेतावनी दी है कि वह फारस की खाड़ी को अरब सागर से जोड़ने वाले दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण तेल गलियारे होर्मुज जलडमरूमध्य को बंद करने का अभूतपूर्व कदम उठा सकता है। अपने विरोधियों पर दबाव बनाने के उद्देश्य से अगर ईरान इस विकल्प का चयन करता है तो इससे भारत की ऊर्जा सुरक्षा सहित वैश्विक और क्षेत्रीय स्तर पर भी महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ेगा। इसके बंद होने से वैश्विक आपूर्ति में तुरंत कमी आएगी जिससे कीमतों में उछाल आएगा क्योंकि वैश्विक तेल निर्यात का लगभग 30 प्रतिशत और दुनिया के एलएनजी (तरलीकृत प्राकृतिक गैस) का एक तिहाई हिस्सा प्रतिदिन इसी संकरे जलमार्ग से होकर गुजरता है। ओमान और ईरान के बीच इस जलमार्ग के बंद होने से प्रतिदिन लगभग 1.8 करोड़ बैरल तेल और अन्य ईंधन की शिपिंग पर संकट मंडरा सकता है।
गौरतलब है कि ईरान ने कई बार होर्मुज जलडमरूमध्य को बंद करने की धमकी दी है। लेकिन, कभी भी ऐसा नहीं किया है क्योंकि सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, कुवैत और इराक जैसे पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन (ओपेक) के अन्य सदस्यों के साथ-साथ उसे भी अपने अधिकांश कच्चे तेल के निर्यात के लिए इसी जलमार्ग पर निर्भर रहना पड़ता है। भारतीय तेल आपूर्ति पर क्या हो सकता है प्रभाव बहरहाल, अमेरिकी हमले के मद्देनजर अगर ईरान इस बार अपनी धमकी को अंजाम देता है तो भारत को भी नुकसान होगा क्योंकि उसके आयातित तेल का लगभग 40 प्रतिशत और तरलीकृत प्राकृतिक गैस (एलएनजी) का 50 प्रतिशत से अधिक इसी मार्ग से होकर गुजरता है।
भारत के एलएनजी आयात में अकेले कतर का योगदान लगभग 80 प्रतिशत है और एक महत्वपूर्ण हिस्सा यूएई से भी आता है। दोनों ही देश ईंधन की शिपिंग के लिए होर्मुज जलडमरूमध्य पर ही निर्भर हैं। जलडमरूमध्य एवं ईरान का विरोधियों पर दबाव इस जलडमरूमध्य की चौड़ाई इसके सबसे संकरे ¨बदु पर लगभग 33 किमी है, जबकि शिपिंग लेन सिर्फ तीन किमी चौड़ी है जो इसे बेहद संवेदनशील बनाती है। ईरान इस जलडमरूमध्य को अपने विरोधियों पर दबाव डालने के साधन के रूप में देखता है। इस जलमार्ग की भौगोलिक स्थिति और केशम तथा हेंगम जैसे प्रमुख द्वीपों पर ईरान के नियंत्रण के कारण तेहरान इसे बंद भी कर सकता है।
रणनीतिक मामलों के विशेषज्ञों की नजर में आशंका जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर डा. लक्ष्मण कुमार बेहरा ने कहा कि इस संकरे मार्ग के बंद होने से ऊर्जा बाजारों पर वैश्विक स्तर पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ेगा और इसका असर भारत की ऊर्जा सुरक्षा पर भी पड़ेगा। शि¨पग मार्ग में किसी भी तरह की बाधा से इराक और कुछ हद तक सऊदी अरब से भारत के कच्चे तेल के आयात पर बड़ा असर पड़ेगा। भारतीय नौसेना के पूर्व प्रवक्ता कैप्टन डीके शर्मा (सेवानिवृत्त) ने कहा कि ईरान की चेतावनी वैश्विक तेल व्यापार में महत्वपूर्ण व्यवधान पैदा कर सकती है। तेल की कीमतों में उछाल आने की उम्मीद है। कुछ विश्लेषकों का अनुमान है कि कीमतें 80-90 डालर प्रति बैरल या यहां तक कि 100 डालर प्रति बैरल तक पहुंच सकती हैं।
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