आपके निवेश पर असर डालेंगे नए अधिनियम
मानसून सत्र में निवेशकों के लिहाज से कई विधेयक पारित हुए जो आपके निवेश की दुनिया पर खासा असर डाल सकते हैं। मुख्य रूप से ऐसे चार विधेयकों पर चर्चा करें ...और पढ़ें

मानसून सत्र में निवेशकों के लिहाज से कई विधेयक पारित हुए जो आपके निवेश की दुनिया पर खासा असर डाल सकते हैं। मुख्य रूप से ऐसे चार विधेयकों पर चर्चा करेंगे। कंपनी अधिनियम, भूमि अधिग्रहण विधेयक, खाद्य सुरक्षा अधिनियम और पेंशन संशोधन अधिनियम। पेंशन से जुड़े पीएफआरडीए विधेयक का असर बोनस स्पेशल में देख सकते हैं। लेकिन सबसे पहले बात करते हैं कंपनी कानून की..
भूमि अधिग्रहण अधिनियम
अगला सवाल यह है कि भूमि अधिग्रहण विधेयक का आपके निवेश पर क्या असर होगा। भू-स्वामियों के नजरिये से देखें तो इसमें यह उल्लेख है कि ग्रामीण क्षेत्रों में अधिग्रहीत भूमि के लिए उसके बाजार भाव का चार गुना और शहरी क्षेत्रों में ऐसी भूमि के लिए उसके बाजार भाव का दो गुना बतौर मुआवजा अदा किया जाएगा। इस मुआवजे के अलावा भू-स्वामियों को अन्य लाभ दिए जाने का भी प्रावधान इसके तहत किया गया है। विश्लेषकों का कहना है कि इसकी वजह से जमीन की कीमत में 30 से 40 फीसद की बढ़ोतरी हो सकती है, जहां जमीनों का अधिग्रहण किया जाना है। साथ ही उन जगहों पर प्रॉपर्टी की कीमतों में भी 5-20 फीसद तक की वृद्धि हो सकती है। ऐसे में रीयल
एस्टेट के क्षेत्र में काम करने वाले निवेशक अभी निवेश कर अगले छह माह से एक-दो साल में ठीकठाक रिटर्न हासिल कर सकते हैं।
डेवलपर्स के नजरिये से देखें तो वे यह तो स्वीकार करते हैं कि इससे भू सौदों में पारदर्शिता बढ़ेगी, लेकिन साथ ही यह भी कहते हैं कि इसके लागू होने के बाद भूमि का अधिग्रहण मुश्किल और महंगा हो जाएगा। उनके लिए जमीन की लागत बढ़ेगी। इसका असर कुल परियोजना लागत और मार्जिन पर पड़ेगा। रीयल एस्टेट डेवलपर्स का यह भी कहना है कि इसका सबसे अधिक असर अफोर्डेबल हाउसिंग परियोजनाओं पर पड़ेगा।
उनके अनुसार, जब जमीन सस्ती नहीं मिलेगी, तो ऐसी परियोजनाओं के ग्राहकों को भी अपने सपनों के घर के लिए अधिक पैसे चुकाने होंगे।
कहां हैं निवेश के अवसर
ऐसा नहीं है कि यह स्थिति सबके लिए नुकसानदेह है। इसका सकारात्मक असर रीयल एस्टेट क्षेत्र की उन कंपनियों पर पड़ेगा, जिनके पास बड़ा लैंड बैंक मौजूद है। इस नजरिये से देखें तो उत्तर भारत में डीएलएफ, दक्षिण भारत में शोभा डेवलपर्स और पश्चिम भारत में एचडीआइएल की स्थिति बेहतर नजर आती है।
मॉर्गन स्टैनले ने अपनी ताजा रिपोर्ट में कहा है कि इस विधेयक का असर मध्यम से लंबी अवधि तक महसूस किया जाएगा। फर्म के मुताबिक बड़े और डाइवर्सिफाइड लैंड बैंक वाले डेवलपर्स जैसे डीएलएफ, शोभा डेवलपर्स, जेपी इंफ्राटेक और इंडियाबुल्स रीयल एस्टेट को इससे फायदा होगा। इनके अलावा ओबेरॉय रीयल्टी, पूवरंकरा प्रोजेक्ट्स और प्रेस्टीज एस्टेट्स जैसी कंपनियों को भी अपने बाजारों में लाभ मिल सकता है। यदि ये कंपनियां प्रॉपर्टी की बढ़ी कीमतों को ग्राहकों पर डालने में कामयाब हो जाती हैं तो इनके मुनाफे में खासा सुधार देखने को मिल सकता है। ऐसे में शेयर बाजार विश्लेषक यह राय दे रहे हैं कि स्थितियों को देखते हुए निवेशक इन कंपनियों पर भी दांव लगा सकते हैं। हालांकि विश्लेषक इस बारे में आगाह करने से नहीं चूकते कि निवेशकों को उन्हीं रीयल एस्टेट कंपनियों के शेयरों पर दांव लगाना चाहिए जिन पर कर्ज का बोझ न हो।
खाद्य सुरक्षा अधिनियम
अब बात करते हैं खाद्य सुरक्षा विधेयक की। कृषि लागत व मूल्य आयोग के अध्यक्ष अशोक गुलाटी के नेतृत्व वाली एक समिति ने इस बात की ओर संकेत किया है कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक की वजह से सरकारी खजाने पर भारी बोझ पड़ेगा। एक ऐसे समय में जब ईंधन आयात का खर्च नई ऊंचाइयों को छूता नजर आ रहा है, रुपये में कमजोरी का रुख है, कुल मिलाकर सार्वजनिक वित्त की स्थिति काफी खराब है। ऐसे हालात में क्रेडिट रेटिंग एजेंसियां भारत की रेटिंग घटाने को विवश हो सकती हैं।
कंपनी अधिनियम
सत्यम कम्प्यूटर सर्विसेज में हुए देश के सबसे बड़े कॉरपोरेट घोटाले के बाद निवेशकों के हित में कंपनी कानून में संशोधन की जरूरत काफी समय से महसूस की जा रही थी। जानकारों का मानना है कि नए कंपनी अधिनियम का स्वरूप ही ऐसा रखा गया है, जिससे कारोबार करने में आसानी हो। साथ ही, निवेशकों के हितों की रक्षा हो सके और कारोबार करने के तरीके को ज्यादा से ज्यादा पारदर्शी और लोकहितकारी बनाया जा सके। कॉरपोरेट गवनर्ेंस से संबंधित किसी भी समस्या से बचने के लिए इसमें कई उपाय किए गए हैं। नए कंपनी अधिनियम में क्लास एक्शन सूट का प्रावधान है।
क्लास एक्शन सूट का अस्त्र
निवेशकों के लिए क्लास एक्शन सूट का प्रावधान काफी अहमियत रखता है। नया प्रावधान यह है कि 100 शेयरधारक अथवा एक निश्चित हिस्सेदारी रखने वाले, जो भी कम हो, किसी कंपनी के गलत कारनामों के खिलाफ अदालत का दरवाजा खटखटा सकते हैं। यह अदालती कार्रवाई कंपनी, इसके निदेशक, ऑडिटर, सलाहकार, कंसल्टेंट आदि के खिलाफ की जा सकती है। एक जैसी शिकायतों को एक ही आवेदन में शामिल करने का प्रावधान है। इससे कार्रवाई में बेकार की देरी से बचा जा सकेगा। बैंकों को क्लास एक्शन सूट के दायरे से बाहर रखा गया है। निवेशकों के लिए फायदे की बात यह है कि कंपनियों के गलत कारोबारी तरीके के खिलाफ की गई अदालती कार्रवाई में उनका खर्च कम होगा। एक समूह के होने की वजह से दबाव बढ़ेगा और सफलता की संभावना ज्यादा होगी।
क्या-क्या करना है गैरकानूनी
-गलत बयानी अथवा झूठे वायदे के आधार पर किसी को अमुक शेयर में खरीदारी के लिए प्रेरित करना
-किसी और के फायदे के लिए वायदा बाजार में पोजीशन लेना (फ्रंट रनिंग)
-मीडिया में गलत और झूठी खबरों के आधार पर किसी को निवेश के लिए बरगलाना
-झूठे विज्ञापनों के जरिये लोगों के निवेश के फैसलों को प्रभावित करना
-रीयल एस्टेट और हॉली डे मेंबरशिप की योजनाएं भी धोखाधड़ी में शामिल
पोंजी योजनाओं पर सेबी की नकेल
सामूहिक निवेश योजनाओं (सीआइएस) पर नकेल कसते हुए पूंजी बाजार नियामक सेबी ने नए नियमों के जरिये अब यह साफ कर दिया है कि कौन सी योजनाएं इस श्रेणी में आती हैं।
अगर कोई इस तरह की गतिविधि में लिप्त पाया जाता है तो उस पर इसके अंतर्गत जुर्माने के कड़े प्रावधान किए गए हैं।
संबंधित नियमों में बड़ा बदलाव यह है कि सीआइएस के दायरे में किसी अकेले की धोखाधड़ी को भी शामिल किया गया है।
लेकिन अब अगर कोई अकेला व्यक्ति भी किसी भी तरह के विज्ञापन द्वारा गैरकानूनी तरीके से लोगों से फंड एकत्र करता है तो उसके खिलाफ सेबी के नियमों के तहत कार्रवाई की जा सकेगी।
पुराने नियमों में किसी संस्था का मामला ही था।
जुर्माना एक करोड़ से बढ़ाकर 25 करोड़ अथवा मुनाफे का तीन गुना (जो भी ज्यादा हो) तक किया गया है। धोखाधड़ी-गैरकानूनी कारोबारी तरीकों की परिभाषा खुली रखी गई है।
सेबी को नए अधिकारों में 100 करोड़ या उससे अधिक पूंजी के निवेश वाली पोंजी योजनाओं के नियमन और उनके खिलाफ कार्रवाई करने का अधिकार दिया गया है।
हाल ही में इंटरनेट और मोबाइल फोन के जरिये सीआइएस की योजनाओं के नाम पर लोगों के पैसे को कई गुना करने के दावों को भी सेबी ने सख्ती से लेने का फैसला किया है।

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