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    नियमों में बदलाव से म्यूचुअल फंड परेशान

    By Edited By:
    Updated: Mon, 21 Jul 2014 10:52 AM (IST)

    कैसी विडंबना है। बजट भाषण में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने वादा किया था कि कर नियमों में पुरानी तारीख से बदलाव के जरिये वह पुरानी देनदारी का भार नहीं डालेंगे। लेकिन उसी बजट में गैर इक्विटी म्यूचुअल फंड निवेशकों के टैक्स को पुरानी तारीख से बढ़ा दिया गया है। अगर आपने

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    कैसी विडंबना है। बजट भाषण में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने वादा किया था कि कर नियमों में पुरानी तारीख से बदलाव के जरिये वह पुरानी देनदारी का भार नहीं डालेंगे। लेकिन उसी बजट में गैर इक्विटी म्यूचुअल फंड निवेशकों के टैक्स को पुरानी तारीख से बढ़ा दिया गया है। अगर आपने फिक्स्ड इनकम जैसे गोल्ड, एमआइपी अथवा अंतरराष्ट्रीय इक्विटी फंड में पहली अप्रैल के बाद धन निकाला है तो आप पिछली तारीख से टैक्स देनदारी के दायरे में आ जाएंगे। इस नियम के चलते ऐसे काम के लिए टैक्स भरना होगा, जो आपने एलान से पहले किया है। वित्त विधेयक में भी यह विरोधाभास है। इसमें कहा गया है कि यह संशोधन पहली अप्रैल, 2015 से प्रभावी होगा और असेसमेंट वर्ष 2015-16 से इसका आकलन शुरू होगा। अगर असेसमेंट वर्ष 2015-16 है तो इस नियम के प्रभावी होने की तिथि एक अप्रैल 2014 होनी चाहिए न कि 2015। बजट के अगले दिन राजस्व सचिव ने इस बारे में बयान दिया कि यह पुरानी तारीख से लागू होगा। लेकिन अगले ही दिन इससे इन्कार कर दिया, तब से कोई स्पष्टीकरण नहीं आया है।

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    बजट में ऐसे विरोधाभास को अनदेखा नहीं किया जा सकता। अगर यह पिछली तारीख से लागू नहीं भी हो रहा है तो इस टैक्स प्रावधान के साथ कुछ दूसरे मुद्दे भी हैं। वित्त मंत्री ने कहा कि गैर इक्विटी फंड को बैंक डिपॉजिट के मुकाबले टैक्स संबंधी लाभ खुदरा निवेशकों के लिए अधिक हैं, जबकि इसका ज्यादा इस्तेमाल कॉरपोरेट करते हैं। इस मामले में वित्त मंत्री को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। आज इन फंडों में करीब आठ लाख करोड़ रुपये [बजट का लगभग आधा] निवेशित हैं। इतनी बड़ी राशि सरकारी व कॉरपोरेट बांडों में निवेशित है। यह उस अनुमान के करीब है, जिसकी कल्पना हर वित्त मंत्री करता है। किसी भी टैक्स नियम में छोटा सा बदलाव कर पूरे बिजनेस की गति को बाधित कर देना बेहद आसान है। और हमारे शासकों को संभवत: ऐसा करने में आनंद मिलता है। अगर टैक्स नियम में किसी तारीख से बदलाव होना है जैसा इस मामले में हुआ, तो उससे पहले हर निवेशक पुरानी होल्डिंग को बेच देना चाहेगा और नए निजाम में नया निवेश करेगा। फंड को रातोरात अपने बांड बेचने की इस हड़बड़ी में कितना बड़ी अव्यवस्था फैलेगी, इसका अंदाज भी नहीं लगाया जा सकता।

    लेकिन मुझे लगता है कि सरकारी बाबुओं के लिए यह एक प्रशिक्षण अभ्यास हो सकता है कि कैसे वित्तीय बाजारों को जानबूझकर बाधित होने से रोकने की कोशिश की जा सकती है। इस टैक्स में वृद्धि से एक समस्या और है। यह उन सभी व्यक्तिगत निवेशकों की वित्तीय योजना को चोट पहुंचाएंगी जो इस क्षेत्र में निवेश की योजना बना रहे थे। जेटली ने कहा था कि आर्बिट्रेज की यह व्यवस्था खुदरा निवेशकों को बहुत कम प्रभावित करेगी, क्योंकि उनकी संख्या सीमित है। यह सही तर्क नहीं है। फिक्स्ड इनकम फंड में निवेश करने वाले खुदरा निवेशकों में बड़ा हिस्सा कम जोखिम लेने वाले परंपरागत निवेशकों का है, जिनमें अधिकांश रिटायर लोग हैं। उन्हें यह बदलाव बड़ी चोट पहुंचाएगा। ये वो लोग हैं जिन्होंने पूरी योजनाबद्ध तरीके से अपनी भविष्य की जरूरतों को ध्यान में रखकर इन फंडों में निवेश किया है। मान लें कि कॉरपोरेट को टैक्स की निचली दरों का लाभ मिलना इतना जरूरी है तो क्यों न कॉरपोरेट और व्यक्तिगत खुदरा निवेशकों के लिए अलग-अलग हों? वैसे भी ज्यादातर मामलों में दोनों वगरें के लिए टैक्स की दरें अलग-अलग ही हैं।

    एक मुद्दा और है। गैर इक्विटी फंड का मतलब केवल बांड फंड नहीं है। इनमें मंथली इनकम प्लान, गोल्ड फंड, कर्ज आधारित मिश्रित फंड, इंटरनेशनल इक्विटी फंड और अन्य कमोडिटी फंड भी हैं। इनका इस्तेमाल ज्यादातर व्यक्तिगत निवेशक करते हैं। बुनियादी बात यह है कि इस तथाकथित आर्बिट्रेज [बैंकों को लाभ देने वाला] को दूर करने के लिए निवेशकों के एक बड़े हिस्से ने बिक्री कर बांड बाजार में जोखिम की एक स्थिति पैदा कर दी है।

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