इंडस्ट्री का सुझाव, GST कम करने से स्वास्थ्य बीमा की पहुंच बढ़ाने में मदद मिलेगी
आज से GST council की दो दिन की बैठक हो रही है। इसमें GoM की तरफ से दिए गए कई प्रस्तावों पर चर्चा होनी है। जीएसटी स्लैब चार से घटाकर दो करने के अलावा एक अहम प्रस्ताव स्वास्थ्य बीमा पर जीएसटी कम करने का है। इंडस्ट्री का कहना है कि जीएसटी कम करने से बीमा की पहुंच बढ़ाने में मदद मिलेगी।

स्वास्थ्य बीमा प्रीमियम पर जीएसटी में छूट का मंत्रिसमूह (जीओएम) का प्रस्ताव न केवल राजकोषीय नीति में बदलाव को रेखांकित करता है, बल्कि यह भारत के वित्तीय और सामाजिक परिदृश्य में स्वास्थ्य सुरक्षा को सुदृढ़ करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। आज स्वास्थ्य बीमा से जुड़े प्रीमियम पर 18 प्रतिशत जीएसटी लगता है, जिसका वहन करना अक्सर मध्यम आय वाले परिवारों और वरिष्ठ नागरिकों के लिए मुश्किल होता है। इस कर को हटाने से न केवल लागत कम होगी, बल्कि यह धारणा भी पुष्ट होगी कि स्वास्थ्य बीमा अपनी सहूलियत या मर्जी से लिए जाने वाले उत्पाद के बजाय आवश्यकता है।
प्रावधानों में सुधार की जरूरत है। भारत में स्वास्थ्य सेवाओं की महंगाई सामान्य उपभोक्ता मुद्रास्फीति से हमेशा अधिक रही है, जिससे परिवारों को आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। कई परिवारों के लिए अचानक मेडिकल इमरजेंसी उनकी सालों की बचत खत्म कर सकती है। फिर भी बीमा का प्रसार अभी सीमित है क्योंकि इसे खरीदना अनेक लोगों के लिए मुश्किल है। उदाहरण के लिए, 10,000 रुपये प्रीमियम वाली पॉलिसी पर 1,800 रुपये अतिरिक्त टैक्स चुकाना पड़ता है, जो पहले से ही कई खर्चों का सामना कर रहे परिवारों को बीमा लेने में बाधक बनता है। टैक्स हटाने से यह आर्थिक बोझ कम होगा और नए लोग बीमा खरीदने के लिए प्रोत्साहित होंगे।
इस पहल का असर सिर्फ लागत में कमी तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि प्रवेश संबंधी बाधाओं को कम करने से युवा आबादी जल्द बीमा के दायरे में आ सकती है। इससे जोखिम बंटेगा और बीमा उद्योग को भी दीर्घकालिक स्थिरता मिलेगी। सबसे अधिक प्रीमियम चुकाने वाले वरिष्ठ नागरिकों को भी बड़ी राहत मिलेगी। बच्चों या बुजुर्ग आश्रितों के लिए पॉलिसी लेने वाले परिवारों को अधिक वित्तीय लचीलापन मिलेगा। कुल मिलाकर, ये कदम स्वास्थ्य सुरक्षा के दायरे को बढ़ा सकते हैं और बीमा को परिवारों की वित्तीय योजना में और गहराई से शामिल कर सकते हैं।
उद्योग को इस प्रस्ताव से जुड़ी व्यावहारिक चुनौतियों का भी सामना करना पड़ सकता है। जीएसटी के बगैर बीमा कंपनियों को इनपुट टैक्स क्रेडिट नहीं मिलेगा, जो फिलहाल प्रौद्योगिकी, वितरण और परिचालन से जुड़े खर्चों की भरपाई करने में मदद करता है। इस बात का जोखिम है कि ये अतिरिक्त लागतें मूल प्रीमियम में शामिल हो सकती हैं, जिससे सुधार प्रक्रिया का उद्देश्य कमजोर पड़ सकता है। इसलिए, बीमा कंपनियों को कीमतों में अनुशासन और पारदर्शिता बनाए रखना होगा ताकि राहत सीधे उपभोक्ताओं तक पहुंचे।
इस प्रस्ताव के व्यापक प्रभाव भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं। बीमा का अधिक प्रसार अपनी जेब से स्वास्थ्य खर्च को कम करेगा। यह बदलाव न केवल परिवारों को आर्थिक संकट से बचाएगा, बल्कि सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणालियों पर दबाव भी कम करेगा, जिससे सरकारी संसाधनों का अधिक प्रभावी उपयोग हो सकेगा। समग्र आर्थिक स्तर पर, बेहतर तैयारी से परिवारों की वित्तीय स्थिरता को बढ़ावा मिलता है, उपभोग का स्तर बना रहता है और कुल मिलाकर इससे समग्र आर्थिक लचीलापन बढ़ता है।
अंतरराष्ट्रीय अनुभव हमें एक उपयोगी दृष्टिकोण प्रदान करता है। इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों ने लंबे समय से स्वास्थ्य बीमा प्रीमियम पर कर छूट या प्रोत्साहन दिए हैं, यह मानते हुए कि वित्तीय सुरक्षा को सहायक नीतियों के माध्यम से बढ़ावा देना चाहिए। भारत का प्रस्तावित सुधार इस वैश्विक दृष्टिकोण के अनुरूप है और एक प्रगतिशील नीति दिशा को दर्शाता है, जहां स्वास्थ्य बीमा को समावेशी विकास के लिए एक मूलभूत साधन के रूप में देखा जाता है।
हालांकि सरकार अल्पावधि में जीएसटी राजस्व के लिहाज कुछ छूट दे सकती है, लेकिन दीर्घकालिक स्तर बेहतर आर्थिक उत्पादकता के लाभ कहीं अधिक महत्वपूर्ण हैं। यह केवल वित्तीय रियायत नहीं बल्कि लचीलापन और सामाजिक सुरक्षा में निवेश होगा। यह भी जरूरी है कि नीति निर्माता, बीमाकर्ता और व्यापक स्वास्थ्य सेवा परितंत्र में अपना समर्थन दें। स्वास्थ्य बीमा प्रीमियम पर छूट से पहुंच का विस्तार हो सकता है, जोखिम बंट सकता है और समावेशी वित्तीय सुरक्षा के लक्ष्य को आगे बढ़ाया जा सकता है। यह सुधार आर्थिक और सामाजिक लक्ष्यों को जोड़ता है, जिससे देश अधिक स्वस्थ और सुरक्षित बन सकता है।
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