शेयर बाजार का पर्सनल इंडीकेटर
जैसे-जैसे मार्केट चढ़ता है आइपीओ की राह आसान हो जाती है और इन्वेस्टमेंट बैंकरों के लिए ये और भी ज्यादा आकर्षक बन जाते हैं। एक वक्त ऐसा आता है जब इन्वेस्टमेंट बैंकर ऐसे कारोबारों के मालिकों को भी लुभाने के लिए बेचैन हो जाते हैं जिन्हें मार्केट में उतरने की जरूरत नहीं होती। बेशक मैं गलत भी हो सकता हूं। हर चीज कभी न कभी पहली बार होती ही है।
धीरेंद्र कुमार,नई दिल्ली। मुझे आपको ये बताते हुए अफसोस हो रहा है कि हाल के कुछ सप्ताह में शेयर बाजारों में आए फेन (झाग) को दिखाने वाला इंडीकेटर हरकत में आ गया है। क्या आप ये सुन कर हैरान हुए? मुझे थोड़ा पीछे जाकर इस बात को खुलकर समझाना चाहिए।
क्या भारतीय इक्विटी मार्केट अब बीयर के ऐसे मग की तरह दिखने लगे हैं जिसे बहुत तेजी से भरा गया है? क्या ऊपर जमा हुआ फेन या झाग जल्दी ही बैठ जाएगा या यूं ही बना रहेगा? कोई कैसे पता लगाए कि क्या मार्केट के इस व्यवहार का कुछ ठोस और टिकाऊ आधार है?
वैल्यूएशन, लाभ का बढ़ना आदि ऐसे कई सीरियस इंडीकेटर हैं जिनका इस्तेमाल आमतौर पर इन सवालों का जवाब देने के लिए किया जाता है। कुछ हल्के-फुल्के मिजाज वाले इंडीकेटर भी हैं, जो मजाक जैसे लगेंगे पर असलियत में अच्छा करते हैं। मिसाल के तौर पर, जब शेयर मार्केट के इंडीकेटरों के बढ़ने की हेडलाइन गुलाबी अखबारों के बजाय सफेद अखबारों में आने लगती हैं, तो शेयर की कीमतें बढ़ सकती हैं।
मेरे पास एक पर्सनल इंडीकेटर भी है जो शेयर मार्केट में आए इस फेन को दिखाए और ये पिछले दो दशकों में अचूक रहा है। जब इन्वेस्टमेंट बैंकर वैल्यू रिसर्च का आइपीओ लाने के लिए मुझे काल करना शुरू करते हैं, तो मुझे पता चल जाता है कि इक्विटी मार्केट बहुत गर्मा गया है।
जैसे-जैसे मार्केट चढ़ता है, आइपीओ की राह आसान हो जाती है और इन्वेस्टमेंट बैंकरों के लिए ये और भी ज्यादा आकर्षक बन जाते हैं। एक वक्त ऐसा आता है, जब इन्वेस्टमेंट बैंकर ऐसे कारोबारों के मालिकों को भी लुभाने के लिए बेचैन हो जाते हैं, जिन्हें मार्केट में उतरने की जरूरत नहीं होती। बेशक, मैं गलत भी हो सकता हूं। हर चीज कभी न कभी पहली बार होती ही है।
मैं आपसे अपने सभी स्टाक और इक्विटी म्यूचुअल फंड बेचने की बात नहीं कर रहा हूं क्योंकि इन्वेस्टमेंट बैंकर मुझे काल कर रहे हैं। हालांकि, ये 'मजेदार' किस्म के मार्केट इंडीकेटर चाहे जो कुछ भी दिखाएं, इसके बावजूद, ये समय कुछ सावधान रहने का है।
इसका मतलब ये नहीं कि मार्केट में गिरावट आएगी ही या अभी मिलने वाला हर मुनाफा एक भ्रम है। नहीं, ऐसा कतई नहीं है। भारतीय अर्थव्यवस्था ने गजब का लचीलापन और ग्रोथ की क्षमता दिखाई है। हालांकि, अनुभवी निवेशक जानते हैं, मार्केट शायद ही कभी सीधी रेखा में चलते हों। तेजी के दौर के बाद अक्सर मार्केट की परख होती है।
याद रखें, सबसे अच्छे निवेश के फैसले अक्सर तब लिए जाते हैं जब आप ज्यादा लोगों की भावनाओं के ज्वार के खिलाफ तैर रहे होते हैं। इसलिए, जब मार्केट ऊपर की ओर बढ़ते रहते हैं, तब सावधानी की एक स्वस्थ खुराक के साथ तेजी के उत्साह को काबू में रखना अक्लमंदी होती है।आइए देखें कि इस बात क्या मतलब है। ये बढ़े हुए आशावाद का दौर है जिसमें निवेशकों को अपने एसेट एलोकेशन को लेकर सोचना चाहिए।
विविधता पर ध्यान देना चाहिए और बुनियादी बातों के मुताबिक अपना पोर्टफोलियो दुरुस्त कर लेना चाहिए। एक औसत निवेशक के लिए, चाहे वो सीधे स्टाक में निवेश करता हो या इक्विटी म्यूचुअल फंड का मुरीद हो, उसे अपने पोर्टफोलियो में नाटकीय बदलाव करने या एसेट बेचने की जल्दबाजी करने की जरूरत नहीं है।
इसके बजाय, ये एसेट एलोकेशन और निवेश के लक्ष्यों पर दोबारा नजर डालने और उनका पुनर्मूल्यांकन करने का एक मौका है। कहीं ऐसा तो नहीं कि आप बड़े रिस्क और बड़े मुनाफे वाले स्टाक या अग्रेसिव इक्विटी फंड्स में बहुत ज्यादा निवेश कर रहे हैं? स्टाक निवेशकों को उनके एलोकेशन को ज्यादा स्थिर रखने वाले और वैल्यू-ओरिएंडेट स्टाक में निवेश के बारे में सोचना चाहिए।
म्यूचुअल फंड निवेशक, ज्यादा स्थिरता वाले लार्ज-कैप या बैलेंस्ड फंड पर विचार कर सकते हैं। अपने इमरजेंसी फंड पर भी फिर से सोच-विचार करना सही होगा। मार्केट में उतार-चढ़ाव के समय, कैश ज्यादा होने से वित्तीय और भावनात्मक सुरक्षा मिल सकती है।
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