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    Mutual Fund में छोटी सोच से हो सकता है नुकसान, बड़े फायदे के लिए शार्ट-टर्म प्रॉफिट बुकिंग से बचना जरूरी

    भारतीय म्यूचुअल फंड इंडस्ट्री में तुरंत फायदा उठाने का रवैया रहा है। इंडस्ट्री में निवेशकों का आधार बढ़ाने की जबरदस्त संभावनाओं पर ध्यान देने के बजाए मौजूदा ग्राहक आधार को निचोड़ने में लोगों की रुचि ज्यादा दिखाई दी है।

    By Abhinav ShalyaEdited By: Abhinav ShalyaUpdated: Tue, 25 Apr 2023 10:33 AM (IST)
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    Mutual Fund strategy to making good profit

    नई दिल्ली, धीरेंद्र कुमार। पहली अप्रैल से कुछ म्यूचुअल फंड कैटेगरी के टैक्स में हुए बदलावों के बारे में आप अच्छे से जानते-समझते होंगे। इनसे ज्यादातर लोगों के टैक्स में कोई बड़ा बदलाव नहीं होगा। कई लोगों का टैक्स तो कुछ कम ही होगा। खासतौर पर उनका जो कम इनकम टैक्स वाले दायरे में आते हैं। इस टैक्स को लेकर मेरी आलोचना की सबसे बड़ी वजह लागत महंगाई सूचकांक है, जिसे मैं सैद्धांतिक तौर पर गलत मानता हूं।

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    हालांकि, इस सूचकांक के हटने से कोई गरीब होने वाला नहीं है। स्लैब पर आधारित टैक्स का सिस्टम सही और प्रगतिशील होता है। ऐसा सिस्टम ये तय करता है कि जिनकी आमदनी ज्यादा है वो ज्यादा टैक्स दें। आदर्श यही है कि हमें उस मुनाफे पर समायोजन मिलना चाहिए जो आमदनी का हिस्सा बन जाता है।

    परचेजिंग का पैनिक

    टैक्स में बदलावों को लेकर म्यूचुअल फंड बेचने वालों ने जिस तरह की अवसरवादिता दिखाई और खरीदने का पैनिक खड़ा किया, उसने हतप्रभ किया है। कमोवेश, वो ऐसा करने में सफल रहे। डेट फंड कैटेगरी में 27 मार्च से 31 मार्च के दौरान पांच दिनों में 39,325 करोड़ रुपये इधर से उधर हो गए। जबकि इसी महीने के पहले हिस्से में ये रकम महज 4,430 करोड़ रुपये थी।

    सच तो ये है कि अगर आप पहले से इन फंड्स में निवेश प्लान नहीं कर रहे थे, तो इस मौके पर करने का कोई मतलब नहीं था। खासतौर पर फंड बेचने वालों ने निवेशकों को उन फंड्स में पैसा लगाने पर जोर दिया, जिन पर टैक्स बढ़ने वाला था। इसके लिए ये सोचा ही नहीं गया कि ये फंड निवेशकों के लिए सही हैं या नहीं। इस सब में फंड बेचने वालों ने शॉर्ट-टर्म में मुनाफा कमाया और निवेशकों का निवेश प्लान व उनके निवेश की प्राथमिकताएं खतरे में डाल दीं।

    फंड बेचने वालों का लॉन्ग टर्म रिस्क बढ़ा

    समझने वाली बात ये भी है कि इससे फंड बेचने वालों का भी लॉन्ग टर्म रिस्क बढ़ा है, पर मुझे नहीं लगता कि आजकल इस बात की किसी को परवाह है।असल में ये एक पैटर्न में फिट बैठता है। सिर्फ कुछ ही हफ्तों पहले सेबी ने एसोसिएशन आफ म्यूचुअल फंड्स आफ इंडिया (एएमएफआइ) को पत्र भेजा था। इसमें तथाकथित बी-30 शहरों के डिस्ट्रीब्यूटरों को म्यूचुअल फंड स्कीम बेचने को प्रोत्साहित करने के लिए निवेशकों से अतिरिक्त खर्च अनुपात चार्ज नहीं करने के लिए कहा था।

    दरअसल, सेबी शहरों को दो ग्रुप में बांटता है। इसमें शीर्ष-30 (टी-30) और इसके बाद वाले बी-30 शहर होते हैं। पहले सेबी ने नए निवेश के लिए बी-30 शहरों से दो लाख रुपये तक के निवेश पर 0.30 प्रतिशत अतिरिक्त खर्च अनुपात चार्ज करने की इजाजत दी थी। इसका मकसद डिस्ट्रीब्यूटरों को छोटे शहरों में म्यूचुअल फंड प्रमोट करने के लिए इंसेंटिव देना था। पर, इस अतिरिक्त पैसे को पाने के लिए गलत तरीकों का इस्तेमाल हो रहा था।

    शार्ट-टर्म फायदे को तरजीह

    डिस्ट्रीब्यूटर इंसेंटिव का फायदा उठाने के लिए एक ही निवेश को बांट कर अलग-अलग निवेश के तौर पर दिखा रहे थे, क्योंकि इंसेंटिव सिर्फ दो लाख रुपये तक के निवेश पर था और निवेश के पहले साल में ही दिया जाता था। इसका नतीजा ये हुआ कि सेबी ने अतिरिक्त शुल्क खत्म कर दिया। साफ है कि म्यूचुअल फंड इंडस्ट्री में हर किसी को इस बाजीगरी का पता था पर सभी चुप रहे और इसे चलने दिया। यानी एक बार फिर उन्होंने लॉन्ग-टर्म के बजाए शॉर्ट-टर्म फायदे को तरजीह दी।

    निवेश से लेकर केवाईसी, ट्रैकिंग और रिडेम्प्शन तक सब कुछ डिजिटल तरीके से किया जाना, म्यूचुअल फंड्स की पहुंच को काफी तेज करने में मददगार साबित हो सकता है, अगर भारतीय म्यूचुअल फंड तुरंत मिलने वाले लाभ को देखना छोड़कर इसमें दिलचस्पी लें।