कैसे काम करता है लाइफ इंश्योरेंस क्लेम सेटलमेंट? एक्सपर्ट से जानें कैसे बनाएं दावे की राह आसान
Claim Settlement अगर आपने जीवन बीमा पॉलिसी ली है और चाहते हैं कि आपके न होने की दशा में दावेदारों को कोई परेशाानी क्लेम के दौरान न हो तो यह खबर आपके लिए है। हमारे एक्सपर्ट बताने जा रहे हैं कि क्लेम आसान हो इसके लिए आपको क्या करना चाहिए।
नई दिल्ली, निलेश परमार। वैसे तो जीवन बीमा (Life Insurance) का मुख्य उद्देश्य बीमित व्यक्ति की मृत्यु के कारण आमदनी में होने वाली अप्रत्याशित हानि को पूरा करना है, लेकिन बदलते समय के साथ लोग इसे निर्धारित खर्चों, दीर्घायु से जुड़े जोखिम, गंभीर बीमारियों और अपंगता आदि जैसी अनेक अन्य घटनाओं के लिए एक साधन के रूप में भी देखने लगे हैं। किसी पॉलिसी की पूरी अवधि में क्लेम (Insurance Claim) के भुगतान को बीमा की समाप्ति और सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि माना जाता है। लेकिन जैसा कहा जाता है, यहीं से सबसे गंभीर और ज़रूरी कार्य आरम्भ होता है। जहां, पॉलिसीधारक नियत प्रीमियमों का भुगतान करके अपने हिस्से की भूमिका पूरा करता है, वहीं बीमा कंपनी का वादा न्यायोचित दावों के भुगतान के साथ पूरा होता है।
बेहतर दावा निपटान (Claim Settlement) अनुपात से बीमा कंपनी की विश्वसनीयता बढ़ती है। सभी बीमा कंपनियां इस दिशा में सक्रिय रहती हैं। इसे हासिल करने के लिए प्रत्येक बीमा कंपनी की दावा निपटान की अपनी आतंरिक प्रक्रिया होती है, जो आईआरडीएआई (IRDAI) द्वारा निर्धारित मानदंड के दायरे में काम करती है।
विनियामक संस्थान अनुच्छेद 45 जैसे अनुच्छेदों के माध्यम से पॉलिसीधारकों के हितों की रक्षा करते हैं। साथ ही वे बीमा कंपनियों को जाली दावों से बचाने के लिए उन्हें पॉलिसीधारकों द्वारा इरादतन गलत जानकारी देने के मामले में दावे की जांच करने और उसे नामंजूर करके का अधिकार भी देते हैं। हालांकि, बीमा कंपनियां दावेदारों के पक्ष में और उनके हितों की रक्षा के लिए नियमों में ढील देकर दावे में रियायत देती हैं और अनुग्रह दावा (एक्स-ग्रेशिया क्लेम) का भुगतान करती हैं।
जहां दावा देय होता है, तो क्लेमेंट्स (दावेदार) अपने पास आम तौर पर उपलब्ध प्रासंगिक बुनियादी दस्तावेजों के साथ बीमा कंपनी को सूचित करता है। बीमा कंपनी दावे की वैधानिकता और जमा किये गए दस्तावजों की सत्यता का आकलन करती है। अगर सब कुछ नियमानुसार सही है तो बीमा कंपनी द्वारा तुरंत दावा भुगतान की प्रक्रिया आरंभ करने की अपेक्षा की जाती है (इसकी अधिकतम सीमा 30 दिनों की है)। हालांकि, बीमा कंपनी को कुछ संदेहास्पद मिलता है; तो ऐसी स्थिति के लिए आईआरडीए बीमा कंपनी को दावे की जांच-पड़ताल करने और उसके बाद निर्णय करने की अनुमति देता है। बीमा कंपनी के लिए हर हाल में 120 दिनों के भीतर जांच पूरी करना और दावे की स्वीकार्यता के विषय में फैसला करना अनिवार्य है। बीमा कंपनियां इस उद्देश्य के लिए थर्ड-पार्टी (बाहरी एजेंसी या Third Party) से मदद ले सकती हैं। इन जांच-पड़तालों से क्लेमेंट्स को भी अन्यथा मुश्किल दस्तावेज प्राप्त करने में मदद मिलती है और मुश्किल वक्त में उन्हें तनाव से राहत मिलती है।
सबसे महत्वपूर्ण यह है कि अगर पॉलिसी 3 वर्ष या उससे अधिक समय से चालू अवस्था में है तो बीमा कंपनियां स्वास्थ्य, पेशा, आमदनी आदि से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्यों को नहीं बताने या गलत रूप में बताने के आधार पर दावे को खारिज नहीं कर सकती हैं।
इस प्रक्रिया में, बीमा कंपनियां अपनी वेबसाइट, फ़ोन हेल्पलाइन, कंपनी के ऐप, शाखाओं, और फील्ड स्टाफ/अधिकारियों के जरिए क्लेमेंट्स को नियमित रूप से अद्यतन जानकारी देती हैं। त्वरित दावा निपटान के उद्देश्य से इन माध्यमों का प्रयोग दस्तावेजों/कागजात के आदान-प्रदान और अन्य ज़रूरी बातचीत के लिए भी किया जाता है।
दावे को नामंजूर करना संवेदनशील मामला है और यह ग्राहक तथा बीमा कंपनी, दोनों के लिए घाटे की स्थिति होता है। नामंजूरी से क्लेमेंट्स को ज़रूरत के वक्त में आर्थिक नुकसान होता है। नामंजूरी के उच्चतर अनुपात से बीमा कंपनी की विश्वसनीयता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
कोई कंपनी सही क्लेम को नामंजूर करना नहीं चाहेगी। क्लेम के किसी भी दुर्भाग्यपूर्ण मामले में कोई समस्या ना आए, यह सुनिश्चित करने के लिए पॉलिसी लेते वक्त ग्राहक को पूरे भरोसे के उच्चतम मानदंडों का प्रदर्शन करना चाहिए और सभी महत्वपूर्ण तथ्यों का खुलासा करना चाहिए। ग्राहक और वितरक, दोनों को इस अच्छी पद्धति का पालन करना चाहिए ताकि किसी दुर्भाग्य की स्थिति में बीमा का उद्देश्य पूरा हो सके। अगर ग्राहक ईमानदारीपूर्वक सभी जानकारियों को साझा करता है तो आप क्लेम के भुगतान/निपटान के लिए निश्चिन्त रह सकते हैं।
आईआरडीएआई ने सभी बीमा कंपनियों के लिए एक शिकायत निवारण तंत्र स्थापित करना अनिवार्य किया है। यह प्रक्रिया विस्तृत दिशानिर्देशों और समय-सीमा के साथ बीमाधारकों के हितों की रक्षा (PPHI) विनियमों के अंतर्गत आईआरडीएआई के उपभोक्ता मामला विभाग के शिकायत निवारण प्रकोष्ठ द्वारा नियंत्रित होती है। पीड़ित क्लेमेंट्स अगर अपनी शिकायत पर बीमा कंपनी के फैसले से संतुष्ट नहीं है तो वह बीमा लोकपाल (इंश्योरेंस ओम्बुड्समैन) से संपर्क करने का विकल्प अपना सकता है।
(लेखक फ्यूचर जेनेराली इंडिया लाइफ इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड के मुख्य परिचालन अधिकारी हैं। प्रकाशित विचार उनके निजी हैं।)