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    भारत में खेती को बदल रहीं ये आधुनिक तकनीक, जानें World Economic Forum की रिपोर्ट में क्या कहा

    Updated: Fri, 07 Nov 2025 03:59 PM (IST)

    Agriculture News: वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम (WEF) ने शुक्रवार को एक रिपोर्ट जारी की। इसमें बताया गया है कि कैसे सात आधुनिक टेक्नोलॉजी कृषि क्षेत्र में बदलाव ला रही हैं। खास बात यह है कि इन बदलावों के लिए फोरम ने अपनी रिपोर्ट में भारत की कई केस स्टडी का हवाला दिया है। 

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    एआई, रोबोटिक्स, नैनो टेक्नोलॉजी से बदलेगी कृषिः WEF

    Agriculture News: वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम (WEF) ने एक रिपोर्ट में कहा है कि जनरेटिव एआई, रोबोटिक्स और उपग्रह-आधारित रिमोट सेंसिंग सहित सात उभरती टेक्नोलॉजी कृषि में क्रांतिकारी बदलाव लाने के लिए तैयार हैं। इन सात उभरती टेक्नोलॉजी में कंप्यूटर विजन, एज इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT), CRISPR (क्लस्टर्ड रेगुलरली इंटरस्पेस्ड शॉर्ट पैलिंड्रोमिक रिपीट्स) और नैनो टेक्नोलॉजी भी शामिल हैं। ये ग्रामीण आजीविका को सुरक्षित करते हुए लचीलापन और उत्पादकता को बढ़ावा देंगी। रोचक बात यह है कि इस रिपोर्ट में भारत की कई केस स्टडी का हवाला दिया गया है।

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    रिपोर्ट का शीर्षक ‘कृषि में गहन-तकनीकी क्रांति को आकार देना’ है। इसे उद्योग और शिक्षा जगत, दोनों के हितधारकों के सहयोग से विकसित किया गया है। यह रिपोर्ट ऐसे समय में आई है जब कृषि क्षेत्र वैश्विक स्तर पर संकटों के दौर से गुजर रहा है।

    प्राकृतिक संसाधनों के क्षरण से आजीविका को खतरा

    गांवों से शहरों की ओर बढ़ता पलायन, जलवायु परिवर्तन की तीव्रता और प्राकृतिक संसाधनों, विशेषकर मिट्टी और जल का तेजी से क्षरण उत्पादकता को खतरे में डाल रहे हैं। इससे कृषि पर निर्भर आजीविका के लिए भी खतरा बढ़ रहा है।

    संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) के अनुसार वर्ष 2050 तक बढ़ती आबादी का पेट भरने के लिए दुनिया को काफी अधिक खाद्यान्न उत्पादन करने की आवश्यकता होगी। यह लक्ष्य बढ़ते दबावों को देखते हुए हासिल करना होगा, क्योंकि दुनिया की एक-तिहाई मिट्टी का क्षरण हो चुका है, 71 प्रतिशत एक्वीफर समाप्त हो चुके हैं और औसत किसान की उम्र लगभग 60 वर्ष हो रही है।

    टेक्नोलॉजी में मूलभूत बदलाव लाने की क्षमता

    विश्व आर्थिक मंच (WEF) ने कहा कि इन सात तकनीकी क्षेत्रों में फसलों की खेती, निगरानी, संरक्षण और वितरण के तरीकों में मूलभूत बदलाव लाने की क्षमता है, जिससे पूरे कृषि क्षेत्र में उत्पादकता, स्थिरता और लचीलेपन में सुधार होगा। रिपोर्ट में ऑटोनोमस स्वार्म रोबोटिक्स, प्रिसिजन कृषि प्रबंधन, एजेंटिक एआई सिस्टम और कार्बन रिपोर्टिंग जैसे उच्च-प्रभावी उपयोग के मामलों के लिए इन टेक्नोलॉजी की क्षमता पर भी प्रकाश डाला गया है।

    सरकारों से तालमेल बनाए रखने का आग्रह

    इसमें कई उदाहरण भी दिए गए हैं। मसलन, जलवायु-अनुकूल चावल की किस्में जो 20 प्रतिशत कम उत्सर्जन करती हैं, गन्ने में प्रिसिजन खेती जिससे पैदावार में 40 प्रतिशत की वृद्धि हुईहै, और सप्लाई चेन जोखिमों का पूर्वानुमान लगाने और कार्बन वित्त पोषण को बढ़ावा देने के लिए रिमोट सेंसिंग के उपयोग को प्रदर्शित किया गया है।

    WEF ने गहन तकनीकी इनोवेशन को बढ़ावा देने के लिए और अधिक प्रयास करने का आह्वान किया है जो कृषि प्रणालियों की समस्याओं का समाधान करने में मदद कर सकते हैं। साथ ही इसने सरकारों से तकनीकी प्रगति के साथ तालमेल बनाए रखने के लिए चुस्त नीतियों और नियामक सैंडबॉक्स को अपनाने का आग्रह किया है।

    कृषि पहल के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस

    यह रिपोर्ट विश्व आर्थिक मंच की कृषि पहल के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI4AI) की तरफ से जारी की गई है। वर्ष 2021 से AI4AI पहल ने भारत में 895,000 से अधिक किसानों को डिजिटल तकनीक प्रदान की है। AI4AI ने कृषि में टेक्नोलॉजी के परिवर्तनकारी प्रभाव को दिखाने के लिए सरकारों, निजी क्षेत्र, शिक्षा जगत, स्टार्टअप और नागरिक समाज सहित बहु-हितधारक साझेदारियों को बढ़ावा दिया है।

    भारत में सीखे गए सबक के आधार पर AI4AI ने सऊदी अरब, कोलंबिया और ब्राजील में भी इसी तरह की पहल की अवधारणा का समर्थन किया है। WEF ने कहा कि अनियमित वर्षा और बढ़ते तापमान के कारण कई बागवानी फसलों को लगभग 65 प्रतिशत का नुकसान हुआ है।

    भारत की केस स्टडी का हवाला

    रिपोर्ट में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) द्वारा देश में जलवायु-अनुकूल चावल विकसित करने की एक केस स्टडी का हवाला दिया गया है। फसल-सुधार की पारंपरिक विधियों में प्रजनन चक्र लंबा होता है और प्रिसिजन सीमित होता है। इससे उभरते जलवायु और रोग संकट के दबावों से निपटने के लिए किस्मों का विकास धीमा हो जाता है।

    इस समस्या से निपटने के लिए ICAR के शोधकर्ताओं ने CRISPR-आधारित जीनोम संपादन का उपयोग करके चावल की दो किस्में विकसित कीं। पहली, DRR 100 ने सूखे, लवणता और जलवायु के दबावों के प्रति सहनशीलता में सुधार किया है। ICAR का दावा है कि इससे उपज में 19 प्रतिशत की वृद्धि और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में 20 प्रतिशत की कमी हो सकती है। दूसरी किस्म, पूसा डीएसटी चावल 1 लवणीय और क्षारीय मिट्टी में यील्ड में 9.66 से 30.4 प्रतिशत तक की वृद्धि कर सकती है। कुल मिलाकर उत्पादन में 20 प्रतिशत की वृद्धि होने का दावा किया गया है।

    पीएम फसल बीमा योजना की भकेस स्टडी

    एक अन्य केस स्टडी में भारत की प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाई) के तहत कुशल फसल बीमा के लिए रिमोट सेंसिंग का उल्लेख किया गया है। बीमा के लिए फसल को नुकसान का आकलन पारंपरिक रूप से मैनुअल क्रॉप-कटिंग प्रयोगों (सीसीई) पर निर्भर करता है। लेकिन यह विधि धीमी और अक्सर गलत होती है। इसमें पारदर्शिता की भी कमी होती है। इसलिए दावों के निपटान में देरी हो सकती है और विवाद हो सकते हैं।

    इस समस्या के समाधान के लिए पीएमएफबीवाई ने रिमोट सेंसिंग पर केंद्रित एक तकनीक-आधारित समाधान लागू किया। यह प्रणाली फसल के स्वास्थ्य की निगरानी के लिए उपग्रह इमेजरी का उपयोग करती है। हाई-रिजॉल्यूशन वाले ड्रोन और जियोटैग्ड, रीयल-टाइम डेटा संग्रह के लिए एक मोबाइल ऐप इसके पूरक हैं। WEF ने कहा कि इस तरह के तकनीकी परिवर्तन से दावों का निपटान तेज और अधिक सटीक हो सकता है, किसानों को जरूरत के समय वित्तीय सहायता मिल सकती है।

    भारत की अन्य केस स्टडीज में लचीलापन बढ़ाने के उद्देश्य से नैनो इनपुट विकसित करने के लिए स्थानीय कार्यक्रम, कार्बन निगरानी, रिपोर्टिंग और सत्यापन (MRV) के लिए उपग्रह-आधारित रिमोट सेंसिंग का उपयोग और जनरेटिव एआई को बढ़ाने के लिए डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर के उपयोग पर चर्चा की गई है।

     

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