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    अमेरिकी शुल्क का भारतीय तांबा कंपनियों पर नहीं होगा असर

    Updated: Wed, 09 Jul 2025 08:48 PM (IST)

    अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के तांबे पर प्रस्तावित 50 प्रतिशत आयात शुल्क का भारतीय कंपनियों पर कोई खास प्रभाव नहीं पड़ेगा क्योंकि भारत पहले से ही तांबे की कमी से जूझ रहा है। कोयला एवं खनन मंत्री जी किशन रेड्डी ने कहा है कि भारत अमेरिकी शुल्कों के प्रभाव पर विचार करेगा। दवा उद्योग का कहना है कि दवाओं पर शुल्क लगने से कीमतें बढ़ानी होंगी।

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    अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के तांबे पर प्रस्तावित 50 प्रतिशत आयात शुल्क का भारतीय कंपनियों पर प्रभाव नहीं पड़ेगा।

    नई दिल्ली। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के तांबे पर प्रस्तावित 50 प्रतिशत आयात शुल्क का भारतीय कंपनियों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा, क्योंकि देश पहले ही तांबे की कमी से जूझ रहा है।

    इसके साथ ही कोयला एवं खनन मंत्री जी किशन रेड्डी ने बुधवार को कहा कि भारत तांबे पर अमेरिकी शुल्कों के प्रभाव पर चर्चा करेगा।

    इंटरनेशनल कापर एसोसिएशन (आइएए) के भारत स्थित प्रबंध निदेशक मयूर करमरकर ने कहा, भारत पहले ही तांबे की कमी से जूझ रहा है और इसका निर्यात बहुत कम है। कुल निर्यात में से अमेरिका को भेजे जाने वाला तांबा लगभग 10 हजार टन है।

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    वहीं, घरेलू दवा उद्योग ने कहा है कि अगर ट्रंप प्रशासन दवाओं पर 200 प्रतिशत का आयात शुल्क लगाता है तो उत्पादों की कीमतें बढ़ाने के अलावा कोई विकल्प नहीं होगा। उद्योग से जुड़े एक अधिकारी ने कहा, स्थिति अभी भी बदल रही है। हमारा मानना है कि शुल्क इतना •ा्यादा नहीं हो सकता, क्योंकि इससे अमेरिका में खरीदारों की लागत भी बढ़ जाएगी। अगर ऐसा होता है तो हमें उसी के अनुसार कीमतें बढ़ानी होंगी, क्योंकि हम कम मार्जिन पर काम करते हैं।

    ये शुल्क भारत पर कैसे प्रभाव डालेंगे?

    भारत ने 2024-25 में वैश्विक स्तर पर 2 बिलियन डॉलर मूल्य का तांबा और तांबा उत्पाद निर्यात किया। इसमें से अमेरिकी बाजारों को निर्यात 360 मिलियन डॉलर या 17 प्रतिशत रहा। व्यापार आंकड़ों के अनुसार, सऊदी अरब (26 प्रतिशत) और चीन (18 प्रतिशत) के बाद अमेरिका भारत का तीसरा सबसे बड़ा तांबा निर्यात बाजार है। 

    लेकिन तांबा एक महत्वपूर्ण खनिज है और इसका इस्तेमाल ऊर्जा, विनिर्माण और बुनियादी ढांचे सहित सभी क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर किया जाता है। नए टैरिफ के बाद अमेरिकी मांग में किसी भी तरह की गिरावट को घरेलू उद्योग द्वारा अवशोषित किए जाने की संभावना है। 

    भारत को सबसे ज़्यादा नुकसान दवा क्षेत्र को हो सकता है। अमेरिका भारत का सबसे बड़ा विदेशी दवा बाज़ार है, जिसका निर्यात वित्त वर्ष 2025 में बढ़कर 9.8 अरब डॉलर हो गया, जो पिछले वर्ष के 8.1 अरब डॉलर से 21 प्रतिशत ज़्यादा है। यह भारत के कुल दवा निर्यात का 40 प्रतिशत है।

    इस क्षेत्र पर 200 प्रतिशत शुल्क लगाने से मांग पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है, विशेषकर इसलिए क्योंकि भारत का जेनेरिक उद्योग संयुक्त राज्य अमेरिका में सस्ती दवाओं की आपूर्ति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।