देश की आधी से ज्यादा मिट्टी में नहीं हैं उपजाऊ तत्व, उर्वरकों से भी नहीं सुधर रही मिट्टी की सेहतः रिपोर्ट
India Soil Health Crisis: राजस्थान के निमली में अनिल अग्रवाल एनवायरनमेंट ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट (AAETI) में सस्टेनेबल फूड सिस्टम पर आयोजित राष्ट्रीय कॉन्क्लेव में सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE) ने एक रिपोर्ट जारी की। यह रिपोर्ट सरकार के सॉइल हेल्थ कार्ड डेटा पर आधारित है। इसमें बताया गया है कि उर्वरकों का इस्तेमाल बढ़ने के बावजूद कैसे मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी है।

देश की 64% मिट्टी में नाइट्रोजन की कमी
India Soil Health Crisis: भारत की मिट्टी में नाइट्रोजन और ऑर्गेनिक कार्बन जैसे जरूरी पोषक तत्वों की कमी बहुत अधिक हो गई है। यह सस्टेनेबल खेती के भविष्य को लेकर चिंताजनक है। पर्यावरण पर काम करने वाली संस्था सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE) ने सरकार के सॉइल हेल्थ कार्ड डेटा पर आधारित एक स्टडी रिपोर्ट में यह जानकारी दी है।
स्टडी में पाया गया कि मिट्टी के 64 प्रतिशत सैंपल में नाइट्रोजन कम था और 48.5 प्रतिशत में ऑर्गेनिक कार्बन की कमी थी। मिट्टी की उपजाऊ शक्ति और जलवायु परिवर्तन से लड़ने की क्षमता के ये दो मुख्य इंडिकेटर हैं। पौधों के विकास के लिए नाइट्रोजन आवश्यक तत्व है। नतीजों से पता चला कि भारत में फर्टिलाइजर के ज्यादा इस्तेमाल से मिट्टी की सेहत में सुधार नहीं हुआ है।
उर्वरक डालने से मिट्टी में पोषक तत्व नहीं बढ़े
डेटा से पता चलता है कि मिट्टी में नाइट्रोजन फर्टिलाइजर डालने से मिट्टी के नाइट्रोजन स्तर में कोई खास सुधार नहीं होता। इसी तरह, संपूर्ण फर्टिलाइजर (NPK) के इस्तेमाल से मिट्टी में ऑर्गेनिक कार्बन की मात्रा में कोई बढ़ोतरी नहीं होती है। स्टडी में चेतावनी दी गई है कि इस कमी से लंबे समय में उत्पादकता और मिट्टी की कार्बन स्टोर करने की क्षमता को खतरा है। जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने के लिए ये गुण जरूरी हैं।
स्टडी में कहा गया है, "स्वस्थ मिट्टी का एक जरूरी काम ऑर्गेनिक कार्बन स्टोर करने की उसकी क्षमता है। यह गुण जलवायु परिवर्तन के असर को कम करने के लिए जरूरी है। भारत की मिट्टी हर साल लगभग 6-7 टेराग्राम कार्बन जमा कर सकती है।"
"सस्टेनेबल फूड सिस्टम्स: एजेंडा फॉर क्लाइमेट-रिस्क्ड टाइम्स" शीर्षक वाली यह रिपोर्ट CSE ने राजस्थान के निमली में अनिल अग्रवाल एनवायरनमेंट ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट (AAETI) में सस्टेनेबल फूड सिस्टम पर आयोजित राष्ट्रीय कॉन्क्लेव में जारी की।
सॉइल हेल्थ कार्ड में 12 पैरामीटर की जांच
नेशनल मिशन फॉर सस्टेनेबल एग्रीकल्चर के तहत 2015 में शुरू की गई सॉइल हेल्थ कार्ड (SHC) स्कीम 12 केमिकल पैरामीटर्स की जांच करती है और किसानों को उर्वरकों के इस्तेमाल के बारे में सुझाव देती है। इस स्कीम के तहत 2023 और 2025 के बीच लगभग 1.3 करोड़ मिट्टी के सैंपल्स की टेस्टिंग की गई।
कॉन्क्लेव में एक्सपर्ट्स ने कहा कि मॉनिटरिंग अभी अधूरी है। CSE के फूड सिस्टम्स प्रोग्राम के डायरेक्टर अमित खुराना ने कहा, "सिर्फ इन पैरामीटर्स पर फोकस करने से मिट्टी के पोषक तत्वों की पूरी स्थिति का पता नहीं चलता। FAO की GLOSOLAN जैसी संस्थाएं मिट्टी की सेहत के संपूर्ण आकलन के लिए फिजिकल और बायोलॉजिकल इंडिकेटर्स को शामिल करने की सलाह देती हैं।"
आगा खान फाउंडेशन में एग्रीकल्चर, फूड सिक्योरिटी और क्लाइमेट रेजिलिएंस के ग्लोबल लीड अपूर्व ओझा ने कहा, "भारत में लगभग 14 करोड़ किसान परिवार हैं। पिछले दो सालों में सॉइल कार्ड टेस्टिंग सिर्फ 1.1 करोड़ तक पहुंची है। जब सॉइल टेस्टिंग की बात आती है, तो कमियों को जानने के लिए यह समझना जरूरी है कि क्या मापा जा रहा है, क्यों, और कौन माप रहा है।"
CSE का कहना है कि बायोमास के पायरोलिसिस से बना बायोचार मिट्टी की उर्वरता को बेहतर बना सकता है, नमी बनाए रख सकता है और कार्बन सिंक का काम कर सकता है। लेकिन भारत में अभी बायोचार के लिए स्टैंडर्ड प्रोडक्शन प्रोटोकॉल की कमी है।

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