India Potato Exports: कौन देश खरीद रहे भारत का आलू, तीन साल में 5 गुना से ज्यादा बढ़ा आलू उत्पादों का निर्यात
India Potato Exports 2025: डिहाइड्रेटेड आलू के दानों और पेलेट्स का निर्यात तीन साल में 450% से ज्यादा बढ़ा है। लगभग 80% शिपमेंट मलेशिया, फिलीपींस, इंडोनेशिया, जापान और थाईलैंड जाते हैं। गुजरात और उत्तर प्रदेश जैसे राज्य नए डिहाइड्रेशन प्लांट, कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग और कोल्ड-चेन इंफ्रास्ट्रक्चर के साथ इस तेजी को आगे बढ़ा रहे हैं। इन वजहों से आलू का उत्पादन सालाना 5.6 करोड़ टन तक पहुंच गया है।

बढ़ रही भरतीय आलू के प्रोडक्ट की मांग
India Potato Exports 2025: भारत से प्रोसेस्ड आलू उत्पादों का निर्यात तेजी से बढ़ रहा है। एशिया के कई देशों से स्नैक्स और अन्य रेडी-टू-ईट खाद्य पदार्थों की बढ़ती मांग के कारण भारतीय आलू की मांग बढ़ रही है। भारत से सबसे ज्यादा निर्यात डिहाइड्रेटेड आलू के दानों और पेलेट्स का होता है। इसके अलावा आलू का आटा, स्टार्च, चिप्स और रेडी-टू-ईट प्रोडक्ट की मांग में भी खासी बढ़ोतरी हो रही है।
सबसे अधिक डिहाइड्रेटेड आलू के दाने और पेलेट्स का निर्यात
भारत से डिहाइड्रेटेड आलू के दानों और पेलेट्स का निर्यात वित्त वर्ष 2021-22 में 114 लाख डॉलर का हुआ था जो 2024-25 में बढ़कर 633 लाख डॉलर पहुंच गया। इस तरह सिर्फ तीन वर्षों में 450 प्रतिशत से ज्यादा की बढ़ोतरी हुई है। यह बढ़ोतरी दक्षिण-पूर्व और पूर्वी एशिया से मजबूत डिमांड के कारण है। वहां की फूड कंपनियां इंस्टेंट नूडल्स, स्नैक्स और क्विक-सर्विस रेस्टोरेंट (QSR) के आइटम का प्रोडक्शन बढ़ा रही हैं।
मलेशिया भारत का सबसे बड़ा खरीदार है, जिसका आयात 51 लाख डॉलर से बढ़कर 221 लाख डॉलर हो गया है। इसके बाद फिलीपींस और इंडोनेशिया का नंबर आता है, जिन्होंने क्रमशः 600 प्रतिशत और 924 प्रतिशत की जबरदस्त ग्रोथ दर्ज की है। जापान और थाईलैंड ने भी अपनी खरीदारी तीन गुना से ज्यादा कर ली है। कुल मिलाकर इन पांच देशों को भारत के कुल एक्सपोर्ट का लगभग 80 प्रतिशत हिस्सा जाता है। इन देशों को मौजूदा वित्त वर्ष के पहले पांच महीने में निर्यात 302 लाख डॉलर तक पहुंच गया।
दूसरे प्रोसेस्ड आलू प्रोडक्ट के निर्यात में भी वृद्धि
दूसरे वैल्यू-एडेड आलू उत्पादों का निर्यात भी तेजी से बढ़ा है। यह 2021-22 के 62 लाख डॉलर से तीन गुना बढ़कर 2024-25 में 188 लाख डॉलर हो गया। इनमें कुल मिलाकर 200 प्रतिशत से ज्यादा की बढ़ोतरी हुई है। सबसे ज्यादा फायदा सूप, स्नैक्स और बेकरी प्रोडक्ट्स में इस्तेमाल होने वाले आलू के आटे, मील और पाउडर से हुआ। इस अवधि में इनका निर्यात 4 लाख डॉलर से 1145 प्रतिशत बढ़कर 55 लाख डॉलर हो गया।
डिब्बाबंद और रेडी-टू-ईट आलू, आलू के चिप्स और क्रिस्प का शिपमेंट दोगुना होकर 53 लाख डॉलर हो गया, जबकि आलू के स्टार्च का एक्सपोर्ट लगभग पांच गुना बढ़कर 26 लाख डॉलर हो गया।
तेजी की वजह क्या है
थिंक टैंक ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनीशिएटिव (GTRI) के संस्थापक अजय श्रीवास्तव के अनुसार, इस तेजी के पीछे रीजनल डिमांड और घरेलू स्तर पर क्षमता बढ़ने का मिला-जुला असर है। दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में स्नैक और QSR इंडस्ट्री तेजी से बढ़ रही हैं, जो सेमी-प्रोसेस्ड आलू के इनपुट पर निर्भर हैं। भारत को कम लागत, पूरे साल भरोसेमंद सप्लाई और ASEAN से नजदीकी का लाभ मिल रहा है। यूरोप की ज्यादा एनर्जी लागत और खराब फसल तथा चीन में घरेलू खपत बढ़ने से पैदा हुई सप्लाई की कमी को भी भारत पूरा कर रहा है।
भारत-आसियान वस्तु व्यापार समझौते के अंतर्गत प्रेफरेंशियल टैरिफ तथा मुंद्रा, कांडला तथा चेन्नई जैसे बंदरगाहों के माध्यम से छोटे शिपिंग मार्गों ने भारत की प्रतिस्पर्धा क्षमता को और मजबूत किया है।
देश में कैपेसिटी भी बढ़ रही है
GTRI के मुताबिक सप्लाई के लिहाज से देखें तो गुजरात और उत्तर प्रदेश भारत के प्रोसेसिंग पावरहाउस बन गए हैं। गुजरात के मेहसाणा और बनासकांठा जिलों में कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग और कोल्ड स्टोरेज नेटवर्क के बाद आधुनिक डिहाइड्रेशन प्लांट स्थापित हुए हैं। उत्तर प्रदेश के आगरा और फर्रुखाबाद में भी नए प्लांट बन रहे हैं। भारत में आलू का उत्पादन 5.6 करोड़ टन तक पहुंच गया है। इसमें प्रोसेसिंग के लिए सही हाई-सॉलिड वैरायटी शामिल हैं। इसने निर्यात बढ़ाने में मदद की है।
भारतीय फर्मों ने भी क्वालिटी को अपग्रेड किया है। उन्होंने BIS, ISO, और HACCP सर्टिफिकेशन हासिल किए हैं, और मल्टीनेशनल खरीदारों की जरूरतों के हिसाब से ग्रेन्यूल्स, फ्लेक्स और पेलेट्स में डायवर्सिफाई किया है।
ग्लोबल सप्लाई की कमी को पूरा कर रहा भारत
यूरोप के प्रोसेसर ऊर्जा क्षेत्र के झटकों और मौसम के उतार-चढ़ाव से प्रभावित है। दूसरी तरफ चीन के अंदरूनी बदलाव ने ग्लोबल खरीदारों को दूसरे विकल्प ढूंढ़ने पर मजबूर कर दिया है। भारत में आलू की उपलब्धता लगभग पूरे साल रहती है। इसके साथ बेहतर होते स्टैंडर्ड और कम लागत ने इसे एशियाई फूड मैन्युफैक्चरर्स के लिए एक भरोसेमंद स्रोत बना दिया है।
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