भारत बनेगा प्राइस टेकर से प्राइस मेकर, क्या है सरकार की भविष्य में सोने को लेकर प्लानिंग?
इंडस्ट्री एक्सपर्ट का मानना है कि इंटरनेशनल गोल्ड मार्केट में भारत जल्द प्राइस टेकर से प्राइस मेकर बनेगा। इसके लिए देश जल्द 20 फीसदी सोने की मांग माइनिंग के जरिए ही पूरा करेगा। इसके साथ ही गोल्ड इंडस्ट्री के अलग-अलग लोगों ने सोने को लेकर चिताएं और भविष्य नीति और रुझान को लेकर बात की है।

पीटीआई, नई दिल्ली। आज भारतीय चैंबर ऑफ कॉमर्स (CCI) का जेम एंड ज्वैलरी सम्मेलन आयोजित हुआ। इसमें गोल्ड इंडस्ट्री से जुड़े कई बड़े एक्सपर्ट शामिल हुए। उन्होंने गोल्ड को लेकर चिताएं और देश की भविष्य नीति पर बात की।
वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल के क्षेत्रीय सीईओ (भारत), सचिन जैन ने कहा कि जैसे-जैसे देश विकसित भारत 2047 की ओर बढ़ेगा, गोल्ड माइनिंग महत्वपूर्ण होता चला जाएगा। उन्होंने कहा कि अगले दशक तक लगभग हमारे देश की 20 फीसदी सोने की डिमांड माइनिंग के जरिए ही पूरी होगी।
उन्होंने कहा कि भारत वर्तमान में महत्वपूर्ण घरेलू खनन और गोल्ड बैंकिंग प्रणाली के अभाव के कारण प्राइस टेकर बना हुआ है, जिसके कारण यह लंदन के सुबह और शाम बेंचमार्क मूल्यों पर निर्भर है। अभी भारत में सोने की कीमत विश्व गोल्ड बाजार पर निर्भर करती है। क्योंकि देश में ज्यादातर सोना बाहर से आयात करती है।
आदित्य बिड़ला समूह के नोवेल ज्वेल्स के सीईओ संदीप कोहली ने बताया कि भारतीय उपभोक्ताओं के पास 25,000 टन सोना है, जबकि सरकार के पास 800 टन सोना है। इसका अनुपात 50:1 है। जबकि स्विस सरकार की बात करें तो उनके पास 1,000 टन सोना है, जबकि उपभोक्ताओं के पास 200 टन सोना है।
कोहली ने सम्मेलन में कहा, "मुझे यह बात बेहद आश्चर्यजनक लगती है कि भारत में उपभोक्ता मांग, उपभोक्ताओं द्वारा चुकाई जाने वाली कीमत को परिभाषित नहीं कर रही है, जबकि हम सोने के सबसे बड़े उपभोक्ताओं में से एक हैं।"
उन्होंने सोने को भारत का सबसे पुराना एसेट बताया और कहा कि यह एकमात्र ऐसा एसेट है, जिस पर "किसी न किसी रूप में 100 प्रतिशत भारतीय" का स्वामित्व है। कोहली ने पारदर्शिता की कमी को एक बड़ा मुद्दा बताया और कहा कि सोने के आभूषण खरीदने का अनुभव "चिंता से भरा" होता है, जबकि कार या मोबाइल फ़ोन जैसी अन्य महंगी खरीदारी के मामले में ऑनलाइन तुलना करना आसान होता है।

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