खाद्य प्रसंस्करण उद्योग बाजार भुनाने को अभी भी तैयार नहीं
खाद्य प्रसंस्करण उद्योग भारत में तेजी से बढ़ रहा है लेकिन यह अभी भी अपनी पूरी क्षमता तक नहीं पहुंचा है। प्रसंस्करण की उचित व्यवस्था न होने के कारण हर साल 20-25% खाद्य पदार्थ बर्बाद हो जाता है जिससे लगभग 90000 करोड़ रुपये का नुकसान होता है। सरकार कई योजनाएं चला रही है लेकिन बुनियादी ढांचे की कमी और सप्लाई चेन की अक्षमताओं जैसी कई चुनौतियां हैं।

नई दिल्ली। समय के साथ जिस तरह से आमजन की खानपान की शैली बदली है, वह खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के लिए भी विकास और विस्तार की नई संभावनाएं दिखा रही है। लेकिन भारतीय खाद्य प्रसंस्करण उद्योग अभी बाजार को पूरी तरह से भुनाने की स्थिति में नजर नहीं आ रहा।
दरअसल, इस उद्योग को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार तमाम योजनाएं चला रही है, लेकिन कई स्तरों पर अवरोध ऐसे हैं कि कृषि उत्पादन के वैश्विक बाजार में भारत की मजबूत स्थिति के बावजूद प्रसंस्कृत उत्पादों में हालत बहुत नाजुक है।
प्रसंस्करण की उचित व्यवस्था न होने से प्रतिवर्ष बड़े पैमाने पर खाद्य उत्पादन की बर्बादी होती है, लेकिन इस समस्या से निजात के प्रयास अभी भी सीमाओं में बंधे हैं।
खाद्य प्रसंस्करण उद्योग पर केंद्रित डेलायट और फिक्की की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि वर्तमान में भारत अपने कृषि उत्पादन का 10 प्रतिशत से भी कम प्रसंस्करण करता है। इनमें फलों का 4.5 प्रतिशत, सब्जियों का 2.7 प्रतिशत, दूध का 21.1 प्रतिशत, मांस का 34.2 प्रतिशत और मछली का 15.4 प्रतिशत ही प्रसंस्करण हो रहा है। देश में प्रसंस्करण का एक बड़ा हिस्सा चावल और आटे की पिसाई, खाद्य तेल पेराई और चीनी उत्पादन तक ही केंद्रित है।
रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि भारत का खाद्य प्रसंस्करण उद्योग राष्ट्रीय खाद्य बाजार में लगभग 30 प्रतिशत का योगदान दे रहा है। इसलिए इसके महत्व को समझा जा सकता है। इसके बावजूद अनुमान है कि सप्लाई चेन की अक्षमताओं के कारण प्रतिवर्ष 20-25 प्रतिशत खाद्य पदार्थ बर्बाद हो जाता है, जिससे लगभग 90,000 करोड़ रुपये का नुकसान होता है।
हालांकि, विशेषज्ञ सरकार की आपरेशन ग्रीन्स जैसी योजना को लेकर आशांवित हैं, जिसका लक्ष्य बेहतर बुनियादी ढांचे और लाजिस्टिक्स के माध्यम से कटाई के बाद होने वाले नुकसान में 20 प्रतिशत की कमी लाना है।
बढ़ सकती है किसानों की आय
भारतीय रिजर्व बैंक के अनुमान के अनुसार, कृषि उत्पाद जब तैयार भोजन का रूप लेता है तो उसके मूल्य में लगभग 30 प्रतिशत की वृद्धि होती है, जबकि खाद्य पदार्थ के प्रसंस्करण से 12.7 प्रतिशत का अतिरिक्त योगदान होता है। इसे देखते हुए विशेषज्ञ मानते हैं कि भारत की निर्यात रणनीति को इस सोच के साथ आगे बढ़ाने से उत्पादों के मूल्य में वृद्धि हो सकती है। प्रसंस्कृत खाद्य निर्यात पर ध्यान केंद्रित करने से न केवल भारत वैल्यू चेन में ऊपर उठ सकेगा, बल्कि फसल कटाई के बाद होने वाले नुकसान को कम किया जा सकेगा और किसानों को आय वृद्धि के रूप में काफी लाभ मिलेगा।
रोजगार में वृद्धि का अवसर यह तथ्य किसी से छिपा नहीं है कि देश की अर्थव्यवस्था से लेकर रोजगार सृजन में एमएसएमई की बहुत बड़ी भूमिका है। रिपोर्ट में कहा गया है कि एमएसएमई से सृजित होने वाले कुल रोजगार में 25 प्रतिशत की हिस्सेदारी खाद्य बाजार की है। संकेत है कि यदि खाद्य प्रसंस्करण उद्योग विस्तार पाएगा तो बड़े पैमाने पर रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे।
ये हैं कुछ प्रमुख चुनौतियां
भारतीय कृषि निर्यात को अक्सर अंतरराष्ट्रीय गुणवत्ता व स्वच्छता मानकों के साथ तालमेल बिठाने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। अपर्याप्त बुनियादी ढांचा, कमजोर सप्लाई चेन, अनुपयुक्त भंडारण क्षमता और लाजिस्टिक्स की कमी नुकसान का कारण बनती है। इससे गुणवत्ता मानकों से समझौता होता है।
भारत में कोल्ड स्टोरेज की बहुत कमी है। कुल कोल्ड स्टोरेज का 70 प्रतिशत कुछ बड़े राज्यों तक ही सिमटा हुआ है।
भारत में लाजिस्टिक्स कास्ट जीडीपी का 13-14 प्रतिशत है, जबकि विकसित देशों में यह दर करीब आठ प्रतिशत है। -भारत में केवल 218 एफएसएसएआइ अधिसूचित, एनएबीएल मान्यता प्राप्त खाद्य परीक्षण प्रयोगशालाएं हैं, जिनके पास वैध मान्यता है। यह आयातक देशों द्वारा बार-बार अस्वीकार किए जाने का कारण बनती है। वैश्विक खाद्य सुरक्षा नियमों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए खाद्य परीक्षण क्षमताओं को बढ़ाना होगा।
खाद्य प्रसंस्करण की वैश्विक स्थिति देश
कृषि उत्पाद निर्यात- खाद्य प्रसंस्करण की भागीदारी भारत- 48 बिलियन यूएस डालर- 16 प्रतिशत थाइलैंड- 49 बिलियन यूएस डालर- 56 प्रतिशत मलेशिया- 34 बिलियन यूएस डालर- 60 प्रतिशत नीदरलैंड- 153 बिलियन यूएस डालर- 46 प्रतिशत
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