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    अधिक उपज वाली 98 जीएम किस्मों को चीन ने दी स्वीकृति, आयात पर निर्भरता कम करना है मकसद

    Updated: Fri, 19 Sep 2025 02:47 PM (IST)

    China GM crops Approved भारत में GM फसलों में सिर्फ कपास को मंजूरी मिली हुई है। लेकिन हाल के वर्षों में चीन ने सोयाबीन और मक्के की अनेक जीएम-जीन संपादित किस्मों को मंजूरी दी है। वहां इनका इस्तेमाल चारे के रूप में किया जाता है। चीन के कृषि मंत्रालय ने शुक्रवार को सोयाबीन की दो और मक्के की 96 किस्मों को मंजूरी देने की घोषणा की।

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    अधिक उपज वाली जीएम किस्मों को चीन ने दी स्वीकृति, आयात पर निर्भरता कम करना है मकसद

    China GM crops Approved: ऐसे समय जब भारत में आनुवंशिक रूप से संशोधित यानी जीएम फसलों पर बहस चल रही है, चीन के कृषि मंत्रालय ने शुक्रवार को 98 जीएम किस्मों को मंजूरी देने की घोषणा की है। इनमें दो किस्में सोयाबीन की और 96 किस्में मक्के की हैं। मंजूरी देने का मतलब है कि देश में ही इन किस्मों की खेती की जाएगी ताकि आयात पर निर्भरता कम की जा सके।

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    इन मंजूर किस्मों में अधिक उपज देने वाली, कीट-प्रतिरोधी और खरपतवार-सहिष्णु किस्में शामिल हैं। इसका उद्देश्य खाद्य सुरक्षा मजबूत करना और इन फसलों में चीन को आत्मनिर्भरता की ओर ले जाना है। चीन में चारे के लिए बड़े पैमाने पर सोयाबीन और मक्के का आयात किया जाता है।

    चीन पहले भी दे चुका है जीएम फसलों को मंजूरी

    चीन ने दिसंबर 2024 में भी सोयाबीन, मक्का, गेहूं, चावल और कपास की 5 जीन-संपादित (gene-edited) किस्मों तथा 12 आनुवंशिक रूप से संशोधित (जीएम) किस्मों को मंजूरी दी थी। ये सभी किस्में अधिक उपज वाली थीं, ताकि आयात पर निर्भरता कम करके खाद्य सुरक्षा बढ़ाई जा सके। जीन-संपादित किस्मों में दो सोयाबीन की और एक-एक गेहूं, मक्का और चावल की थीं। ये किस्में बीजिंग स्थित चारा कंपनी डेबीनोंग और बीज एवं कीटनाशक निर्माता सिंजेन्टा समूह की सब्सिडियरी चाइना नेशनल सीड ग्रुप की थीं।

    जीएम और जीन-संपादित में अंतर

    आनुवंशिक संशोधन यानी जीएम में पौधे में बाहरी जीन डाले जाते हैं। जीन संपादन में पौधे के गुणों को बढ़ाने या बेहतर बनाने के लिए उसमें मौजूद जीन में ही बदलाव किया जाता है। कुछ वैज्ञानिक जीन संपादन को आनुवंशिक संशोधन से कम जोखिम भरा मानते हैं। चीन ने जर्मन रसायन कंपनी BASF से कीट-प्रतिरोधी और खरपतवार-सहिष्णु जीएम सोयाबीन किस्म के आयात को भी मंजूरी दे रखी है।

    हाल के महीनों में चीन ने घरेलू उत्पादन बढ़ाने और अनाज आयात कम करने के लिए अधिक उपज वाली जीएम मक्का और सोयाबीन की मंजूरी बढ़ा दी हैं। चीन मुख्यतः पशु आहार के लिए मक्का और सोयाबीन जैसी जीएम फसलों का आयात करता है। लेकिन सीधे खाद्य के तौर पर उपभोग के लिए गैर-जीएम किस्मों की खेती करता है। भारत की तरह चीन में अनेक उपभोक्ता जीएम खाद्य फसलों की सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं।

    भारत में जीएम फसलों की स्थिति

    भारत में, बीटी कॉटन एकमात्र आनुवंशिक रूप से संशोधित (जीएम) फसल है जिसे व्यावसायिक खेती के लिए मंजूरी दी गई है। जीएम सरसों (डीएमएच-11) को 2022 में सशर्त पर्यावरणीय मंजूरी मिल गई थी, लेकिन कानूनी और नियामक चुनौतियों के कारण इसकी व्यावसायिक लांचिंग रुकी हुआ है। जीएम विरोधी इसके पर्यावरणीय और अन्य प्रभावों पर सवाल उठा रहे हैं। बीटी बैंगन और चना, मक्का तथा गन्ने की जीएम किस्में अनुसंधान और फील्ड ट्रायल के विभिन्न चरणों में हैं। अभी वे व्यावसायिक उत्पादन के लिए उपलब्ध नहीं हैं। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) दो जीनोम-संपादित चावल की किस्में जारी कर चुका है।

    जीएम सरसों पर लगी रोक हटवाने के लिए पीएम को पत्र

    हाल ही 10 जाने-माने कृषि वैज्ञानिकों ने जीएम सरसों पर लगी रोक हटवाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा है। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने 25 अक्टूबर 2022 ने हाइब्रिड बीज उत्पादन की मंजूरी दे दी थी। लेकिन एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने 3 नवंबर 2022 को इसके ट्रायल पर रोक लगा दी। अगस्त 2024 में दो जजों की कोर्ट ने इस पर विभाजित फैसला दिया। एक जज ने वैज्ञानिक आधार पर इसे रिलीज करने का समर्थन किया तो दूसरे ने जारी अनिश्चितता को देखते हुए स्टे ऑर्डर देने का फैसला किया।

    जीएम सरसों के समर्थक कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि पर्यावरण मंजूरी के बाद दो महत्वपूर्ण साल निकल गए और किसान मेड इन इंडिया टेक्नोलॉजी से वंचित हैं। उनका कहना है कि मध्य अक्टूबर तक इसकी बुवाई नहीं हुई तो एक और सीजन बेकार चला जाएगा। महत्वपूर्ण डेटा जुटाने, हाइब्रिड डेवलपमेंट और फिर किसानों को कॉमर्शियल रिलीज के लिए यह महत्वपूर्ण है। वैज्ञानिकों के अनुसार, जीएम सरसों में इस्तेमाल जीन का कनाडा, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में रेपसीड में दशकों से प्रयोग हो रहा है और इसका कोई विपरीत प्रभाव देखने को नहीं मिला है। भारत में भी बायो-सेफ्टी परीक्षण में कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं दिखा।