Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    Budget 2024: टेक्सटाइल सेक्टर की दशा सुधारेगा इंसेंटिव और सस्ता कच्चा माल, 45 दिनों के भुगतान नियम में बदलाव की मांग

    बजट से टेक्‍सटाइल सेक्‍टर की कुछ प्रमुख मांगें हैं। इनमें से कुछ स प्रकार हैं। मैन्युफैक्चरिंग के लिए सभी प्रकार के नए निवेश को पीएलआई का लाभ दिया जाए क्योंकि इस योजना का लाभ लेने के लिए उन्हें 100 करोड़ से अधिक निवेश की जरूरत होती है और इस सेक्टर में अधिकतर उद्यमी माइक्रो व स्मॉल है। टेक्सटाइल सेक्टर ने सरकार से ग्रीन फंड बनाने की भी मांग की है।

    By Jagran News Edited By: Praveen Prasad Singh Updated: Wed, 10 Jul 2024 11:44 PM (IST)
    Hero Image
    चुनौतियों से जूझ रहा देश में दूसरा सबसे अधिक रोजगार देने वाला टेक्‍सटाइल क्षेत्र।

    जागरण टीम, नई दिल्ली। कृषि के बाद देश में सबसे अधिक 4.5 करोड़ लोगों को प्रत्यक्ष तौर पर रोजगार देने वाले टेक्सटाइल सेक्टर (Textile Sector) में पिछले कुछ सालों से घरेलू और निर्यात, दोनों ही स्तर पर कई चुनौतियां बनी हुई हैं। सरकार वर्ष 2030 तक घरेलू व निर्यात मिलाकर टेक्सटाइल उद्योग के कारोबार को 350 अरब डॉलर तक ले जाना चाहती है और इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए टेक्सटाइल उद्यमी कच्चे माल की सस्ती उपलब्धता, उत्पादन बढ़ाने के लिए इंसेंटिव, भुगतान के नियम में बदलाव, फ्रेट दरों में सब्सिडी, बांग्लादेश से होने वाले आयात पर नियंत्रण, ग्रीन एनर्जी फंड और सस्ती दरों पर कर्ज चाहते हैं।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    तभी बढ़ेगा जीडीपी में टेक्‍सटाइल सेक्‍टर का योगदान

    वर्तमान में 170 अरब डॉलर के कारोबार वाले टेक्सटाइल सेक्टर के उद्यमियों का कहना है कि इन मांगों को पूरा करने पर ही जीडीपी में टेक्सटाइल सेक्टर के दो प्रतिशत के योगदान को वर्ष 2030 तक दोगुना किया जा सकता है। वर्ष 2018-22 के बीच वैश्विक टेक्सटाइल निर्यात में जहां 3.4 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई वहीं कोरोना महामारी व भू-राजनीतिक कारणों से भारत के टेक्सटाइल निर्यात में सिर्फ एक प्रतिशत का इजाफा रहा। पिछले वित्त वर्ष 2023-24 में सभी प्रकार के गारमेंट के निर्यात में पूर्व के वित्त वर्ष के मुकाबले 10.25 तो मैनमेड यार्न और फैब्रिक में 5.46 प्रतिशत की गिरावट रही। सिर्फ काटन यार्न और फैब्रिक के निर्यात में 6.71 प्रतिशत की बढ़ोतरी रही।

    यह भी पढ़ें: भारत से फिर बढ़ रहा गारमेंट निर्यात, चीन को मिलेगी टक्कर, रोजगार के मोर्चे पर भी होगा फायदा

    बांग्लादेश से आने वाले आइटम पर नहीं लगता शुल्‍क

    बांग्लादेश व वियतनाम जैसे देशों की लागत भारत से कम होने के कारण उनके निर्यात में खासी बढ़ोतरी हुई। बांग्लादेश अति पिछड़े देश की श्रेणी में शामिल है, इसलिए वैश्विक बाजार में उसके आइटम पर कोई शुल्क नहीं लगता है तो वियतनाम का कई देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौता होने से उन देशों में वियतनाम के गारमेंट पर शुल्क नहीं लगता है।

    कॉटन के आयात पर लगने वाला शुल्‍क खत्‍म किया जाए

    कनफेडरेशन ऑफ टेक्सटाइल इंडस्ट्री (सिटी) ने वित्त मंत्री से आर्गेनिक व अन्य खास किस्म के साथ सभी प्रकार के कॉटन के आयात पर लगने वाले पांच प्रतिशत के शुल्क हटाने की गुजारिश की है। आयात शुल्क की वजह से उन्हें घरेलू बाजार में कॉटन 15-20 प्रतिशत महंगा मिलता है। कॉटन से ही यार्न बनता है और फिर उससे फैब्रिक और फिर गारमेंट। सिटी के चेयरमैन राकेश मेहरा के मुताबिक कॉटन के सस्ता होने पर उनकी लागत कम हो जाएगी और वे वैश्विक बाजार में आसानी से प्रतिस्पर्धा कर सकेंगे। उन्होंने सरकार से हैंडलूम में इस्तेमाल होने वाले कॉटन वेस्ट के आयात पर लगने वाले 10 प्रतिशत के शुल्क को समाप्त करने की मांग की है। हालांकि कॉटन पर आयात शुल्क कम या खत्म करने पर घरेलू बाजार में बड़े पैमाने पर उनका आयात शुरू हो जाएगा और इससे कॉटन किसान प्रभावित हो सकते हैं।

    45 दिनों के भीतर भुगतान के नियम में हो बदलाव

    टेक्सटाइल सेक्टर में कॉटन से लेकर यार्न, फैब्रिक व गारमेंट सभी सेगमेंट शामिल होते हैं और इनमें से यार्न से लेकर गारमेंट उद्यमी इस बार के बजट में 45 दिनों के भीतर खरीदारी के भुगतान के नियम में बदलाव चाहते हैं। पिछले वित्त वर्ष 2023-24 में सरकार ने इनकम टैक्स कानून के सेक्शन 43बी (एच) को लागू कर दिया जिसके तहत माइक्रो व स्मॉल इंटरप्राइजेज से खरीदारी पर अगर 45 दिनों के भीतर उन्हें भुगतान नहीं दिया जाता है तो वह राशि खरीदार की आय में जुड़ जाएगी और वह राशि कर योग्य मानी जाएगी। अब टेक्सटाइल सेक्टर से जुड़े माइक्रो व स्मॉल उद्यमी भुगतान की अवधि को 45 दिनों की जगह 90 दिन करवाना चाहते हैं। उद्यमी एक-दूसरे से कच्चे माल से लेकर कई अन्य खरीदारी करते हैं, इसलिए यह नियम उन पर भी लागू होता है। उनका कहना है कि टेक्सटाइल की पूरी चेन (यार्न, फैब्रिक, गारमेंट) होती है और 45 दिनों में भुगतान करना आसान नहीं होता है।

    यह भी पढ़ें: कैसा होगा मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल का पहला बजट? मध्यमवर्ग, युवाओं और बुजुर्गों को मिल सकता है बड़ा तोहफा

    बांग्‍लादेश से आयात पर अंकुश लगाने की मांग

    गारमेंट व होजरी निर्यातक सरकार से फ्रेट सब्सिडी देने की मांग कर रहे हैं ताकि बंदरगाह से दूर जालंधर जैसे टेक्सटाइल हब वाले शहरों से निर्यात की लागत कम हो सके। घरेलू गारमेंट निर्माता सरकार से बांग्लादेश से होने वाले आयात पर अंकुश लगाने की मांग कर रहे हैं, क्योंकि वहां से सस्ते दाम पर कपड़े भारत में आ रहे हैं। अति पिछड़े देश की सूची में शामिल होने के कारण बांग्लादेश से होने वाले गारमेंट आयात पर सरकार शुल्क नहीं लगा सकती है। इसका फायदा चीन भी उठा रहा है, क्योंकि चीन की कंपनियों ने बांग्लादेश में फैक्ट्री लगा रखी है और बांग्लादेश के रास्ते चीन की कंपनियों के माल भारत आ रहे हैं। अब सरकार इस बात पर गौर कर रही है कि बांग्लादेश में भारतीय फैब्रिक से बनने वाले गारमेंट को ही बिना शुल्क के भारत में लाया जा सके। घटिया किस्म की बुनाई वाले टेक्सटाइल आइटम के आयात पर रोक के लिए उद्यमियों ने न्यूनतम आयात शुल्क निर्धारित करने की मांग की है।

    सरकार से ग्रीन फंड बनाने की मांग

    टेक्सटाइल सेक्टर ने सरकार से ग्रीन फंड बनाने की मांग की है ताकि इस फंड से वे मैन्युफैक्चरिंग में ग्रीन एनर्जी के इस्तेमाल के लिए कम दर पर लोन ले सकें। भविष्य में यूरोप व अन्य विकसित देशों में ग्रीन एनर्जी से बनने वाले उत्पाद की अधिक मांग होगी। टेक्सटाइल सेक्टर की मांग है कि मैन्युफैक्चरिंग के लिए सभी प्रकार के नए निवेश को प्रोडक्शन लिंक्‍ड इंसेंटिव (पीएलआई) का लाभ दिया जाना चाहिए, क्योंकि पीएलआई स्कीम का लाभ लेने के लिए उन्हें 100 करोड़ से अधिक निवेश की जरूरत होती है और टेक्सटाइल सेक्टर में अधिकतर उद्यमी माइक्रो व स्मॉल हैं।

    यह भी पढ़ें: Budget 2024: नीतिगत पहल ले कर आएगा आगामी बजट, रियल एस्टेट सेक्टर को हैं काफी उम्मीदें

    टेक्सटाइल की पूरी वैल्यू चेन पर समान जीएसटी दर की गुजारिश

    अपैरल एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल ने टेक्सटाइल की पूरी वैल्यू चेन पर समान जीएसटी दर की गुजारिश की है। अभी कॉटन से बनने वाले फाइबर, यार्न व फैब्रिक पर पांच प्रतिशत जीएसटी है तो मैन मेड फाइबर व यार्न पर क्रमश: 18, 12 व पांच प्रतिशत जीएसटी है। इससे उन्हें इनपुट टैक्स क्रेडिट लेने में दिक्कत होती है और उनका वर्किंग कैपिटल ब्लॉक होता है। इस पर फैसला जीएसटी काउंसिल में ही हो सकता है, लेकिन वित्त मंत्री बजट में उनकी इस मांग पर गौर करने का आश्वासन दे सकती हैं।