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    पांच वर्षों बाद काबू हो पाएगा राजकोषीय घाटा, वित्त मंत्री ने सरकारी खजाने की पेश की पारदर्शिता

    By Bhupendra SinghEdited By:
    Updated: Tue, 02 Feb 2021 07:13 AM (IST)

    राजकोषीय घाटा सरकार के राजस्व संग्रह और खर्चे का अंतर होता है और इस अंतर को उधारी ले कर सरकार पूरा करती है। राजकोषीय घाटे का असर व्यापक होता है। यह सीधे तौर पर देश में ब्याज दरों को बढ़ाने वाला कारक साबित होता है।

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    खजाने की चुनौतियों के बावजूद हिसाब-किताब पेश करने में पारदर्शिता।

    जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। कोरोना काल के पहले दो-तीन महीनों से यह बात सामने आ गई थी कि राजकोषीय मोर्चे पर भारत सरकार भारी चुनौतियों का सामना करने जा रही है। बजट 2021-22 पेश करते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इसे स्वीकार करने में कोई कोताही भी नहीं की, लेकिन उन्होंने बजट प्रपत्र में सरकारी खजाने का हिसाब-किताब जितनी पारदर्शिता से पेश किया है वह भी कम काबिले तारीफ कदम नहीं है।

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    राजकोषीय घाटा 4.5 फीसद से नीचे लाने का लक्ष्य

    वित्त मंत्री ने वर्ष 2020-22 के दौरान राजकोषीय घाटे के 9.5 फीसद के ऐतिहासिक स्तर पर पहुंचने का आंकड़ा जब पेश किया तो शेयर बाजार ने उसे पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया। सरकार ने वर्ष 2021-22 में राजकोषीय घाटे के 6.8 फीसद पर आने और वर्ष 2025-26 तक राजकोषीय घाटे के 4.5 फीसद से नीचे लाने का लक्ष्य रखा है। इसे कैसे हासिल किया जाएगा, उसका भी स्पष्ट रोडमैप दिया गया है, लेकिन यह भी स्पष्ट है कि आने वाले कुछ वर्षों तक सरकार बाजार से ज्यादा उधारी लेती रहेगी, जिसका असर ब्याज दरों पर भी पड़ सकता है।

    सरकार को विनिवेश से काफी राजस्व हासिल होने की उम्मीद

    राजकोषीय घाटे को आगे किस तरह से नीचे लाया जाएगा, इस बारे में पूछने पर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट बाद प्रेस वार्ता में बताया कि, एक वर्ष के भीतर घाटे का 9.5 फीसद से घट कर 6.8 फीसद पर लाने का पूरा भरोसा है। एक तो सरकार को विनिवेश से इस वर्ष और अगले वर्ष काफी राजस्व हासिल होने की उम्मीद है। दूसरा जीएसटी संग्रह जिस तरह से पिछले तीन महीनों में बढ़ा है, उसमें और ज्यादा सुधार हो सकता है। हो सकता है कि अगले वर्ष राजकोषीय घाटे का स्तर 6.8 फीसद से भी नीचे आ जाए। हमारा पूरा मकसद अभी खर्चे को बढ़ा कर तेज विकास दर को बहाल करना है जिससे कर संग्रह भी बढ़ेगा। बताते चलें कि पिछले आम बजट में वित्त मंत्री ने राजकोषीय घाटे को 3.5 फीसद रखने का लक्ष्य रखा था लेकिन कोरोना महामारी की वजह से सरकार के राजस्व में भारी कमी होने की वजह से यह ऐतिहासिक उच्च स्तर पर पहुंच गया है।

    राजकोषीय घाटे में बड़ी वृद्धि को लेकर बजट प्रबंधन कानून में संशोधन करना होगा

    वित्त मंत्री ने अपने बजट भाषण में कहा कि चालू वित्त वर्ष के अगले दो महीनों के दौरान सरकार 80 हजार करोड़ रुपये का और कर्ज लेगी। अभी तक सरकार 12 लाख करोड़ रुपये का कर्ज ले चुकी है। वित्त मंत्री ने बताया कि अगले वित्त वर्ष भी सरकार 12 लाख करोड़ रुपये का कर्ज लेगी। बहरहाल, वित्त मंत्री ने बताया कि राजकोषीय घाटे में बड़ी वृद्धि को देखते हुए सरकार को राजकोषीय दायित्व व बजट प्रबंधन कानून (एफआरबीएम) में संशोधन करना होगा। इस कानून के मुताबिक केंद्र सरकार को वर्ष 2020-21 तक राजकोषीय घाटे को जीडीपी के मुकाबले 3 फीसद पर स्थिर रखना था। इस संबंध में संशोधन विधेयक वित्त मंत्री ने पेश भी कर दिया है।

    राजकोषीय घाटा सरकार के राजस्व संग्रह और खर्चे का अंतर होता है

    राजकोषीय घाटा सरकार के राजस्व संग्रह और खर्चे का अंतर होता है और इस अंतर को उधारी ले कर सरकार पूरा करती है। राजकोषीय घाटे का असर व्यापक होता है। यह सीधे तौर पर देश में ब्याज दरों को बढ़ाने वाला कारक साबित होता है। अंतरराष्ट्रीय रे¨टग एजेंसियां व विदेशी निवेशकों को भी यह नागवर गुजरता है लेकिन वित्त मंत्री ने जिस तरह से खर्चे की गुणवत्ता का जिक्र बार-बार किया है, संभवत: उससे उनकी ¨चता दूर होगी।

    सरकार ने कुल बजटीय खर्च 34.83 लाख करोड़ रुपये का रखा

    बहरहाल, वर्ष 2021-22 के लिए सरकार ने अपना कुल बजटीय खर्च 34.83 लाख करोड़ रुपये का रखा है। इसमें 5.54 लाख करोड़ रुपये पूंजीगत खर्चे के तौर पर होगा जो चालू वित्त वर्ष के मुकाबले 34.5 फीसद ज्यादा होगा।