Budget 2025: सरकार के पास 1 लाख करोड़ की राहत देने का मौका; इनकम टैक्स छूट मिलेगी या रोजगार पर होगा फोकस?
वित्तीय जानकारों के मुताबिक राजकोषीय घाटे के साथ पूंजीगत खर्च में कमी से सरकार के पास एक लाख करोड़ रुपये तक की वित्तीय गुंजाइश है। इससे सरकार इनकम टैक्स की नई व्यवस्था के तहत स्टैंडर्ड डिडक्शन की छूट की सीमा बढ़ा सकती है। गरीब व किसान से जुड़ी पीएम-किसान मनरेगा जैसी स्कीम के तहत भी आवंटन में बढ़ोतरी की जा सकती है ताकि खपत बढ़ाई जा सके।

राजीव कुमार, नई दिल्ली। चालू वित्त वर्ष 2024-25 में राजकोषीय घाटे में कमी और अनुमान से कम पूंजीगत खर्च के रहने से आगामी बजट में सरकार के पास लोगों को एक लाख करोड़ तक की राहत देने की गुंजाइश दिख रही है। यह राहत इनकम टैक्स में छूट से लेकर रोजगार से जुड़ी स्कीम में दी जा सकती है। एक फरवरी को आगामी वित्त वर्ष 2025-26 के लिए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण बजट पेश करेंगी।
चालू वित्त वर्ष में पूंजीगत खर्च के मद में बजट में 11.11 लाख करोड़ रुपए का आवंटन किया गया था, लेकिन इस साल अप्रैल से नवंबर तक इस आवंटन का 46 प्रतिशत ही खर्च किया गया है। पूंजीगत खर्च कम रहने और राजस्व संग्रह में बढ़ोतरी से चालू वित्त वर्ष में राजकोषीय घाटा बजट अनुमान से कम रह सकता है। बजट में राजकोषीय घाटा जीडीपी का 4.9 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया था, लेकिन अब राजकोषीय घाटा जीडीपी का 4.7 प्रतिशत रह सकता है।
सरकार के पास हैं 1 लाख करोड़ रुपये
एचडीएफसी बैंक की प्रमुख अर्थशास्त्री साक्षी गुप्ता के मुताबिक राजकोषीय घाटे के साथ पूंजीगत खर्च में कमी से सरकार के पास एक लाख करोड़ रुपए तक की वित्तीय गुंजाइश है। उन्होंने बताया कि सरकार इनकम टैक्स की नई व्यवस्था के तहत स्टैंडर्ड डिडक्शन की छूट की सीमा बढ़ा सकती है। गरीब व किसान से जुड़ी पीएम-किसान, मनरेगा जैसी स्कीम के तहत भी आवंटन में बढ़ोतरी की जा सकती है ताकि खपत बढ़ाई जा सके।
चालू वित्त वर्ष में राजस्व प्राप्ति में बढ़ोतरी से भी टैक्स छूट से लेकर अन्य स्कीम के माध्यम से लोगों की खर्च क्षमता बढ़ाने में सरकार को मदद मिलेगी। राजस्व उगाही के लिए विनिवेश के मोर्चे पर निराशा के बावजूद चालू वित्त वर्ष में जीएसटी संग्रह में मजबूती से 32 लाख करोड़ की राजस्व प्राप्ति का अनुमान है। चालू वित्त वर्ष में टैक्स का संग्रह जीडीपी के अनुपात में 11.9 प्रतिशत रहने का अनुमान है जबकि पिछले वित्त वर्ष 2023-24 में यह अनुपात 11.7 प्रतिशत का था।
कर्ज और ब्याज भुगतान में भी हो रही है कमी
आर्थिक जानकारों के मुताबिक जीडीपी के मुकाबले भारत के कर्ज का अनुपात भी कम हो रहा है। कोरोना काल में सरकार का कुल कर्ज जीडीपी का 88.4 प्रतिशत तक पहुंच गया था जो पिछले वित्त वर्ष में 83 प्रतिशत के स्तर पर पहुंच गया है। कोरोना महामारी के बावजूद वर्ष 2015-23 के दौरान देश की सरकार पर कर्ज की बढ़ोतरी दर 2.1 प्रतिशत है जबकि चीन की सरकार पर पिछले आठ सालों में कर्ज के बोझ में नौ प्रतिशत का इजाफा हुआ है।
राजस्व प्राप्ति में ब्याज भुगतान की हिस्सेदारी भी कम हो रही है। कोरोना काल के दौरान वित्त वर्ष 2020-21 में राजस्व प्राप्ति का 41.6 प्रतिशत हिस्सा ब्याज भुगतान में चला जाता था जो चालू वित्त वर्ष में 37.2 प्रतिशत रहने का अनुमान है।
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