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    Budget 2025: हलवा सेरेमनी से लाल कपड़े में लिपटे दस्तावेज तक, पढ़िए बजट की परंपरा और बदलाव की 9 खास बातें

    Updated: Fri, 31 Jan 2025 06:49 PM (IST)

    Budget 2025 केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण 1 फरवरी को बजट पेश करने जा रही हैं। ब्रिटिशकालीन भारत से लेकर अब तक बजट के लंबे सफर में कई बदलाव हुए कई रस्में बदलीं तो कई नई रस्में जुड़ीं। दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था की ओर तेजी से बढ़ रहे भारत में बजट से जुड़े क्या बड़े बदलाव हुए। ऐसे सभी सवालों के जवाब जानने के लिए पढ़िए यह स्टोरी।

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    केंद्रीय बजट में समय के साथ कई बदलाव किए गए, कई परंपराएं बदली गईं। फोटो: जागरण

     डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण 1 फरवरी को लोकसभा में आम बजट पेश करेंगी। वे 1 फरवरी को वित्तीय वर्ष 2025-26 का बजट प्रस्तुत करेंगी। बजट 1 फरवरी को जरूर पेश किया जाएगा, लेकिन इसकी तैयारियां काफी पहले से शुरू हो जाती हैं। बजट से पहले इसे बनाने वाले खास अफसरों को बाहर की दुनिया से अलग रखा जाता है, हलवा सेरेमनी होती है। ऐसी ही कई रस्में लंबे समय से चली आ रही हैं। जबकि कुछ परंपराओं में बदलाव भी किया गया है, जैसे- बजट पेश करने का समय और तारीख। बजट में ये बदलाव क्या हैं और क्यों किए गए, पढ़िए ऐसे सभी सवालों के जवाब इस स्टोरी में।

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    बजट में हलवा बनाने की रस्म क्या है?

    • बजट से पहले हलवा बनाने की रस्म होती है। इस बार यह 24 जनवरी को आयोजित की गई। हर साल बजट से पहले हलवा सेरेमनी रखी जाती है। जो अधिकारी इस बजट को तैयार करते हैं, उन्हें इसे तैयार करने पर 'हलवा' परोसने की रस्म अदा की जाती है। इसी की साथ 'लॉक-इन पीरियड' शुरू हो जाता है।
    • दरअसल, भारत में किसी भी शुभ कार्य के दौरान मुंह मीठा कराने की परंपरा है। बजट के दस्तावेज तैयार हो जाने की खुशी में हलवा कढ़ाहे में बनाया जाता है और वित्त मंत्री की मौजूदगी में हलवा बजट बनाने वाले अफसरों और कर्मचारियों में बांटा जाता है। इसे हलवा सेरेमनी कहा जाता है।

    बजट बनाने वाले अधिकारियों को लॉक करके क्यों रखा जाता है?

    • बजट बनाने वाली टीम के अधिकारियों को लोकसभा में बजट पेश होने से पहले वित्त मंत्रालय के बेसमेंट में एक सप्ताह के लिए बंद रखा जाता है। इसके पीछे कारण यह है कि बजट से जुड़े कोई दस्तावेज लीक न हो जाएं।
    • पहले यह अवधि दो सप्ताह की थी। बजट बनाने वाले सभी अधिकारियों और कर्मचारियों से मोबाइल फोन भी ले लिए जाते हैं। इस अवधि में उन्हें किसी से मिलने की अनुमति नहीं होती है। वे अपने घर भी नहीं जा सकते हैं।

    1 फरवरी को ही क्यों पेश किया जाता है आम बजट?

    भारत सरकार का केंद्रीय बजट पहले 1 फरवरी के दिन पेश नहीं किया जाता था। बजट की यह तारीख आमतौर पर 28 फरवरी यानी फरवरी माह की अंतिम तारीख होती थी, लेकिन यह परंपरा साल 2017 में बदल गई। मोदी सरकार के तत्कालीन वित्तमंत्री अरुण जेटली ने फरवरी अंत की बजाय 1 फरवरी को पेश करने की परंपरा शुरू की। इस तरह ब्रिटिशकाल के समय से चली आ रही प्रथा मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में 2017 में बदल गई।

    तारीख बदलने की क्या थी वजह?

    • वित्त मंत्री ने बजट की तारीख 1 फरवरी करने के पीछे दो कारण बताए। पहला, बजट पेश करने और लागू होने के बीच कम समय अंतराल का होना। बजट मई माह में लागू होता है। ऐसे में 28 फरवरी की बजाय 1 फरवरी को बजट पेश होने से अंतराल और ज्यादा मिल जाता है।
    • दूसरा, आम बजट में रेल बजट का विलय होना। पहले रेल बजट आम बजट से अलग पेश किया जाता था। अरुण जेटली ने कहा था कि विलय के कारण आम बजट को लागू होने के लिए नए नियम लागू करने और नए बदलाव के लिए पर्याप्त समय मिल जाएगा।

    बजट पेश करने का समय बदलने के पीछे क्या है वजह?

    • अंग्रेजों की सुविधा के लिए आम बजट पहले शाम 5 बजे पेश किया जाता था। इसका कारण यह था कि जब भारत में शाम के 5 बजे होते थे, तब ब्रिटेन में दोपहर के करीब 12.30 बजे का समय होता था। अंग्रेजों के समय के हिसाब से भारत में शाम 5 बजे बजट पेश होता था।
    • 1999 में जब अटलजी की सरकार सत्ता में आई, तब इस परंपरा को बदल दिया गया। अटलजी की सरकार के वित्तमंत्री यशवंतसिन्हा ने पहली बार शाम 5 बजे की जगह सुबह 11 बजे बजट पेश किया था। इस दौरान उन्होंने कहा था कि '​भारत अब आजाद है, ब्रिटेन के अधीन नहीं है। इसलिए वह अपने हिसाब से समय तय कर सकता है। तभी से आम बजट सुबह 11 बजे पेश किया जा रहा है।

    चमड़े के ब्रीफकेस की जगह लाल कवर में रखे जाने लगे दस्तावेज?

    बजट फ्रेंच शब्द 'बौगेट' से बना है। इसका अर्थ चमड़े का थैला होता है। पहले पैसे रखने के लिए इस थैले यानी बैग का उपयोग होता था। इसलिए वित्त विधेयक का नाम भी बजट ही पड़ गया। क्योंकि इसी चमड़े के थैले में बजट के दस्तावेज रखे जाते थे। स्वतंत्रता के बाद पहला बजट 26 नवंबर 1947 को पेश किया गया था। तत्कालीन वित्त मंत्री थे आरके षनमुखम चेट्टी। वे भी अंग्रेजों की ही तरह चमड़े के बैग में बजट लेकर संसद आए थे। साल 2018 तक यह चमड़े के बैग या ब्रीफकेस की यह परंपरा कायम रही।

    निर्मला सीतारमण ने बदली यह परंपरा

    • 5 जुलाई 2019 को निर्मला सीतारमण ने इस परंपरा को बदल दिया। वे चमड़े के बैग की जगह लाल रंग के कपड़े में रखकर बजट के दस्तावेज लेकर संसद में आई थीं।
    • लाल रंग के इस कवर पर भारत का राष्ट्रीय प्रतीक चिह्न 'अशोक स्तंभ' अंकित था। यह बदलाव भी ​पश्चिमी आजादी से बदलाव का प्रतीक माना गया।
    • लाल रंग के कपड़े के कवर में बजट को रखने के पीछे यह कहा गया कि यह बजट नहीं बल्कि हिंदू परंपरा के अनुसार बही-खाता है।
    • 2021 में 1 फरवरी को ​वित्त मंत्री ​सीतारमण लाल रंग के कपड़े में लिपटे बजट को 'टैबलेट' लेकर संसद पहुंची थीं।
    • 1 फरवरी 2021 को वित्त मंत्री सीतारमण ने 'पेपरलेस बजट' पेश किया था। वह लाल रंग के कपड़े के कवर में टेबलेट रखकर संसद पहुंची थीं।

    वित्तीय वर्ष की शुरुआत 1 अप्रैल से ही क्यों?

    • ​आमतौर पर 1 जनवरी से नए साल की शुरुआत होती है। लेकिन वित्तीय वर्ष 1 अप्रैल से शुरू होता है, जो 31 मार्च तक चलता है। इसके पीछे कारण है भारत का फसल चक्र। भारत कृषि प्रधान देश है। भारतीय कृषि बजट का मुख्य आधार हमेशा से रहा है। रबी की फसलों की कटाई आमतौर पर फरवरी और मार्च में होती है। ऐसे में किसानों के पास फसल बेचने के बाद पैसा मार्च में आना शुरू हो जाता है।
    • हमारी इकोनॉमी का 20 फीसदी हिस्सा अभी भी कृषि के क्षेत्र से ही आता है। दूसरा, ब्रिटेन का फाइनेंशियल ईयर भी 6 अप्रैल से प्रारंभ होता है। आजादी से पहले अंग्रेजों ने भारत में यही परंपरा लागू कर रखी थी। मोदी सरकार के कार्यकाल में 2019 में वित्तीय वर्ष को बदलने की चर्चा भी चली थी, हालांकि इस पर कोई निर्णय नहीं लिया गया।

    वित्त विधेयक लोकसभा में ही किया जाता है पेश?

    • जानकार बताते हैं कि लोगों से प्राप्त टैक्स के जरिए सरकार के खजाने में राशि जमा होती है या निकाली जाती है। इसकी अनुमति संसद खासकर, लोकसभा से ली जाती है। यही कारण है कि बजट लोकसभा में ही पेश होता है। बजट लोकसभा में पारित होने के बाद राज्यसभा में जाता है।
    • राज्यसभा इसमें कुछ सुझाव दे सकती है, लेकिन यह सुझाव मानने के लिए लोकसभा बाध्य नहीं है। इसलिए वित्त विधेयक लोकसभा में पास हो जाता है। इसके बाद राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए चला जाता है। राष्ट्रपति इसमें बदलाव नहीं करते हैं। उनकी भूमिका सिर्फ स्वीकार करके साइन करने तक सीमित है।

    रेल बजट के मर्जर से 10 हजार करोड़ रुपये से अधिक की बचत?

    देश के आर्थिक विशेषज्ञ और वित्त मामलों के जानकार डॉक्टर जयंतीलाल भंडारी ने बताया

    भारत के बजट की तरफ देश ही नहीं दुनियाभर की निगाहें लगी होती हैं। भारत में बजट की परंपरा 1860 से शुरू हुई। इसमें अहम मोड़ तब आया, जब 2017 में आम बजट से रेल बजट को अलग किया गया। इसके पीछे खास आधार यह था कि वित्तीय बचत होगी और सरकार द्वारा रेलवे को आर्थिक मदद के लिए कोई लाभांश नहीं देना पड़ेगा। यह लाभांश 10 हजार करोड़ रुपये से अधिक होता है। इस वजह से भी रेल बजट को अलग किया गया। इससे रेलवे और देश दोनों की बचत हुई। संयुक्त बजट के बाद रेलवे विकास की पटरी पर और तेजी से दौड़ लगाने लगी।

    92 साल बाद क्यों टूटी रस्म, आम बजट में रेल बजट का हुआ मर्जर

    पहले रेल बजट और आम बजट अलग अलग पेश किया जाता था। साल 1924 से यह परंपरा चली आई, जो 2016 तक बनी रही। रेल बजट और आम बजट अलग अलग पेश होने के पीछे सरकार का यह मानना था कि रेलवे एक बड़ा मंत्रालय है। यात्रा, ट्रांसपोर्टेशन और सुरक्षा की दृष्टि से इस बड़े मंत्रालय के बजट पर अलग से फोकस करना जरूरी है। इसलिए ये एकसाथ पेश होता रहा। 2016 में तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि रेल बजट आम बजट की अपेक्षा काफी छोटा है। इसलिए यह अलग से पेश करना सिर्फ एक रस्म अदायगी जैसा है। इसके बाद रेल बजट आम बजट के साथ जोड़ दिया गया।

    Source:

    • पीआईबी वेबसाइट पर बजट से संबंधित जानकारी:
    • https://pib.gov.in/unionbudget2024/
    • वित्त मंत्रालय की वेबसाइट:
    • https://www.indiabudget.gov.in/
    • वित मंत्रियों का बजट भाषण:
    • https://www.indiabudget.gov.in/bspeech.php
    • बजट से संबंधित पीआईबी पर जानकारी:
    • https://pib.gov.in/PressReleasePage.aspx?PRID=2035618