जीएम सरसों को लेकर संगठनों के बीच मचा घमासान
जेनेटिकली मोडिफाइड यानी जीएम सरसों को सरकार की ओर से हरी झंडी मिलने या नहीं मिलने को लेकर बुधवार को जमकर घमासान मचा रहा। ...और पढ़ें

नई दिल्ली: जेनेटिकली मोडिफाइड यानी जीएम सरसों को सरकार की ओर से हरी झंडी मिलने या नहीं मिलने को लेकर बुधवार को जमकर घमासान मचा रहा। जैव प्रौद्योगिकी नियामक जीईएसी (जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रूवल कमेटी) के पास अपना पक्ष रखने के अंतिम दिन विभिन्न संगठनों के बीच बुधवार को भी जमकर आरोप-प्रत्यारोप का दौर चला। स्वयं सेवक संघ के सहयोगी संगठन स्वदेशी जागरण मंच की ओर से प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में वैज्ञानिक दीपक पेंटल का नाम लेकर कड़ी आलोचना की गई है।
उन्होंने अपने पत्र में उच पदों पर बैठे लोगों पर कड़ी प्रतिक्रिया करते हुए कहा है कि निहित स्वार्थो के चलते जीएम सरसों की वकालत की जा रही है। यह देश की कृषि के भविष्य के लिए गंभीर खतरा है। जीएम सरसों की सुरक्षा, उत्पादकता और बौद्धिक संपदा अधिकारों के बारे में गुमराह किया जा रहा है। इस सरसों को स्वदेशी कहने पर भी आपत्ति जताई गई है। इसे लेकर कई तथ्यों को छिपाने की कोशिश की जा रही है। वहीं, दूसरी ओर जीएम सरसों की इजाद करने का दावा करने वाले स्वदेशी वैज्ञानिकों का संगठन भी उनसे पीछे नहीं है। उन्होंने जीईएसी के समक्ष अपना पक्ष रखते हुए विरोधी संगठनों के बारे में कुछ इसी अंदाज में हमला बोला है। किसान संगठनों का भी मोर्चा खुल गया है। सब अपने-अपने तरीके से एक दूसरे का विरोध करने में जुटे रहे।
हालांकि, किसी के पास इस बात का जवाब नहीं था कि सालाना एक लाख करोड़ रुपये मूल्य का खाद्य तेल आयात किया जा रहा है। खाद्य तेलों की आपूर्ति बढ़ाने के लिए क्या किया जाए? सरकार में बैठे वैज्ञानिकों ने इस मुद्दे पर मुंह खोलना भी मुनासिब नहीं समझा। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आइसीएआर) के एक उच पदस्थ वैज्ञानिक ने पहले तो जीएम सरसों की जमकर वकालत की। लेकिन बात तुरंत समझ में आई तो सारी बातें ‘नो मेंशन प्लीज’ के साथ अपने नाम के साथ जोड़ने से मना कर दिया। कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह ने कहा कि यह वैज्ञानिक और तकनीकी मसला है। इसका फैसला करने का दायित्व जैव तकनीकी नियामक जीईएसी को सौंपा गया है। उसकी अनुमति के बाद ही कृषि मंत्रलय अपनी बात रखेगा।

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