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    Unemployment in India: क्या तेज होते आर्थिक विकास के साथ खत्म हो जाएगी बेरोजगारी?

    By Agency Edited By: Suneel Kumar
    Updated: Sun, 28 Apr 2024 07:07 PM (IST)

    भारत में समेत दुनियाभर के अधिकतर देशों में बेरोजगारी हमेशा से एक बड़ी समस्या रही है। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (RLO) की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2022 में भारत की कुल बेरोजगार आबादी में कामकाज नहीं करने वाले युवाओं की हिस्सेदारी लगभग 83 प्रतिशत थी। हालांकि RBI की मौद्रिक नीति समिति (MPC) की सदस्य आशिमा गोयल का बेरोजगारी के मोर्चे पर देश को जल्द राहत मिल सकती है।

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    2019 में बेरोजगारी दर 17.5 प्रतिशत थी, जो 2023 में घटकर 10 प्रतिशत रह गई।

    पीटीआई, नई दिल्ली। भारत में समेत दुनियाभर के अधिकतर देशों में बेरोजगारी हमेशा से एक बड़ी समस्या रही है। आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की सदस्य आशिमा गोयल भी इस बात को मानती हैं। उनका कहना है कि कम उम्र के लोगों के बीच बेरोजगारी दर सबसे ज्यादा है, लेकिन यह कुछ समय की बात है।

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    क्या है बेरोजगारी बढ़ने की वजह

    आशिमा का कहना है कि बेरोजगारी दर बढ़ने का एक बड़ा कारण यह है कि भारतीय युवा ना केवल कौशल हासिल करने में अधिक समय लगाते हैं, बल्कि खुद का काम शुरू करने में जोखिम उठाते हैं। गोयल ने कहा कि मजबूत आर्थिक विकास से देश में रोजगार सृजन में लगातार सुधार हो रहा है। यह बात ठीक है कि पढ़े-लिखे लोगों में बेरोजगारी दर सबसे ज्यादा है, लेकिन उच्च वेतन भी कमाते हैं।

    गोयल अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (RLO) की उस रिपोर्ट पर पूछे गए एक सवाल का जवाब दे रही थी, जिसमें बताया गया है कि 2022 में भारत की कुल बेरोजगार आबादी में कामकाज नहीं करने वाले युवाओं की हिस्सेदारी लगभग 83 प्रतिशत थी। गोयल ने बताया कि रिपोर्ट से यह भी पता चलता है कि हाल की अवधि में युवा बेरोजगारी में गिरावट आई है।

    उन्होंने कहा कि 2019 में बेरोजगारी दर 17.5 प्रतिशत थी, जो 2023 में घटकर 10 प्रतिशत रह गई। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि 2022 में 20-24 आयु वर्ग के लिए बेरोजगारी दर सबसे अधिक 16.9 प्रतिशत थी, लेकिन 30-34 आयु वर्ग की बेरोजगारी औसत के अनुरूप थी। गोयल ने कहा, 'बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं, बुनियादी ढांचा, बीमा, शिक्षा और कौशल आधारित सुविधाएं युवाओं को रोजगार उपलब्ध कराने में अच्छा योगदान कर सकती हैं।'

    भारत में FDI घटने का कारण

    आखिर प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) धीमा क्यों हो रहा है। इस सवाल पर आशिमा ने कहा कि विकसित देशों की अर्थव्यवस्थाएं पूंजी आकर्षित करने के लिए हरसंभव प्रयास कर रही हैं। यही वजह है कि भारत जैसे देशों में एफडीआई फ्लो में कमी आई है। उन्होंने यह भी कहा कि भारत अन्य देशों के साथ की गई निवेश संधियों में भी परिवर्तन कर रहा है, जिसके चलते एफडीआई घटा है।

    मॉरीशस के साथ की गई संधि में संशोधन से एफडीआई घटा है। पिछले साल सकल एफडीआई प्रवाह अप्रैल-जनवरी 2023-24 में मामूली रूप से कम होकर 59.9 अरब डॉलर हो गया, जो एक साल यानी 2022-23 की समान अवधि में 61.7 अरब डॉलर था। शुद्ध एफडीआई प्रवाह 25 अरब डॉलर से घटकर 14.2 अरब डॉलर रह गया।

    PIL का अधिक इस्तेमाल करें

    यह पूछे जाने पर कि क्या भारत चीन-प्लस वन रणनीति का लाभ उठाने में सक्षम है। आशिमा ने कहा, 'हम उन देशों के साथ प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकते हैं, जहां प्रति व्यक्ति आय बहुत ज्यादा है। हम वैश्विक सप्लाई चेन में घरेलू कंपनियों की भागदारी बढ़ने के लिए उन्हें सहयोग देने का रास्ता अपना सकते हैं।' गोयल ने कहा कि जहां एफडीआई के कई फायदे हैं वहीं इसकी कीमत भी अदा करनी पड़ती है। ऐसे में यह ज्यादा बेहतर है कि घरेलू कंपनियों को बढ़ावा देने के लिए पीएलआई का अधिक उपयोग किया जाए।

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